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JABALPUR. बाल विवाह जैसी गंभीर सामाजिक समस्या के समाधान की दिशा में जबलपुर जिला न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। जिला न्यायालय के जज डीपी सूत्रकार ने शहर के सभी मैरिज गार्डन, होटल और विवाह कराने वाले पंडितों के लिए निर्देश जारी किए हैं। ये निर्देश मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, जबलपुर द्वारा 20 नवंबर 2024 को जारी एक पत्र के अनुपालन में जारी किए गए हैं। इसका उद्देश्य कुप्रथा बाल विवाह को समाप्त करना और समाज में बाल विवाह के प्रति संवेदनशीलता और जागरूकता को बढ़ावा देना है। यह कदम बाल विवाह रोकने के लिए प्रभावी रणनीति का हिस्सा है, जो समाज में बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।
मैरिज गार्डन, होटल संचालकों के लिए निर्देश
जिला न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि जबलपुर में कोई भी विवाह (Marriage) आयोजन बिना वर-वधू की आयु का सत्यापन (Age verification) किए नहीं किया जा सकता। इसके लिए सभी मैरिज गार्डन और होटल संचालकों को निर्देशित किया गया है कि वे विवाह के आयोजन से पहले वर-वधू के जन्म प्रमाणपत्र (birth certificate) और अन्य आधिकारिक दस्तावेजों की जांच करें।
इसके साथ ही शादी कराने वाले पुजारियों और अन्य व्यक्तियों को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि शादी में शामिल दोनों पक्षों की न्यूनतम आयु तय सीमा के अनुसार हो। दूल्हे की आयु 21 साल और दुल्हन की आयु 18 साल से कम होने पर विवाह की अनुमति नहीं होगी। आदेश में कहा गया है कि यदि कोई विवाह आयु सत्यापन के बिना संपन्न कराया गया, तो संबंधित आयोजक, प्रबंधक या पुजारी के खिलाफ संज्ञान लेकर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
उल्लंघन करने पर मिलेगी कड़ी सजा
बाल विवाह (child marriage) को रोकने के लिए जारी किए गए निर्देशों में जिला न्यायालय ने इसके उल्लंघन पर सख्त दंड की बात कही है। न्यायालय ने कहा कि बाल विवाह कराना न केवल एक सामाजिक अपराध है, बल्कि यह बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 के तहत गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। इस अधिनियम के अनुसार, बाल विवाह कराने पर दो साल तक का कारावास और एक लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है। इसके साथ ही यह अपराध गैर-जमानती होगा, जिसका मतलब है कि अपराधी को अदालत से जमानत मिलने में भी कठिनाई होगी। यह निर्देश न केवल विवाह कराने वालों को चेतावनी देता है, बल्कि समाज को भी यह संदेश देता है कि बाल विवाह को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
कुप्रथा को रोकने जरूरी है यह कदम
बाल विवाह भारत में लंबे समय से एक गंभीर समस्या बनी हुई है, जो बच्चों के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास को प्रभावित करती है। यह प्रथा विशेष रूप से लड़कियों पर अधिक दुष्प्रभाव डालती है, जिससे उनकी शिक्षा बाधित होती है और उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कम उम्र में विवाह के कारण लड़कियां कई बार घरेलू हिंसा और स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करती हैं। इसके अलावा, यह उनकी आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता को भी बाधित करता है। इस संदर्भ में जिला न्यायालय द्वारा उठाया गया यह कदम न केवल बाल विवाह को रोकने की दिशा में एक ठोस प्रयास है, बल्कि बच्चों के उज्जवल भविष्य की नींव रखने के लिए भी आवश्यक है।
बाल विवाह रोकने में निभाएं सक्रिय भूमिका
जिला न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि बाल विवाह रोकना केवल कानून का पालन सुनिश्चित करने के लिए नहीं है, बल्कि यह एक नैतिक और सामाजिक दायित्व भी है। न्यायालय ने कहा कि बाल विवाह जैसी प्रथाएं समाज के कमजोर वर्गों को और अधिक असुरक्षित बनाती हैं। न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि सभी संबंधित अधिकारियों, समाजसेवी संस्थाओं और आम नागरिकों का यह दायित्व है कि वे बाल विवाह रोकने में सक्रिय भूमिका निभाएं। समाज के हर वर्ग को बाल विवाह जैसी कुप्रथा के खिलाफ खड़ा होना चाहिए और इसे खत्म करने के लिए सामूहिक प्रयास करना चाहिए।
हाईकोर्ट ने दिया था यह आदेश
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर ने 20 नवंबर 2024 को निर्देश जारी किए थे। जिसके अनुसार बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 की धारा 13 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। हाईकोर्ट ने सभी जिला न्यायाधीशों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा था कि जिले में किसी भी विवाह समारोह के दौरान वर और वधू की आयु वैधानिक मानदंडों (पुरुष के लिए 21 वर्ष और महिला के लिए 18 वर्ष) से कम न हो।
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