प्रदेश में इंडस्ट्री प्रमोट करने के दावे खोखले: फण्ड क्रंच से जूझ रहा MPFC

प्रदेश में उद्योगों को प्रमोट करने के लिए सरकार भले ही बड़े-बड़े दावे कर रही हो,  लेकिन सच्चाई यह है कि फंड क्रंच के चलते रतलाम, ग्वालियर और सतना जैसे शहरों के निगम के ऑफिस ही बंद कर दिये गये हैं।

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Abhilasha Saksena Chakraborty
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MPFC offices fund crunch

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MP News: एमपी में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए भले ही बड़ी-बड़ी बातें की जा रही हों,  लेकिन सच्चाई यह है कि खुद मप्र वित्त निगम (MPFC) की क्षेत्रीय शाखाओं के पास ख़ुद ही फंड नहीं बचा है। इनका बजट पहले तो सरकार ने कम  किया, फिर बंद कर किया और अब हालत यह है कि रतलाम, ग्वालियर और सतना जैसे शहरों के निगम के ऑफिस ही बंद कर दिये गये हैं। इन्हें दूसरे कार्यालयों में अटैच कर दिया है। रतलाम को इंदौर, ग्वालियर को भोपाल और सतना को जबलपुर  कार्यालय से अटैच कर दिया है। यहाँ के पदस्थ स्टाफ को भी इंदौर या भोपाल ट्रांसफ़र करके भेज दिया है। इसके बाद यहां की फाइलें और बाक़ी  सामान भी अटैच्ड मुख्यालय या उनके उप कार्यालयों में भेजा जा रहा है। एक तरह अंतरराष्ट्रीय समिटों पर अरबों खर्च किए जा रहे हैं, दूसरी तरफ़  मप्र वित्त निगम (MPFC) जो प्रदेश में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को 1 लाख से 25 करोड़ रुपये तक की फाइनेंसिंग उपलब्ध कराता था, अब खुद संसाधनों (funds) की कमी से जूझ रहा है। 

किराया कम करने से लेकर स्टाफ ट्रांसफर तक

ग्वालियर रीजन का ऑफिस पहले 50,000 रुपये महीने के किराये पर कॉम्प्लेक्स में संचालित होता था, लेकिन खर्च घटाने के नाम पर उसे 25,000 रुपये के रिहायशी हिस्से में शिफ्ट किया गया। इसके कुछ ही समय बाद दफ्तर को पूरी तरह भोपाल शिफ्ट करने का आदेश जारी हुआ। साथ ही रीजनल ऑफिस के डीजीएम से लेकर बाबू तक सात कर्मचारियों को भी तबादला कर दिया गया है

उद्यमियों के लिए चुनौतीपूर्ण होगा प्रशासनिक संपर्क

कोविड-19 के बाद सरकार ने एमपीएफसी के फंड को बंद कर दिया था, जिससे सिर्फ ऋण वसूली पर ध्यान केंद्रित किया गया। अब जब दफ्तर बंद हो गए हैं, तो न सिर्फ अधिकारियों को बार-बार आठ जिलों में दौड़ लगानी पड़ेगी, बल्कि ऋणी उद्यमियों को भी अपने प्रकरणों में कार्यवाही के लिए भोपाल, इंदौर या जबलपुर जाना होगा। MPFC के रीजनल कार्यालय जिनका सालाना बजट 50 करोड़ रुपये तक होता था, वे उद्योगों को नई इकाइयां स्थापित करने में आर्थिक संबल प्रदान करते थे। उनकी गैरमौजूदगी का सीधा असर क्षेत्रीय औद्योगिक विकास पर पड़ेगा, खासकर छोटे शहरों और कस्बों में जहां निजी निवेश पहले से ही सीमित है।
मप्र वित्त निगम की एमडी राखी सहाय का कहना है- क्षेत्रीय कार्यालयों के पास इतना काम नहीं बचा है। इसलिए फिजूल खर्ची रोकने के लिए इन्हें अटैच किया गया है।

FAQ

1: मप्र वित्त निगम (MPFC) के दफ्तर क्यों बंद किए जा रहे हैं?
सरकार ने फिजूल खर्ची रोकने और काम की कमी का हवाला देते हुए ग्वालियर, रतलाम और सतना के ऑफिस को बंद कर मुख्यालयों से अटैच कर दिया है।
2: एमपीएफसी के रीजनल ऑफिस बंद होने से उद्योगों पर क्या असर पड़ेगा?
स्थानीय उद्यमियों को अब ऋण संबंधी कार्यों के लिए भोपाल, इंदौर और जबलपुर की यात्रा करनी पड़ेगी। इससे समय और लागत दोनों बढ़ेंगे।
क्या मप्र वित्त निगम अब उद्योगों को कोई फंडिंग नहीं देगा?
कोविड-19 के बाद MPFC का फंड बंद कर दिया गया था। अब केवल ऋण की रिकवरी पर ध्यान दिया जा रहा है, नई फाइनेंसिंग की संभावनाएं बेहद सीमित हैं।

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