/sootr/media/media_files/2025/01/22/tSrPaDo3kvsHxVX8LFmX.jpg)
MP High Court
मध्यप्रदेश के हजारों सरकारी कर्मचारियों और सरकारी नौकरियों के उम्मीदवारों का भविष्य किस कदर कोर्ट कचहरी की चक्की में पिस रहा है। सरकारी अफसरों के बेतुके फैसलों और मनमाने आदेशों की वजह से हर साल हजारों मामले हाईकोर्ट की दहलीज पार कर रहे हैं। अदालत में केस लड़ने के लिए सरकार आम जनता की ही गाढ़ी कमाई के पैसे लुटा रही है और याचिकाकर्ता इंसाफ के लिए दर-दर भटक रहे हैं। द सूत्र की पड़ताल में पता चला कि बीते तीने साल में सरकार के खिलाफ 12 हजार से ज्यादा केस कोर्ट में लगाए गए हैं। 2024 में ही शिक्षा विभाग के खिलाफ करीब साढ़े पांच हजार केस दायर किए गए हैं। यही नहीं, कोर्ट केस के चक्कर में सरकार ने करीब पांच करोड़ रुपए खर्च कर डाले हैं। आखिर क्या है ये पूरा मामला, किस विभाग के खिलाफ कब, कितने और किस तरह के केस लगे हैं। साथ ही याचिकाकर्ताओं और वकील का क्या कहना है। पढ़िए द सूत्र की खास रिपोर्ट...
सरकारी विभागों के खिलाफ हजारों केस
मध्यप्रदेश या देश के किसी भी राज्य में सरकारी विभागों की मनमर्जी कोई नई बात नहीं है। आए दिन कोई न कोई गंभीर मसला सामने आता है। जिससे परेशान होकर पीड़ित पक्ष अदालत की शरण लेता है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में MPPSC, ESB, DPI समेत कई सरकारी विभागों के खिलाफ हजारों केस लगे हैं। साथ ही ओबीसी आरक्षण से जुड़े करीब सैकड़ा भर मामलों पर सुनवाई चल रही है। प्रदेश में 2018 से लेकर अब तक की शिक्षक भर्ती लगातार विवादों में है। लिहाजा, मौजूदा शिक्षकों और शिक्षक उम्मीदवारों ने सरकार की अतार्किक नीतियों और सरकारी अफसरों के मनमाने फरमानों को लेकर कोर्ट में केस लगाया है। वैसे भी शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मनमानी जग जाहिर है। मामला चाहे नियमित शिक्षकों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का हो। रिटायरमेंट के बाद जीपीएफ और मैच्योरिटी फंड के भुगतान का हो। संविदा शिक्षक और अध्यापक संवर्ग का हो या फिर अतिथि शिक्षकों की नियुक्तियों का मामला हो। हर मामले में कोई ना कोई विवाद चला आ रहा है। इस वजह से नुकसान झेलने वाले कर्मचारियों ने इंसाफ पाने के लिए अदालत में याचिकाएं लगाई हैं।
द सूत्र ने बीते कुछ सालों के आंकड़े खंगाले तो पता चला कि 2022, 2023 और 2024 यानी तीन साल में सरकार के खिलाफ 12 हजार से ज्यादा केस हाईकोर्ट में लगे हैं, इसमें 2024 में ही अकेले शिक्षा विभाग के खिलाफ 5569 केस दायर किए गए हैं।
याचिकाकर्ता मानसिक रूप से परेशान
जांच में यह भी पता चला कि ज्यादातर मामलों में सुनवाई के दौरान अफसरों की बेवजह की जिद या जानबूझकर की गई गलतियां सामने आती हैं। जिसका खामियाजा सीधे कर्मचारियों को भुगतना पड़ता है। पहले तो उन्हें केस दर्ज कराने के लिए हजारों रुपए फीस देनी पड़ती है। फिर सालों तक चलने वाली सुनवाई का खर्च अलग से होता है। जिससे याचिकाकर्ता मानसिक रूप से भी परेशान होते हैं। हद तो तब हो जाती है जब कोर्ट में मामला पहुंचने के बावजूद विभागीय अधिकारी अपनी गलती नहीं स्वीकारते और मामले को सुलझाने की कोशिश नहीं करते। इन बेशर्म अफसरों को सरकारी खजाने की भी कोई चिंता नहीं होती.। पड़ताल में पता चला कि कोर्ट में केस लड़ने के लिए विभागीय अफसरों ने जनता की कमाई के 05 करोड़ से ज्यादा उड़ा डाले हैं।
गलत रास्ता अपनाकर फंसा देते हैं नया पेंच
केस की सुनवाई के बाद कोर्ट के आदेश का पालन करने के बजाय ये अफसर गलत रास्ता अपनाकर नया पेंच फंसा देते हैं। जिससे कोर्ट आगे की तारीख दे देता है और याचिकाकर्ता इंसाफ से वंचित रह जाते हैं। हमने लोक शिक्षण संचालनालय और राज्य शिक्षा केंद्र से जुड़े कई ऐसे मामले भी खंगाले जिनमें विभाग के खिलाफ फैसले आए तो अफसरों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी। जबकि ये मामले बड़ी आसानी से निजी स्तर पर सुलझाए जा सकते थे। बीते तीन साल में हाईकोर्ट पहुंचे 12 हजार से ज्यादा मामलों में फैसले की अनदेखी करने पर शिक्षा विभाग के अफसरों पर अवमानना की 1600 से ज्यादा अपीलें भी दायर की गई हैं।
अधिकारी जानबूझ कर बनाते हैं बेतुके नियम-कायदे
हाईकोर्ट में शिक्षा विभाग के खिलाफ केस लड़ रहे एडवोकेट दिनेश चौहान का कहना है कि पहले तो अधिकारी जानबूझ कर बेतुके नियम-कायदे बना देते हैं। जब मामला कोर्ट में पहुंचता है तो वे किसी आदेश या निर्देश का पालन भी नहीं करते। जिससे याचिकाकर्ताओं को नुकसान होता है और सरकारी खजाने का बेवजह खर्च होता है। एडवोकेट दिनेश ने बताया कि वे जल्द ही कोर्ट में ऐसा केस दायर करने जा रहे हैं। जिसमें लापरवाह अधिकारियों के वेतन से सरकारी खजाने और आम जनता को हो रहे नुकसान की भरपाई की मांग की जाएगी।
2022 में अफसरों की गलतियों और विभागों के बेकार नियमों के खिलाफ हाईकोर्ट में 3330 याचिकाएं दायर की गईं, जबकि 2023 में 3696 याचिकाएं कोर्ट में दायर की गईं, जबकि 2024 में शिक्षा विभाग के खिलाफ याचिकाओं की बाढ़ आ जाएगी। 2024 में विभाग के खिलाफ हाईकोर्ट में रिकॉर्ड 5569 मामले दायर किए गए। अब ऐसा नहीं है कि सभी मामलों में विभाग की गलती थी। कई मामलों में याचिकाकर्ताओं की गलती भी सामने आई है। लेकिन हजारों मामलों में विभागीय लापरवाही उजागर होने और कोर्ट के आदेश के बावजूद अफसरों ने गलती नहीं मानी। इसी के चलते 2022 में हाईकोर्ट में 302, 2023 में 488 और 2024 में 888 अवमानना याचिकाएं दायर की गई हैं। तीन साल से हाईकोर्ट की मुख्यपीठ जबलपुर के साथ ही इंदौर और ग्वालियर खंडपीठ में 423 रिट अपील और 77 रिव्यू अपील लंबित हैं।
योग्य उम्मीदवारों की जान दांव पर लगी
ये तो हुई विभागीय अफसरों की लापरवाही, हाईकोर्ट में चल रहे केस और अवमानना याचिकाओं की बात। अब आपको अफसरों की मानसिक विकलांगता और पागलपन के कुछ उदाहरण बताते हैं। जिसके चलते सरकारी कर्मचारियों और योग्य उम्मीदवारों की जान दांव पर लगी हुई है। मध्य प्रदेश शिक्षा विभाग के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंचे ज्यादातर मामले अभी भी लंबित हैं। कई मामलों में अफसरों की मानसिक विकलांगता, पागलपन और बेवजह की जिद साफ नजर आती है। जबकि कुछ मामलों में अफसरों का अमानवीय रवैया उजागर होता है। ये अफसर तीन-चार दशक तक सरकार की सेवा करने वाले रिटायर्ड कर्मचारियों के प्रति भी सहानुभूति नहीं दिखाते।
ऐसा ही मामला सेवानिवृत्त प्रधान अध्यापक हरिकिशोर श्रीवास्तव का है। वे टीकमगढ़ की प्राथमिक शाला में पदस्थ थे। एक मामले में विभाग द्वारा उन पर केस दर्ज कराया गया जिसके बाद कोर्ट में समझौता भी हो गया। कुछ समय बाद हरिकिशोर सेवानिवृत्त हो गए लेकिन अफसरों ने पुराने मामले का पेंच डालकर उनकी पेंशन और मैच्योरिटी फंड अटका दिया। वे महीनों तक भटकते रहे और फिर कोर्ट जाने मजबूर हो गए। वे अब भी अपने हक के लिए लड़ रहे हैं।
साल 2023 में डीपीआई ने उच्च माध्यमिक शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया शुरू की थी। इसमें साल 2022 में आवश्यक शैक्षणिक योग्यता हासिल करने वाले चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति नहीं दी गई। एनसीटीआई की गाइडलाइन को भी डीपीआई ने नहीं माना इस वजह से अभ्यर्थियों को हाईकोर्ट जाना पड़ा। हाईकोर्ट में महीनों के संघर्ष के बाद उनके पक्ष में निर्णय आया तब भी शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए भटकना पड़ा।
2023 में उच्च पदभार के लिए कराई गई काउंसलिंग में चयन के बाद भी खरगोन के शिक्षक संजय शर्मा की पोस्टिंग नहीं की गई। उनके द्वारा चुने गए स्थान पर अतिशेष को पदस्थ कर दिया गया। इस निर्णय के खिलाफ संजय हाईकोर्ट पहुंच गए। हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों से जवाब तलब किया लेकिन अफसर दो महीनों तक टालते रहे। परेशान होकर संजय शर्मा ने अवमानना याचिका लगाई है। यानी अफसर कोर्ट को भी गुमराह कर रहे हैं।
अफसरों अपनी मर्जी के आगे विभाग के नियमों को भी बौना मान रहे हैं। प्रदेश में शिक्षा विभाग में 62 साल की आयु सेवानिवृत्ति के लिए तय है। इस नियम के बाद भी अफसरों ने रीवा में पदस्थ शिक्षक राजप्रताप सिंह को विभाग से 60 साल में ही सेवानिवृत्ति दे दी गई। हाईकोर्ट में सुनवाई के बाद शिक्षक की आयु की गणना 62 साल से करके मैच्योरिटी सहित पूरे फंड के भुगतान का आदेश पारित हुआ। इस आदेश के बाद भी पूरी राशि का भुगतान नहीं किया गया। इससे बचने के लिए अफसर विभाग के नियमावली का हवाला देकर टालमटोल करने में जुट गए हैं।
ये मध्य प्रदेश के सरकारी अधिकारियों की मानसिक विकलांगता, जुनून, लापरवाही और बेशर्मी के चंद उदाहरण मात्र हैं। जबकि सरकारी विभागों से लेकर अदालतों तक ऐसे मामलों की हजारों-लाखों फाइलें धूल फांक रही हैं। और सवाल अब भी बना हुआ है कि आखिर ये रात कब सुबह में बदलेगी।
thesootr links
- मध्य प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- रोचक वेब स्टोरीज देखने के लिए करें क्लिक