जबलपुर हाईकोर्ट में एडवोकेट अमिताभ गुप्ता ने जनहित याचिका दायर की है। जिसमें किसी मामले में सजा के निलंबन, जमानत और अग्रिम जमानत के लिए किए जाने वाले आवेदन में सुनवाई के समय आरोपी के द्वारा पूर्व में किए गए अपराधों का इतिहास न्यायालय में मौजूद केस डायरी में संलग्न न होने पर उसको मिलने वाले न्याय में देरी होती है। जो संविधान के अनुच्छेद 21 के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णय द्वारा प्रदत्त शीघ्र सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन करती है। अब याचिका सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने शासन को नोटिस जारी जवाब मांगा।
NCRB का नहीं हो रहा उपयोग
न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता (Advocate Amitabh Gupta) ने बताया कि राष्ट्रीय आपराधिक रिकार्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा पुलिस जांच के लिए निर्धारित प्रपत्रों में अभियुक्त के आपराधिक इतिहास को दर्ज करने के लिए विशिष्ट प्रावधान शामिल हैं। जिसमें पुलिस के द्वारा गिरफ्तारी पत्रक भरते समय ही आरोपी के पुराने और किए गए अपराध का उल्लेख करना होता है और न्यायालय में केस की सुनवाई फैसले के बाद थाने के कोर्ट मुंशी और कोर्ट के कर्मचारियों के द्वारा फॉर्म भरा जाता है। जिसमे अपराधी के विरुद्ध आए फैसले को नए और पुराने रिकॉर्ड के साथ लिखकर थाने भेजा जाता है।
जिम्मेदार बरत रहे लापरवाही
आग कहा गया है कि यह वह प्रपत्र होते है जिसमें जांच अधिकारी द्वारा ट्रायल कोर्ट के समक्ष अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है। साथ ही केस डायरी में भी इन प्रपत्रों को संलग्न किया जाता है। लेकिन जिम्मेदार कर्मचारी लापरवाही बरतते हुए उन प्रपत्रों को नहीं भरते। जिसकी वजह से जमानत की सुनवाई के लिए आई पुलिस डायरी में आवेदक का पुराना आपराधिक रिकार्ड नहीं होता जिसके कारण आरोपी हफ्तों जेल में ही रहने को मजबूर होते हैं।
सिस्टम की गलती से जमानत में देरी
जनहित याचिका में कोर्ट के सामने यह तथ्य लाया गया कि आरोपी की गिरफ्तारी और न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत करते समय इन प्रपत्रों को नहीं भरा जाता है। इस वजह से जमानत आवेदन की प्रथम सुनवाई में आदतन जिसमें जमानत के आवेदन करने पर न्यायालय में सरकारी अभियोजकों के द्वारा अपीलकर्ता या आवेदक के आपराधिक पृष्ठभूमि और कस्टडी रिपोर्ट लाने के समय मांगा जाता है। यह समय एक हफ्ते से 2 हफ्ते तक का होता है। जबकि सिस्टम में आरोपी की गिरफ्तारी से लेकर न्यायालय के सामने करने तक यदि प्रपत्रों को उचित रूप से भरा जाए तो आवेदक का आपराधिक रिकॉर्ड संलग्न हो। लेकिन सिस्टम की लापरवाही और नागरिक अधिकारों के प्रति उदासीनता की वजह से आवेदक की जमानत में देरी होती है। जिससे बेवजह उन्हें जेल में रहना पड़ता है।
न्यायालय ने दिए यह आदेश
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य जस्टिस सुरेश कुमार कैत (Chief Justice Suresh Kumar Kait) और जस्टिस विवेक जैन (Justice Vivek Jain) की युगल पीठ ने शासन को इस याचिका पर जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया गया। जिसमें अतिरिक्त महाधिवक्ता एच एस रूपराह ने जवाब दाखिल करने के लिए न्यायालय से दो सप्ताह का समय मांगा। इस मामले में अगली सुनवाई 2 दिसंबर को की जाएगी।
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