सिंचाई परियोजना के विरोध में आदिवासी, विधानसभा घेराव की दी चेतावनी

जबलपुर में दो बांधों के निर्माण को लेकर आदिवासियों का विरोध तेज हो गया है। बड़ादेव उदवंश सिंचाई परियोजना के तहत बन रहे इन बांधों के निर्माण के कारण आदिवासी समुदाय का विस्थापन होगा, जिसका वे कड़ा विरोध कर रहे हैं।

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Neel Tiwari
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MP Jabalpur tribals protest against Baradev Udvansh irrigation project
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जबलपुर में बरगी विधानसभा क्षेत्र में दो बांधों का निर्माण किया जा रहा है जिसका आदिवासियों के द्वारा कड़ा विरोध किया जा रहा है। उन्होंने इस योजना के विरोध में विधानसभा घेराव की भी चेतावनी दी है। बड़ादेव उदवंश सिंचाई परियोजना के तहत बन रहे बांधों के निर्माण के कारण आदिवासियों का विस्थापन होगा जिसका विरोध तेज हो गया। इस विवाद पर कांग्रेस ने भी बीजेपी सरकार को निशाने पर लेते हुए विरोध जताया है।

विस्थापन किए जाने के कारण विरोध प्रदर्शन 

दरअसल, बरगी विधानसभा क्षेत्र में बरगी बड़ादेव उदवंश सिंचाई परियोजना के अंतर्गत दो बांधों का निर्माण किया जाना है। इन बांधों के निर्माण से आदिवासियों की लगभग 300 एकड़ जमीन एवं 3 गांव बांध के डूब प्रभाव क्षेत्र में आ रहे हैं। साथ ही इन बांधों के निर्माण से लगभग 32 गांवों पर इसका असर पड़ेगा। ऐसे में आदिवासियों के सामने जमीन डूब क्षेत्र में आने और विस्थापन जैसी समस्याओं होने के कारण आदिवासियों के द्वारा जन,जंगल और जमीन से विस्थापन के खिलाफ कांग्रेस जनों के साथ इस योजना का विरोध किया जा रहा है।

लिफ्ट इरीगेशन योजना है आदिवासियों को मंजूर

इस योजना के तहत बन रहे बांधों के निर्माण से आदिवासियों का विस्थापन होगा जिसके कारण यह विरोध उपजा है। क्योंकि इस योजना से लगभग 300 एकड़ जमीन (कृषि भूमि) और 300 एकड़ रिजर्व फॉरेस्ट की जमीन डूब प्रभावित क्षेत्र में आना है। जिसका क्लीयरेंस जल संसाधन विभाग को नहीं मिलेगा। पूर्व में बनाई गई बरगी बांध से लिफ्ट इरीगेशन के जरिए पानी पहुंचाने की योजना से किसी ग्रामीण को आपत्ति नहीं थी। इस योजना की लागत 560 करोड़ रुपए है, और इससे किसी भी प्रकार की जमीन को कोई भी नुकसान नहीं होगा और किसानों को सिंचाई के लिए पानी आसानी से मुहैया कराया जा सकता है।

कांग्रेस ने लगाए कमीशनबाजी के आरोप

कांग्रेस से पूर्व विधायक संजय यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि पूर्व में बनाई गई नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण योजना के अंतर्गत लिफ्ट इरीगेशन योजना जिसकी लागत 560 करोड रुपए थी लेकिन वर्तमान में जल संसाधन मंत्रालय ने 1100 करोड रुपए में दो बांधों के निर्माण की निविदा जारी की है। जो आगे चलकर 2 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगी। उन्होंने बताया कि यह सब कमीशन बाजी का चक्कर समझ आता है क्योंकि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण मंत्रालय मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री के पास है और जल संसाधन मंत्रालय सिंधिया समर्थित मंत्री तुलसी सिलावट के पास है। ऐसे में उन्होंने दोनों मंत्रियों के ऊपर कमीशन खोरी के आरोप लगाए हैं। साथ ही इस योजना के विरोध में आदिवासियों के साथ विधानसभा घेराव की भी चेतावनी दी है।

1200 करोड़ सिर्फ बांध निर्माण की लागत किसानों का मुआवजा नहीं

इस परियोजना के लिए जल संसाधन मंत्रालय की तरफ से 1200 करोड़ रुपए सिर्फ बांधों की निर्माण की लागत है। इसमें किसानों की जमीन अधिग्रहण में दी जाने वाली मुआवजा राशि शामिल नहीं है। आदिवासी समुदाय का सवाल है कि एक ओर तो वन संरक्षण की बात कही जाती ही, दूसरी ओर संरक्षित वनों को ही डूब प्रभावित क्षेत्र में शामिल कर दिया गया है। डूब क्षेत्र में आने वाले इन वनों पर आदिवासियों का हक है। आपको बता दें कि पूर्व बनाई गई लिफ्ट इरीगेशन योजना से बिना किसी नुकसान के किसान लाभान्वित हो सकते हैं।

जमीन नहीं रहेगी तो सिंचाई की क्या जरूरत

जिला पंचायत सदस्य मुन्नी बाई उइके ने बताया कि पानी की जरूरत सिंचाई के लिए है और यदि जमीन ही नहीं रहेगी सिंचाई कहां की जाएगी। उन्होंने बताया कि पूर्व में बनाई गई लिफ्ट इरीगेशन योजना, जिससे पाइपों के जरिए किसानों को पानी पहुंचाया जाता है। वह योजना आदिवासियों को मंजूर है लेकिन बांध का निर्माण नहीं किया जाना चाहिए। इस निर्माण से लगभग 32 गांव का जनजीवन प्रभावित होगा और विस्थापन जैसी समस्याएं भी सामने आएंगे।

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