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मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (मेपकास्ट) इन दिनों भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है। इसके अंतर्गत उज्जैन के तारामंडल की टिकिट बिक्री में हुए 18 लाख रुपए से ज्यादा के भ्रष्टाचार के आरोपी पर अभी तक कार्रवाई ही नहीं हो पाई है। हद तो यह है कि जिस अधिकारी पर आरोप लगे उस पर अफसरों ने कार्रवाई करने के बजाए उसे भोपाल में अटैच कर दिया। दोषियों पर भोपाल मुख्यालय में बैठे इस कदर मेहरबान हैं कि ईसी (इन्क्वायरी कमेटी) की चार बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन अभी तक अफसरों ने कमेटी में जांच रिपोर्ट तक नहीं रखी है।
यह है घोटाले की पूरी कहानी
मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (मेपकास्ट) के अंतर्गत तारामंडल, उज्जैन में दिखाए जाने वाले शो की टिकिट की राशि 18 लाख 11 हजार 330 रुपए तारामंडल के प्रभारी रहे शैलेन्द्र डाबी ने अपने व्यक्तिगत खाते में जमा कर ली थी। उन्होंने इस राशि का उपयोग भी कर लिया था। जब जांच हुई तो डाबी पर आरोप भी सिद्ध हो गए और जांच रिपोर्ट भी पेश की जा चुकी है। परिषद के महानिदेशक डाॅ. अनिल कोठारी ने जांच रिपोर्ट को दबा दिया और अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की।
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5 साल में किया गया था घाेटाला
बताया गया कि डाबी वर्ष 2013 से अगस्त 2018 तक तारामंडल उज्जैन के प्रभारी रहे। इस दौरान इनके द्वारा कुल 1811330 रुपए अपने व्यक्तिगत खाते में रखकर उपयोग करने का आरोप है। इाकी शिकायत में डाबी द्वारा स्वयं यह कबूल किया गया है, लेकिन इस अवधि के पहले इनके द्वारा कितनी टिकिट स्वयं के स्तर पर छपवाई गई। इसके लिये इनके द्वारा मुख्यालय स्तर से कोई अनुमति नहीं ली गई।
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EOW के मांगने पर भी नहीं भेजी रिपोर्ट
उज्जैन तारामंडल के प्रभारी रहे शैलेन्द्र डाबी द्वारा वर्ष 2019 में किए गए घोटाले की शिकायत आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) में की गई थी। इसके बाद विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख सचिव से शिकायत पर 30 दिवस में तथ्यात्मक प्रतिवेदन मांगा गया था। इस पर मंत्रालय द्वारा मेपकास्ट के महानिदेशक को कई पत्र लिखकर जांच समिति की रिपोर्ट तत्काल मांगी, जिसे ईओडब्ल्यू को भेजी जा सके। इसके बावजूद मेपकास्ट के डीजी द्वारा इस घोटाले की जांच प्रतिवेदन को विभाग व ईओडब्ल्यू को नहीं भेजा गया।
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यह बातें भी सामने आई जांच में
सूत्रों के मुताबिक यह घोटाला डाबी के कार्यकाल के पहले से ही चल रहा था। तारामंडल की शुरूआत 2010 से हुई। ऐसे में यह माना जा रहा है कि तब ही से यह घोटाला सतत जारी रहा। ऐसे में घोटाले की राशि लाखों में नहीं, बल्कि करोड़ों में हो सकती है। क्योंकि शुरूआत में तारामंडल, उज्जैन की टिकिट की राशि को जमा कराने के लिये स्थानीय स्तर पर कोई बैक खाता क्यों नहीं खोला गया। जबकि मेपकास्ट के अन्य रीजनल सेंटर जबलपुर, ग्वालियर और इंदौर में भी स्थानीय स्तर पर बैंक खाते खुले हुए हैं।
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तारामंडल घोटाले की जांच में सामने आए मुख्य बिंदु
सूत्रों के अनुसार, इंदौर तारामंडल में हुए संभावित आर्थिक घोटाले की जांच में जांच अधिकारियों ने कुछ गंभीर अनियमितताओं की ओर इशारा किया है। रिपोर्ट के अनुसार, निम्नलिखित चौंकाने वाले तथ्य सामने आए:
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टिकट छपवाने की प्रक्रिया संदेहास्पद:
तत्कालीन प्रभारी डाबी ने टिकट स्वयं छपवाए, जिसकी कोई अधिकृत अनुमति या रिकार्ड जांच में उपलब्ध नहीं है। -
टिकट कितनी छपीं, इसका कोई रिकार्ड नहीं:
टिकटों की कुल संख्या का कोई लेखा-जोखा परिषद के पास उपलब्ध नहीं पाया गया। -
प्रति शो औसतन केवल 14 टिकट की बिक्री दर्शाई गई:
जबकि प्लैनेटोरियम की कुल क्षमता 80 सीटों की है, फिर भी प्रति शो केवल 14 टिकटों की बिक्री दर्शाकर राजस्व की वसूली दिखाई गई।
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औसत आय का गणित सवालों के घेरे में:
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औसतन ₹40 प्रति टिकट मानें तो एक शो से आय ₹575 और दो शो में ₹1,150 दर्शाई गई।
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26 दिन संचालन के आधार पर मासिक आय ₹30,000 और 30 माह में कुल ₹9 लाख दिखाया गया।
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रिकवरी का आधार अस्पष्ट:
परिषद ने यह स्पष्ट नहीं किया कि 80 सीटों वाले शो में केवल 14 टिकट की बिक्री पर रिकवरी किस आधार पर मानी गई। -
टिकट बिक्री का आंकलन किसने किया और किस आधार पर?:
इसकी कोई जानकारी या दस्तावेज जांच कमेटी को नहीं सौंपे गए।
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50% सीटों की औसत बिक्री मानी जाती तो वसूली तीन गुना होती:
अगर प्रति शो 40 टिकट की दर से वसूली होती तो वर्तमान वसूली की तुलना में तीन गुना अधिक राशि मिल सकती थी। -
ब्याज की वसूली नहीं हुई:
टिकट की राशि जमा कराने की तारीख तक कोई ब्याज नहीं लिया गया, जो आर्थिक नुकसान को दर्शाता है। -
जांच में डाबी के बयान को ही अंतिम मान लिया गया:
डाबी ने जो आंकड़े स्वयं प्रस्तुत किए, जांच समिति ने उन्हें ही सही मानकर स्वीकार कर लिया, बिना किसी स्वतंत्र जांच या सत्यापन के।
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जिनकी सरपरस्ती में हुआ घोटाला, उन्हें सलाहकार बनाया था
डाॅ. राजेश शर्मा, रिटायर वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक जो कि पिछले 15 वर्षों से तरामंडल उज्जैन और वेधशाला डोंगला के प्रमुख रहे हैं। इनकी सरपरस्ती में ही यह घोटाला कई वर्षों तक चलता रहा है। डाॅ. शर्मा द्वारा इस घोटाले पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया। वहीं, डॉ. शर्मा अब रिटायर हो चुके हैं और उन्हें विभाग में कुछ माह पूर्व तक सलाहकार बना कर रखा गया था।
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शर्मा ने नोटशीट ही आगे नही बड़ाई
सूत्रों के मुताबिक प्रभारी डाबी द्वारा की गई गड़बड़ी की शिकायत के बाद परिषद ने विभागीय जांच के दौरान कारण बताओ नोटिस भी दिए गए थे। इनके जवाब में भी डाबी ने यह दावा किया था कि उनके द्वारा कई बार तारामंडल की व्यवस्थाओं एवं विकास के लिए नोटशीट डाॅ. शर्मा को भेजी। डाॅ. शर्मा द्वार इसे आगे नहीं बढ़ाया गया।
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डाबी ने लगाए शर्मा पर आरोप
इसको लेकर डाबी द्वारा दिए गए नोटिस के जवाब में यह भी खुलासा हुआ है कि डाॅ. शर्मा तारामंडल व वेधशाला डोगला की कोई फाईल उन्हें नहीं देते थे। डाबी ने आरोप लगाया कि सारी कार्यवाही वे स्वयं करते रहे है। इनके द्वारा तारामंडल व वेधशाला में शुरू से अब तक करोड़ो रुपए के खर्चे के आदेश देना और उसे गोपनीय रखकर कार्य करना शामिल है। डाबी ने यह भी आरोप लगाए हैं कि तारामंडल में कराए गए लाखों के कार्यों की फाईलें गायब हैं। इनकी भी जांच कराई जानी चाहिए।
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यह कहना है अफसरों का
– इस संबंध में कार्रवाई में लेटलतीफी किए जाने को लेकर जब मैपकॉस्ट के डीजी डॉ. अनिल कोठारी से चर्चा की गई तो उन्होंने सवाल सुनते ही अपनी व्यस्तता बताते हुए बाद में बात करने का कहा गया। हालांकि बाद में भी उनके द्वारा कोई जानकारी नहीं दी गई।
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– तारामंडल उज्जैन के तत्कालीन प्रभारी डाॅ. शेलेन्द्र कुमार डाबी से चर्चा की गई तो उनका कहना था कि मुझे उज्जैन से हटाकर भोपाल में अटैच कर दिया गया है। हालांकि अभी तक मुझ पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। हां, जानकारी जरूर मिलती रहती है कि कार्रवाई प्रस्तावित है, लेकिन वह कब होगी और क्या होगी, यह कोई नहीं बताता है।