मध्य प्रदेश में एक भर्ती का रास्ता खुलता है तो दूसरी भर्ती का रास्ता मानो बंद हो जाता है। ताजा मामला शिक्षक भर्ती वर्ग-1 का है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने शिक्षक भर्ती पर रोक लगा दी है। यानी चयनित शिक्षकों को जॉइनिंग के लिए अभी और इंतजार करना पड़ेगा। दरअसल 16 जुलाई ( मंगलवार ) को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की डबल बेंच में मामले की सुनवाई हुई। सुनवाई में डबल बेंच ने कहा कि सिंगल बेंच के आदेश को बदला नहीं जा सकता। इसी के साथ भर्ती पर दोबारा रोक लग गई।
हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने क्या फैसला दिया था ?
दरअसल हाईकोर्ट की सिंगल बेंच EWS कैंडिडेट्स की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में कहा गया था कि उच्च माध्यमिक यानी वर्ग 1 शिक्षक भर्ती 2018 में नियुक्ति प्रक्रिया को नई बताकर ईडब्लूएस कैंडिडेट्स को नियुक्ति नहीं दी गई। इसके बाद 23 फरवरी 2024 को जस्टिस विवेक अग्रवाल और फिर जस्टिस विशाल धगत की सिंगल बेंच ने आदेश दिया कि वर्ग 1 शिक्षक भर्ती 2018 के 848 ईडब्लूएस उम्मीदवारों को जब तक जॉइनिंग नहीं दी जाती तब तक नई भर्ती पर रोक रहेगी और फिर कोर्ट ने विभाग को 45 दिन का वक्त भी दिया था, लेकिन विभाग अपनी मनमानी से बाज नहीं आया। उसने सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ जाकर 3 अप्रैल को विभाग ने हाईकोर्ट में एक और याचिका दाखिल की और 45 दिन में ईडब्लूएस कैंडिडेट्स को नियुक्ति देने वाले फैसले पर स्टे ले लिया। स्टे के साथ ही भर्ती पर से रोक हट गई और विभाग ने भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी लेकिन डबल बेंच ने अब साफ कर दिया है कि सिंगल बेंच के फैसले को सही तरीके से समझे बिना नियुक्ति की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया और अब भर्ती का पूरा मामला अटक गया है।
विभाग की मनमर्जी, स्कूलों की चॉइस फिलिंग तक करा ली थी
शिक्षा विभाग ने चयनित शिक्षकों के डॉक्युमेंट वैरिफिकेशन के साथ ही स्कूलों की चॉइस फिलिंग तक करवा ली थी और उम्मीदवारों को सिर्फ जॉइनिंग लैटर का इंतजार था लेकिन अब डबल बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश को बदल दिया है। यानी भर्ती प्रक्रिया एक बार फिर अटक गई। दूसरी तरफ शिक्षक भर्ती में वैसे ही पद काफी कम हैं और लगातार इन्हें बढ़ाने की मांग की जा रही है। अब जब दोबारा भर्ती अटक गई है तो शिक्षकों की पदवृद्धि की मांग एक बार फिर से बुलंद होगी। सूत्र यहां तक बताते हैं कि पदवृद्धि को लेकर वित्त विभाग से अनुमति मांगी गई थी और फाइल लोक शिक्षण संचालनालय ( DPI ) भी पहुंच चुकी है लेकिन वित्त विभाग ने सहमति दी है या नहीं, ये अभी साफ नहीं हो पाया है। कुल मिलाकर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ जाकर विभाग काम करते हैं और नुकसान उठाना पड़ता है सिर्फ और सिर्फ अभ्यर्थियों को।
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