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Photograph: (thesootr)
BHOPAL.द सूत्र मन मत: मध्यप्रदेश में मोहन सरकार ने सत्ता में अपने दो साल पूरे कर लिए हैं। दो साल पहले जब नई सरकार बनी थी, तब जनता ने उम्मीदों से भरे जनादेश के साथ नए नेतृत्व को मौका दिया था। बदलाव की चाह थी। रफ्तार की अपेक्षा थी और यह भरोसा भी कि शासन-प्रशासन आम लोगों के करीब आएगा। वक्त बीतने के साथ यही सवाल सबसे अहम बन गए कि क्या सच में हालात बदले? क्या विकास लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी तक पहुंचा? क्या जनप्रतिनिधियों से जनता का संवाद मजबूत हुआ?
ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशने के लिए ‘द सूत्र’ ने डिजिटल सर्वे ‘मन मत’ कराया। इस सैंपल सर्वे में पूरे प्रदेश से लोगों ने लोगों ने खुलकर अपनी राय रखी। नतीजों में कहीं संतोष झलका तो कहीं असंतोष। कहीं भरोसा दिखाई दिया है तो कहीं दूरी।
इस सर्वे में मध्यप्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों के हजारों लोगों ने भाग लेकर अपनी राय दी। सर्वे में एक सबसे चौंकाने वाली बताई सामने आई है। सूबे के 48 प्रतिशत लोग ये मानते हैं कि में यदि आज की स्थिति में चुनाव होते हैं तो मौजूदा विधायक जीत नहीं पाएंगे, जबकि 36 प्रतिशत का कहना है कि जीत जाएंगे। वहीं, 16 प्रतिशत वोटर्स इसे लेकर पसोपेश में हैं। दूसरा, 41 प्रतिशत लोगों का कहना है कि ​विधायकों जमीन से जुड़े मामलों में खासी रुचि रहती है। 38 प्रतिशत लोग विधायकों को ईमानदार मानते हैं।
पढ़िए सर्वे के हर सवाल के नतीजे...
Q1- क्या सरकार ने आपके क्षेत्र में कोई महत्वपूर्ण विकास कार्य कराए हैं?
इस सवाल के जवाब में 38 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उनके इलाके में कोई ठोस विकास कार्य नहीं हुए। यह बड़ा वर्ग उस भावना को दर्शाता है, जहां विकास को लेकर अपेक्षाएं अब भी पूरी होती नहीं दिख रहीं। सड़क, पानी, बिजली, स्वास्थ्य या अन्य बुनियादी सुविधाओं के स्तर पर यह वर्ग बदलाव महसूस नहीं कर पा रहा।
वहीं 31 प्रतिशत लोगों ने माना कि सरकार ने बहुत अच्छे विकास कार्य किए हैं। यह वर्ग उन इलाकों की तस्वीर पेश करता है, जहां योजनाओं का असर दिखा है और लोगों को सीधे तौर पर लाभ मिला है।
24 प्रतिशत लोगों का कहना है कि कुछ विकास कार्य जरूर हुए हैं, लेकिन और बेहतर किया जा सकता था। 7 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे अभी इस विषय पर कुछ नहीं कह सकते।
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Q2- क्या आप अपने विधायक से आसानी से मिल सकते हैं?
इस प्रश्न के उत्तर में 41 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे अपने विधायक से बिल्कुल मिल सकते हैं। यह आंकड़ा बताता है कि कई क्षेत्रों में जनप्रतिनिधि जनता के संपर्क में हैं और संवाद बना हुआ है।
हालांकि, 32 प्रतिशत लोगों ने साफ कहा कि वे अपने विधायक से बिल्कुल नहीं मिल सकते। यह वर्ग उस दूरी की ओर इशारा करता है, जो कई जगहों पर जनता और प्रतिनिधियों के बीच महसूस की जा रही है। 27 प्रतिशत लोगों का अनुभव यह रहा कि कभी-कभार ही मुलाकात संभव हो पाती है।
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Q3- क्या सरकार चुनाव के दौरान किए गए वादों को पूरा कर रही हैं?
चुनाव के समय किए गए वादे किसी भी सरकार की सबसे बड़ी कसौटी होते हैं। इस सवाल पर सर्वे में सबसे तीखी राय सामने आई है। 45 प्रतिशत लोगों का मानना है कि सरकार वादों को पूरा नहीं कर रही। यह आंकड़ा उस असंतोष को दर्शाता है, जो अपेक्षाओं और हकीकत के बीच के अंतर से पैदा हुआ है।
हालांकि 29 प्रतिशत लोगों का कहना है कि सरकार वादे पूरे कर रही है। वहीं, 19 फीसदी लोगों का मानना है कि कुछ वादे पूरे हुए हैं और कुछ बाकी हैं। 7 प्रतिशत लोग इस पर स्पष्ट राय नहीं दे पाए।
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Q4- विधायकों की ईमानदारी के बारे में आपका क्या विचार है?
आज के दौर में ईमानदार होना सबसे बड़ी कसौटी है। विधायकों के ईमानदार होने के सवाल पर 38 प्रतिशत लोगों की राय है कि उनके विधायक ईमानदार हैं। वहीं, 36 प्रतिशत का मानना है कि विधायक ईमानदार नहीं हैं। 26 प्रतिशत लोग ऐसे रहे जो किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे।
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Q5- अगर आज चुनाव हुए तो क्या आपके वर्तमान विधायक दोबारा जीत पाएंगे?
सर्वे का यह सवाल सीधे जनमत का संकेत देता है। 48 प्रतिशत लोगों का कहना है कि अगर आज चुनाव हुए तो उनके वर्तमान विधायक दोबारा नहीं जीत पाएंगे। वहीं, 36 प्रतिशत लोगों का मानना है कि विधायक फिर से जीत सकते हैं, जबकि 16 प्रतिशत लोग अभी कोई राय नहीं बना पाए।
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Q6- क्या आप अपने विधायक या सरकार के बारे में सोशल मीडिया पर या आपसी बातचीत में खुलकर बोल पाते हैं?
अभिव्यक्ति की आजादी के इस दौर में प्रदेश में 51 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे अपने विधायक के बारे में खुलकर नहीं बोल पाते हैं। यह आंकड़ा अभिव्यक्ति को लेकर मौजूद झिझक या दबाव की भावना की ओर इशारा करता है। इसके इतर 37 प्रतिशत लोगों का कहना है कि वे खुलकर अपनी बात रखते हैं, जबकि 12 प्रतिशत इस सवाल पर स्पष्ट राय नहीं दे पाए।
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Q7- मध्यप्रदेश के विधायकों की किन मामलों में खासी रुचि रहती है?
सर्वे में जब यह पूछा गया कि विधायकों की रुचि किन मामलों में ज्यादा रहती है, तो जवाब काफी स्पष्ट रहे। 41 प्रतिशत लोगों का मानना है कि विधायकों की सबसे ज्यादा रुचि जमीन के मामलों में रहती है। 33 प्रतिशत ने खदान को प्रमुख क्षेत्र बताया। 17 प्रतिशत के अनुसार विधायक शराब से जुड़े मामलों में रुचि रखते हैं। 6 प्रतिशत लोगों ने अपराधियों को संरक्षण की बात कही। 2 प्रतिशत का कहना है कि इन सभी में रुचि रहती है, जबकि 1 प्रतिशत कोई राय नहीं बना पाया।
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Q8- क्या विधायकों के रिश्तेदार तेजी से पैसे वाले बन रहे हैं?
दरअसल, सत्ता में यह सवाल सबसे अहम होता है। जैसे ही कोई नेता पॉवर आता है तो उनके साथ रिश्तेदार भी टशन में आ जाते हैं। वे गैरकानूनी कामों के जरिए पैसे बनाने लगते हैं। इस सवाल के जवाब में 44 प्रतिशत लोगों का मानना है कि विधायकों के रिश्तेदार तेजी से पैसे वाले बन रहे हैं, जबकि 31 प्रतिशत ने इससे इनकार किया है। वहीं, 25 प्रतिशत लोग स्पष्ट राय नहीं दे पाए।
Q9- सरकारी योजनाएं: कहां संतोष, कहां असंतोष
सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर भी अलग-अलग तस्वीर सामने आई है-
लाड़ली बहना योजना को लेकर 54 प्रतिशत लोग संतोषजनक और 35 प्रतिशत बहुत संतोषजनक मानते हैं। 9 प्रतिशत असंतुष्ट हैं, 2 प्रतिशत ने राय नहीं दी।
मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना में 40 प्रतिशत संतोषजनक, 30 प्रतिशत बहुत संतोषजनक, 8 प्रतिशत असंतोषजनक और 22 प्रतिशत ने कह नहीं सकते कहा।
सीखो-कमाओ योजना को लेकर सबसे ज्यादा असंतोष दिखा। 53 प्रतिशत ने इसे असंतोषजनक बताया, जबकि 12 प्रतिशत संतोषजनक और 14 प्रतिशत बहुत संतोषजनक मानते हैं। 21 प्रतिशत ने राय नहीं दी।
स्वास्थ्य सेवाओं में 33 प्रतिशत संतोषजनक, 28 प्रतिशत बहुत संतोषजनक, 12 प्रतिशत असंतोषजनक और 27 प्रतिशत ने स्पष्ट राय नहीं दी।
शिक्षा में सुधार को लेकर 41 प्रतिशत संतोषजनक, 23 प्रतिशत बहुत संतोषजनक, 12 प्रतिशत असंतोषजनक और 24 प्रतिशत ने कह नहीं सकते कहा।
इस तरह किया सर्वे
द सूत्र ने यह सर्वे मध्यप्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों पर किया। गूगल फॉर्म के जरिए लोगों की राय मांगी गई। सोशल मीडिया के माध्यम से भी सवाल लिए। इसमें हजारों लोगों ने भागीदारी कर अपनी राय दी। इसी के आधार पर द सूत्र की टीम ने पूरा एनालिसिस करने के बाद सर्वे का रिजल्ट तैयार किया है।
Q10- आखिर में: सरकार को मिले कितने स्टार?
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सर्वे का अंतिम सवाल सरकार के कुल प्रदर्शन से जुड़ा था। काम के आधार पर जनता ने मोहन सरकार को 5 में से औसतन 2.7 स्टार दिए हैं। हालांकि राजनीतिक जानकारों का मानना है कि दो साल के काम के आधार पर यह रेटिंग ठीक कही जा सकती है, क्योंकि अभी तीन साल का वक्त बाकी है।
यह रेटिंग न पूरी तरह संतोष का संकेत है, न पूरी तरह असंतोष का। यह उन दो सालों का सार है, जिनमें कुछ क्षेत्रों में उम्मीदें पूरी होती दिखीं, तो कई मोर्चों पर सवाल अब भी कायम हैं।
“मन मत” सर्वे यह साफ करता है कि मध्यप्रदेश की राजनीति में जनता का नजरिया एकरंगा नहीं है। सरकार के सामने भरोसे को मजबूत करने की चुनौती भी है और काम को और स्पष्ट तरीके से जमीन पर उतारने की जिम्मेदारी भी।
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