BHOPAL. पात्रता और चयन परीक्षा के बाद नियुक्ति की आस लगाए बैठे उच्च माध्यमिक शिक्षकों को अभी और इंतजार करना पड़ेगा। इस बार भी चूक सरकारी सिस्टम की ही है, लेकिन हर बार की तरह खामियाजा वेटिंग शिक्षकों ही भुगतेंगे। दरअसल 2023 में स्कूल शिक्षा और जनजातीय कार्य विभाग ने 8720 पदों पर उच्च माध्यमिक शिक्षक भर्ती प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन जनजातीय कार्य विभाग आरक्षण रोस्टर का पालन करने में चूक कर गया। ईडब्लूएस के लिए 10 फीसदी आरक्षण नहीं देने की वजह से इस कैटेगरी में आए अभ्यर्थी चयन से बाहर कर दिए गए। रोस्टर में ईडब्लूएस आरक्षण की अनदेखी का पता लगने पर अभ्यर्थियों ने कोर्ट की शरण ली है। हाईकोर्ट अब इन याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करेगा। ऐसे में सुनवाई पूरी होने तक इस कैटेगरी में नियुक्ति लंबे समय के लिए अटक सकती है। यानी पहले कई साल तक पात्रता परीक्षा और चयन परीक्षा का इंतजार करने वाले अभ्यर्थी अभी भी वेटिंग शिक्षक ही बने रहेंगे।
सरकारी सिस्टम सुधरने का नहीं ले रहा नाम
प्रदेश में शिक्षक भर्ती बीते एक दशक में मजाक बन गई है। वैसे तो लगभग सभी विभागों की भर्ती प्रक्रिया खामियों को लेकर कटघरे में रही हैं, लेकिन शिक्षक भर्ती तो शुरूआत से लेकर नियुक्ति के आदेश जारी होने तक विवादों से घिरी रही है। ऐसा क्या है कि हर बार स्कूली शिक्षकों की नियुक्ति में लगातार कमियां सामने आने और बदनामी होने के बाद भी सरकारी सिस्टम सुधरने का नाम नहीं ले रहा है। पहले बात करते हैं ईडब्ल्यूएस आरक्षण से जुड़ी याचिकाओं की जिसने जनजातीय कार्य विभाग के लिए हुई शिक्षक भर्ती में रोड़ा अटका दिया है। प्रदेश में साल 2018 तक ईडब्ल्यूएस आरक्षण अस्तित्व में नहीं था। केंद्र सरकार के संशोधन के बाद इसे देशभर में लागू कर दिया गया है। इस वजह से अब सभी सरकारी विभागों की भर्तियों के आरक्षण रोस्टर में ईडब्ल्यूएस के लिए भी 10 फीसदी पद रखे जाते हैं।
स्कूल शिक्षा को याद रहा, जनजातीय कार्य विभाग भूल गया
साल 2023 में मध्यप्रदेश में स्कूल शिक्षा विभाग ने 7591 और जनजातीय कार्य विभाग ने 1129 पदों पर उच्च शिक्षकों की भर्ती का विज्ञापन जारी किया था। दोनों विभागों द्वारा संयुक्त रूप से 8720 पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई। स्कूल शिक्षा विभाग ने तो आरक्षण रोस्टर का पालन कर एससी-एसटी और ओबीसी के अलावा ईडब्ल्यूएस कैटेगरी में पद आरक्षित किए, लेकिन यहीं जनजातीय कार्य विभाग से चूक हो गई। विभाग ने एससी-एसटी और ओबीसी कैटेगरी तक रोस्टर के तहत पद आरक्षित किए, लेकिन ईडब्ल्यूएस कैटेगरी के लिए आरक्षण देना भूल गया। जबकि कुल 1129 पदों में से 10 फीसदी यानी करीब 113 पद आरक्षित किए जाने थे, लेकिन ऐसा न होने से भर्ती के लिए जारी चयन और प्रतीक्षा सूची से कई पात्र अभ्यर्थी बाहर हो गए।
हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी होने तक करना होगा इंतजार
उच्च माध्यमिक शिक्षक भर्ती के दौरान जनजातीय कार्य विभाग की इस चूक के कारण नियुक्ति से वंचित रहे कई अभ्यर्थियों ने बीते दिनों हाईकोर्ट की शरण ली थी। प्रदेश भर से ऐसे अभ्यर्थियों की याचिकाओं को देखते हुए अब हाईकोर्ट ने इस पर संयुक्त सुनवाई करने का निर्णय लिया है। हाईकोर्ट ने इन याचिकाओं पर जनजातीय कार्य विभाग के अधिकारियों को एक सप्ताह में जवाब के साथ हाजिर होने का भी आदेश दिया है। इन याचिकाओं पर अब इसी माह 30 अगस्त को अगली सुनवाई होना है। यानी जब तक याचिकाओं का निराकरण नहीं हो जाता तब तक जनजातीय कार्य विभाग की उच्च माध्यमिक शिक्षक भर्ती का मामला अटका रहेगा। अब जो अभ्यर्थी अपनी योग्यता साबित करने के बाद सालभर से नियुक्ति पत्र मिलने की आस लगाए बैठे हैं अब उन्हें और इंतजार करना पड़ेगा। जब आरक्षण रोस्टर का निर्धारण तय है फिर भी भर्ती प्रक्रिया में इसकी अनदेखी की गई। ऐसे में सवाल यह है कि सरकार आखिर कब तक ऐसे लापरवाह अफसरों पर रहमो करम करती रहेगी।
ईडब्ल्यूएस आरक्षण भूलने से नियुक्ति से वंचित अभ्यर्थी
भर्ती के लिए जनजातीय कार्य विभाग द्वारा रोस्टर में ईडब्ल्यूएस आरक्षण की अनदेखी के विरुद्ध झाबुआ की अर्पणा हालदार ने हाईकोर्ट की शरण ली है। उन्होंने याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखा है। उनका कहना है जनजातीय कार्य विभाग द्वारा ईडब्ल्यूएस कैटेगरी में पद आरक्षित नहीं गए हैं। भर्ती प्रक्रिया की प्रतीक्षा सूची में उनका चौथा क्रम है। 16 विषयों के लिए उच्च माध्यमिक शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में वे जिस कैटेगरी से अभ्यर्थी हैं उसमें 12 पद आरक्षित किए जाने थे। यदि ऐसा होता तो वे प्रतीक्षा सूची में नहीं बल्कि, चयन सूची में होतीं। दूसरे विषयों के अभ्यर्थियों को भी रोस्टर का पालन न होने से नियुक्ति से वंचित रखा गया है।
डीपीआई भी कर चुका है रोस्टर भूलने की गलती
यह पहला मौका नहीं है जब शिक्षक भर्ती में विभागों के जिम्मेदार अफसरों से चूक हुई हो। उच्च माध्यमिक शिक्षक भर्ती में जनजातीय कार्य विभाग की तरह लोक शिक्षण संचालनालय भी पहले ऐसी गलती कर चुका है। साल 2018 में हुई भर्ती के दौरान डीपीआई ने ईडब्ल्यूएस कैटेगरी में अभ्यर्थियों को नियुक्ति नहीं दी थी। इस मामले में जबलपुर की अभ्यर्थी शिवानी शर्मा, कटनी के घनश्याम पांडे और नरसिंहपुर के मनोज राजपूत की याचिका पर भी हाईकोर्ट सुनवाई कर रहा है। उन्होंने भी ईडब्ल्यूएस आरक्षण का लाभ न मिलने पर हाईकोर्ट की शरण ली थी। इस पर डीपीआई ने अपने वकील के माध्यम से ईडब्ल्यूएस आरक्षण 2019 में लागू होने, जबकि भर्ती प्रक्रिया 2018 से शुरू होने की दलील दी थी। लेकिन हाईकोर्ट ने भर्ती के लिए पात्रता परीक्षा की वैधता एक साल होने और 2018 के बाद पात्रता परीक्षा पांच साल बाद होने के मजबूत तर्क के आधार पर ईडब्ल्यूएस का लाभ देने का आदेश दिया था।
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