BHOPAL. मध्य प्रदेश में मंत्री बनने के चक्कर में विधायकी छोड़ना रामनिवास रावत को भारी पड़ गया। विजयपुर उपचुनाव के नतीजों ने मंत्री रावत के साथ ही बीजेपी को भी बड़ा झटका दिया है। रावत को उनके नजदीकी प्रतिद्वंद्वी और कांग्रेस उम्मीदवार मुकेश मल्होत्रा ने 7 हजार से ज्यादा वोटों से पराजित किया है। वैसे तो विजयपुर विधानसभा क्षेत्र में शुरूआत से ही कांटे की टक्कर थी, लेकिन नतीजे और भी चौंकाने वाले हैं।
रामनिवास रावत कैसे अपने ही घर में घिरे, उनकी हार की पटकथा के पीछे कौन अपने- कौन पराए किरदार रहे इसकी चर्चा भी चल पड़ी हैं। रावत विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में 21 राउंड की गणना के बाद मुकेश मल्होत्रा को 100469 मत प्राप्त हुए हैं। जबकि रावत 93105 के आंकड़े पर सिमट गए हैं। अब केवल औपचारिक घोषणा का इंतजार है। उधर भाजपा खेमे में सन्नाटा पसर गया है तो रावत के दलबदल से लड़खड़ाई कांग्रेस परम्परागत सीट बचाने के बाद उत्साहित है।
सीएम मोहन यादव के नेतृत्व में हुए उपचुनाव की पहली हार
श्योपुर जिले के धाकड़ नेता रामनिवास रावत छह महीने पहले ही कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे। बीजेपी सरकार में वन मंत्री के पद पर उनकी ताजपोशी हुई थी। विधायकी छोड़ने के बाद खाली हुई विजयपुर सीट पर बीजेपी ने रावत पर ही दांव खेला था। इस बार रावत कांग्रेस की जगह बीजेपी के चुनाव चिन्ह पर मैदान में थे। उपचुनाव के नतीजों के बीच रावत के दलबदल से पराजय को लेकर चर्चाओं का दौर चल पड़ा है। विजयपुर हारने के बाद रावत और बीजेपी तो गहन मंथन में जुट गई है। रावत के राजनीतिक भविष्य पर इसका इसका सबसे ज्यादा असर पड़ना तय है। वहीं सीएम डॉ.मोहन यादव के नेतृत्व में हुए उपचुनाव की यह पहली हार होगी।
अपने ही जाल में उलझ गए रावत
विजयपुर विधानसभा उपचुनाव में दिग्गज नेता रामनिवास रावत की हार चौंकाने वाली है। 2023 में हुए चुनाव में रावत कांग्रेस के टिकट पर जीतकर विधायक बने थे लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने भाजपा का दामन थामकर विधायकी छोड़ दी थी। 2023 में रावत ने भाजपा उम्मीदवार को पराजित किया था। उन्हें 69646 वोट मिले थे जबकि बीजेपी उम्मीदवार से जीत का अंतर 18059 था। इस चुनाव में मुकेश मल्होत्रा निर्दलीय उम्मीदवार थे और उन्हें 45 हजार वोटे मिले थे। यदि मल्होत्रा मैदान में वोट न काट रहे होते तो बीजेपी प्रत्याशी सीताराम की जीत तय थी।
पूर्व बीजेपी नेता मुकेश मल्होत्रा सहरिया विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष भी रहे हैं। श्योपुर जिले में आदिवासी समुदाय पर उनकी अच्छी पकड़ है। विजयपुर के सहरिया वोटरों से वे सीधे जुड़े हैं। रावत अपने कद और मंत्री पद के आगे मल्होत्रा की सक्रियता को अनदेखा कर गए। बीजेपी नेताओं ने भी सरकार की चमक-दमक भरे चुनावी कैंपेन के चलते जमीनी हकीकत पर ध्यान नहीं दिया। इसका फायदा मल्होत्रा को मिला। वे अपने वोट बैंक और रावत के दलबदल से नाराज कांग्रेस कार्यकर्ताओं की सक्रियता के सहारे मंत्री को पराजित करने में कामयाब रहे।
सिंधिया-सिकरवार की नाराजगी पड़ी भारी
रामनिवास रावत श्योपुर जिले के दिग्गज नेता रहे हैं। कांग्रेस में भी उनका ऊंचा कद था। रावत माधवराव सिंधिया के समय उनके नजदीकी नेताओं में शुमार थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने तक वे उनके भी विश्वसनीय रहे। कमलनाथ सरकार गिराने के दौरान रावत ने सिंधिया का साथ छोड़ दिया था। तब वे उनके साथ बीजेपी में शामिल नहीं हुए थे जिसके कारण सिंधिया ने उनसे दूरी बना ली थी। छह महीने पहले भी सिंधिया को बताए बिना ही रावत ने नरेंद्र सिंह तोमर की अगुवाई में बीजेपी जॉइन कर ली थी। इस वजह से भी सिंधिया खेमा उनसे नाराज था। जबकि मुरैना-चंबल क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले नरेंद्र सिंह तोमर सक्रिय ही नहीं हुए। उधर, लोकसभा चुनाव में रावत ने कांग्रेस उम्मीदवार नीटू सिकरवार का खुला विरोध किया था। इस वजह से सिकरवार को मुरैना सीट पर हार का सामना करना पड़ा था। छह महीने बाद ही सिकरवार को बदला लेने का मौका मिल गया।
विजयपुर से मिलेगी पटवारी को संजीवनी
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की ताजपोशी के बाद लगातार हार झेल रहे जीतू पटवारी को एक अदद जीत का इंतजार था जो विजयपुर से पूरा हो गया है। अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस को 2024 में लोकसभा की सभी 29 सीटें गंवानी पड़ी थी। इसके बाद छिंदवाड़ा लोकसभा उपचुनाव, अमरवाड़ा विधानसभा उपचुनाव में भी पटवारी का नेतृत्व कारगर साबित नहीं हुए। एक के बाद एक हार का सामना कर रही कांग्रेस में जीतू पटवारी के नेतृत्व पर भी सवाल उठने लगे थे। पटवारी पर विजयपुर और बुधनी विधानसभा चुनाव जीतने का खासा दबाव था। बुधनी सीट पूर्व सीएम शिवराज सिंह के प्रभाव वाली सीट है जबकि विजयपुर सीट वन मंत्री रामनिवास रावत का गढ़ थी। पटवारी दोनों सीटों पर लगातार सक्रिय थे। ऐसे में विजयपुर सीट पर कांग्रेस की जीत से पटवारी को संजीवनी मिल गई है।
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