जबलपुर में लंबे समय से चली आ रही फ्लाइट्स की मांग का मामला अब हाईकोर्ट पहुंच चुका है। कोर्ट ने राज्य सरकार सहित उड्डयन मंत्रालय से यह जवाब मांगा है कि आखिर जब इस एयरपोर्ट को स्टेट ऑफ आर्ट की तरह विकसित किया गया तो फिर इसमें फ्लाइट की कमी क्यों है। कोर्ट ने उड्डयन मंत्रालय और सरकार से कम होती उड़ानों को बढ़ाने के लिए नीति और अन्य जानकारी मांगी है।
जबलपुर एयरपोर्ट को बनना चाहिए हब
जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शन मंच की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने कोर्ट को बताया कि सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च करने के बाद इस एयरपोर्ट का उन्नयन हुआ है, और उसके बाद से उड़ानों की संख्या और भी कम हो गई है। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने यह मत रखा है कि जबलपुर शहर देश के बीच में स्थित है। तो इस एयरपोर्ट को तो एक ऐसा कनेक्टिविटी हब होना चाहिए जहां से पूरे देश के लोग एक जगह से दूसरी जगह तक जा सके।
कम क्यों हो रही उड़ानों की संख्या?
जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सर्राफ की डबल बेंच ने सरकार से यह भी पूछा है कि आखिर जब इतना खर्च कर इस एअरपोर्ट का उन्नयन किया गया, तो उड़ानों की संख्या कम क्यों हो रही है, और इसके सुधार के लिए उड्डयन मंत्रालय की क्या नीति है। उड़ानों की संख्या बढ़ाने के लिए राज्य सरकार की नीति सहित एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया से भी कोर्ट ने सवाल किया है।
हर प्रमुख शहर से हो जबलपुर की कनेक्टिविटी
उड्डयन मंत्रालय की ओर से कोर्ट को यह बताया गया कि अभी दिल्ली, मुंबई ,बैंगलोर के लिए हफ्ते में 4 दिन उड़ाने हैं, वहीं इंदौर, हैदराबाद को मिलाकर रोजाना 4 से 5 उड़ानें ही होती हैं, जिस पर याचिकाकर्ता की ओर से दिल्ली के लिए रोजाना फ्लाइट की मांग पर कोर्ट ने यह कहा कि केवल दिल्ली नहीं बल्कि चेन्नई, मुंबई, कोलकाता जैसे शहरों से भी जबलपुर की कनेक्टिविटी होनी चाहिए।
मामले में अगली सुनवाई 11 दिसंबर को
हाईकोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 11 दिसंबर को तय की है। अगली सुनवाई में उड्डयन मंत्रालय और राज्य सरकार जबलपुर में कम होती उड़ानों को बढ़ाने के लिए अपनी नीति और अन्य जानकारी कोर्ट को देंगे।
आपको बता दें कि जबलपुर शहर की अन्य बड़े शहरों से कनेक्टिविटी के लिए संस्कारधानी में देश का इकलौता ऐसा आंदोलन किया गया था जिसमें नो फ्लाई डे घोषित कर लोगों ने विमान को रोका था। उसके बाद भी जबलपुर वासियों को केवल आश्वासन ही मिले थे। अब यह मामला हाई कोर्ट पहुंचा है।
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