OBC Reservation: आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों पर हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के मामले में जबलपुर हाईकोर्ट में 83 याचिकाओं पर सुनवाई हुई। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को जवाब पेश करने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया है।

Advertisment
author-image
Neel Tiwari
New Update
MP OBC reservation case Jabalpur High Court seeks answer
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

जबलपुर हाईकोर्ट (Jabalpur High Court) में सोमवार, 25 नवंबर को ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) आरक्षण से संबंधित 83 याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इन याचिकाओं में शासन द्वारा 27% ओबीसी आरक्षण लागू करने और उससे संबंधित आदेशों को चुनौती दी गई है। मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत (Chief Justice Suresh Kumar Kait) और न्यायमूर्ति विवेक जैन (Justice Vivek Jain) की डबल बेंच ने इस मुद्दे पर गहरी सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ताओं को सभी प्रश्नों के जवाब प्रस्तुत करने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया है। मामले में अगली सुनवाई की 10 दिसंबर को होगी। इस मामले को सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों स्तरों पर उठाया गया है, जिससे यह प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया है।

27% आरक्षण की घोषणा के बाद शुरू हुआ था विवाद

यह मामला मध्य प्रदेश शासन द्वारा जारी 2 फरवरी 2021 के एक सर्कुलर से शुरू हुआ था, जिसमें ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की घोषणा की गई थी। इस सर्कुलर के खिलाफ यूथ फॉर इक्वलिटी और नागरिक उपभोक्ता मंच सहित अन्य याचिकाकर्ताओं ने याचिकाएं दायर कीं। इन याचिकाओं में कहा गया कि 27% आरक्षण लागू करने से अनारक्षित वर्गों के हितों को हानि पहुंच रही है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है।

कोर्ट ने लगाई थी 27% आरक्षण पर रोक

हाईकोर्ट ने इस मामले में 4 अगस्त 2023 को एक अंतरिम आदेश जारी करते हुए 27% आरक्षण पर रोक लगा दी थी। यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू हुआ और इसके परिणामस्वरूप सभी भर्तियों और प्रवेश प्रक्रियाओं में ओबीसी आरक्षण पर स्टे आर्डर जारी किया था। ओबीसी आरक्षण से जुड़े मामले सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित हैं पर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा हाल ही में दिए गए आदेश के अनुसार जिन मामलों में स्थगन आदेश जारी नहीं हुआ है। उनकी सुनवाई हाईकोर्ट में की जा सकती है।

27 प्रतिशत आरक्षण पर रोक नियम विरुद्ध

मध्य प्रदेश सरकार की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने हाईकोर्ट में यह दलील दी कि 27% ओबीसी आरक्षण अभी भी विधिसम्मत है और इस पर रोक लगाना अनावश्यक है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि याचिका क्रमांक 18105 इस मामले से संबंधित नहीं है। और उक्त याचिका पर मिले स्थगन आदेश के आधार पर सभी भर्तियों में आरक्षण का लाभ न देना नियम विरुद्ध है। रामेश्वर ठाकुर ने यह भी कहा कि इस रोक का आधार केवल महाधिवक्ता का अभिमत है, न कि किसी विधायिका संशोधन या संवैधानिक प्रावधान।

यह अधिकारों का हनन

उन्होंने आगे तर्क दिया कि बिना किसी विधायी या प्रशासनिक संशोधन के ओबीसी आरक्षण को रोकना आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के अधिकारों का हनन है। ठाकुर ने यूथ फॉर इक्वलिटी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि यह संगठन एक राजनीतिक मंच है और संविधान के तहत राजनीतिक संगठनों को सरकारी नीतियों को चुनौती देने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कोर्ट से इन याचिकाओं को खारिज करने की अपील की।

याचिकाकर्ता पहले रख चुके हैं अपना पक्ष

याचिकाकर्ताओं ने अपने पक्ष में तर्क दिया था कि ओबीसी आरक्षण बढ़ाने से अनारक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को बड़े पैमाने पर नुकसान होगा। उन्होंने दावा किया था कि प्रदेश में ओबीसी आरक्षण की सीमा 14% से बढ़ाकर 27% करना असंवैधानिक है, क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50% आरक्षण सीमा का उल्लंघन करता है।याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि शासन द्वारा 27% आरक्षण लागू करते समय सामाजिक और आर्थिक डेटा का उचित विश्लेषण नहीं किया गया। इसके अलावा, यह सर्कुलर बिना किसी विस्तृत अध्ययन और नीति-निर्माण के जारी किया गया, जिससे यह संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है।

याचिकाकर्ताओं को जारी हुए नोटिस

सुनवाई के दौरान तर्कों को गंभीरता से सुनने के बाद जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की डबल बेंच ने याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के लिए दो हफ्ते का समय दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर को होगी।


ओबीसी आरक्षण का यह मुद्दा केवल मध्य प्रदेश तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय स्तर पर आरक्षण नीतियों के संदर्भ में एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों में इस मामले पर सुनवाई जारी है, जिससे यह स्पष्ट है कि यह विवाद लंबे समय तक चल सकता है। 10 दिसंबर को होने वाली अगली सुनवाई में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि याचिकाकर्ताओं के तर्क और शासन की जवाबी दलीलें किस दिशा में जाती हैं। यह मामला न केवल ओबीसी वर्ग के अधिकारों और उनके सामाजिक उत्थान से जुड़ा है, बल्कि संविधान में निर्धारित आरक्षण नीति और समानता के अधिकार की भी परख करता है।

हाईकोर्ट का निर्णय प्रदेश में आरक्षण नीतियों पर सीधा प्रभाव डालेगा। यदि अदालत शासन के पक्ष में निर्णय देती है, तो ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण का लाभ मिलेगा। वहीं, यदि याचिकाकर्ताओं का पक्ष सही पाया गया, तो यह अन्य राज्यों में भी आरक्षण नीति पर सवाल खड़े कर सकता है।

thesootr links

द सूत्र की खबरें आपको कैसी लगती हैं? Google my Business पर हमें कमेंट के साथ रिव्यू दें। कमेंट करने के लिए इसी लिंक पर क्लिक करें

 

27 percent OBC reservation case Jabalpur High Court 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण मामला जबलपुर हाईकोर्ट जबलपुर न्यूज मध्य प्रदेश OBC RESERVATION ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण 27 percent OBC reservation supreme court order मध्य प्रदेश शासन जस्टिस विवेक जैन मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत Chief Justice Suresh Kumar Kait Justice Vivek Jain