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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस सुरेश कैत और जस्टिस विवेक जैन की डबल बेंच ने प्राथमिक शिक्षक भर्ती में 27% ओबीसी आरक्षण न लागू करने के मामले में राज्य सरकार और महाधिवक्ता को कड़ी फटकार लगाई है। हाईकोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए पूछा कि जब 27% आरक्षण कानून पर कोई स्थगन आदेश (स्टे) नहीं है, तो इसे लागू करने से सरकार क्यों हिचक रही है? कोर्ट ने सरकार के इस रवैये को न केवल कानून विरोधी बल्कि 90 हजार से अधिक युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ बताया।
साल 2021 से लंबित है मामला
हाईकोर्ट में यह याचिका 2021 में दाखिल हुई थी, जिसमें प्राथमिक शिक्षक भर्ती में 27% आरक्षण के प्रावधान को लागू न करने को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने पक्ष रखते हुए बताया कि मध्यप्रदेश सरकार ने कांग्रेस शासनकाल में बनाए गए 27% आरक्षण कानून को अब तक लागू नहीं किया है। अधिवक्ता ने दलील दी कि महाधिवक्ता ने अपने अभिमत के आधार पर भर्ती प्रक्रिया को रोक दिया है, जबकि कानून पर कोई स्थगन आदेश नहीं है।
कानून पर नहीं है स्टे तो क्यों नहीं हो रहा लागू - हाईकोर्ट
महाधिवक्ता ने कोर्ट में कहा कि 27% आरक्षण कानून को चुनौती दी गई है और इसके विरुद्ध याचिकाएं लंबित हैं, इसलिए इसे लागू नहीं किया जा सकता। इस पर हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि विधायिका द्वारा बनाए गए किसी भी कानून को बिना संवैधानिकता तय किए स्थगित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के दृष्टांतों का हवाला देते हुए कहा कि जब तक कानून पर स्टे नहीं होता, सरकार को इसे लागू करना ही होगा।
महाधिवक्ता के रवैये पर लगे आरोप
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने महाधिवक्ता कार्यालय पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार और महाधिवक्ता जानबूझकर ओबीसी आरक्षण को लागू नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस देरी के पीछे राजनीतिक मंशा है। ठाकुर ने कोर्ट में यह भी कहा कि महाधिवक्ता कार्यालय ने 27% आरक्षण के मामलों को सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर कर दिया ताकि यह प्रकरण लंबित रहे और आरक्षण लागू न हो सके।
उन्होंने बताया कि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में कोई सुनवाई निर्धारित नहीं है, जबकि हाईकोर्ट में इस विषय पर 70 से अधिक बार सुनवाई हो चुकी है। ठाकुर ने दावा किया कि राज्य सरकार और महाधिवक्ता कार्यालय इस मामले में गंभीर नहीं हैं और हर सुनवाई पर केवल तारीख पर तारीख मांगते रहे हैं।
90 हजार युवाओं के भविष्य पर संकट
कोर्ट में सुनवाई के दौरान अधिवक्ताओं ने यह भी बताया कि 27% आरक्षण के कारण रोकी गई भर्तियों के चलते हजारों अभ्यर्थियों का भविष्य अधर में है। कई अभ्यर्थी मानसिक तनाव के कारण आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं। अधिवक्ता ने कहा कि सरकार की निष्क्रियता के चलते 90 हज़ार से अधिक युवाओं का भविष्य अंधकारमय हो गया है।
6 दिसंबर को होगी मामले की अगली सुनवाई
हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सभी संबंधित याचिकाओं को याचिका क्रमांक 18105/2021 के साथ जोड़ते हुए 6 दिसंबर 2024 को सुनवाई की अगली तारीख तय की है। कोर्ट ने सरकार को स्पष्ट किया कि विधायिका के कानून को लागू न करने का कोई भी निर्णय गैरकानूनी होगा।
भाजपा कांग्रेस के फेर में फंसा 27% आरक्षण
अधिवक्ता ठाकुर ने कोर्ट में कहा कि 27% आरक्षण का कानून कांग्रेस सरकार ने बनाया था, जिसे वर्तमान भाजपा सरकार लागू नहीं करना चाहती। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार को यह डर है कि आरक्षण का लाभ देने का श्रेय कांग्रेस को मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि महाधिवक्ता कार्यालय की निष्क्रियता इस राजनीतिक मंशा का प्रमाण है।
हाईकोर्ट से बंधी अभ्यर्थियों की उम्मीदें
हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणियों और निर्देशों ने प्रभावित अभ्यर्थियों को न्याय की उम्मीद दी है। यह मामला न केवल आरक्षण के मुद्दे पर बल्कि सरकार की जिम्मेदारी और कानून के पालन पर भी अहम भूमिका निभा सकता है।
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