मप्र लोक सेवा आयोग (पीएससी) में 13 फीसदी होल्ड रिजल्ट को लेकर लगी याचिका में 31 जुलाई (बुधवार) को फैसला होना मुश्किल हो गया है। कारण है कि यह याचिका ओबीसी आरक्षण को लेकर लगी 80 से ज्यादा याचिकाओं के साथ क्लब कर दी गई है। यानी अब सभी की सुनवाई साथ होगी। पहले यह रिजल्ट जारी करने को लेकर लगी याचिका सिंगल चल रही थी। इसमें दो अहम आदेश हो चुके थे।
88 याचिकाओं के साथ हो गई लिंक
ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी करने को लेकर विविध याचिकाएं पहले से ही दायर की थी। अब इसी कारण से उलझे 13 फीसदी रिजल्ट की याचिका को भी इसी में लिंक कर दिया गया है। हाईकोर्ट जबलपुर की डबल बैंच में इस केस को 38वें नंबर पर लिस्ट किया गया है और इसमें कुल 88 याचिकाएं लिकं है। जिसमें 13 फीसदी होल्ड रिजल्ट वाली भी एक याचिका (रिट पिटीशन 5596) भी है।
अभी तक इस याचिका में दो आदेश हो चुके
याचिका नंबर 5596 में अभी तक दो अहम आदेश हो चुके थे। पहला आदेश चार अप्रैल को था, जिसमें साफ था कि 13 फीसदी होल्ड रिजल्ट की सूची जारी की जाए और साथ ही बताया जाए कि क्या 87 फीसदी कैटेगरी में कोई ऐसा चयनित हुआ है, जिसके नंबर 13 फीसदी से कम हो? यह आदेश का पालन नहीं करने पर हाईकोर्ट ने 16 जुलाई को मप्र शासन पर 50 हजार की कास्ट लगा दी थी और जवाब देने का अंतिम अवसर दिया था। जिसे लेकर भोपाल में लगातार बैठकें चलती रही।
क्या होगा फिर याचिका का
ओबीसी आरक्षण का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर हो चुका है। यह बात लंबे समय से मप्र शासन हाईकोर्ट में कह रहा है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अभी तक इस पर सुनवाई नहीं हुई है। पहले भी मप्र शासन इस मुद्दे को सुनवाई के लिए टालता रहा और फिर बाद में ट्रांसफर याचिका लगाकर सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करा लिया। साल 2019 से यह यह मुद्दा चल रहा है। लेकिन इसका अभी तक फैसला नहीं हुआ।
किसी को रिजल्ट, अंक कुछ नहीं पता
इसी बीच मप्र शासन ने रूके रिजल्ट जारी करने के लिए सितंबर 2022 में 87-13 फीसदी का फार्मूला लागू कर दिया, जिसके बाद से ही 13 फीसदी पदों का रिजल्ट होल्ड है। इसी के चलते इस कैटेगरी में उम्मीदवारों को अपना रिजल्ट, अंक नहीं पता और ना ही कॉपियां देख पा रहे हैं। खुद 87 फीसदी कैटेगेरी में चयनितों को छोड़कर किसी को भी अपने अंक पता नहीं है।
16 जुलाई के आदेश में बताया दयनीय स्थिति
हाईकोर्ट डबल बैंच ने लिखा है कि याचिकाकर्ता (पीड़ित अभ्यर्थी) के अधिवक्ता द्वारा इस मामले में हो रही देरी की बात कहते हुए तात्कालिता को देखते हुए निर्देश जारी करने पर जोर दिया। राज्य, द्वारा इस मामले में चार अप्रैल के आदेश का आज तक पालन नहीं किया है, उनकी स्थिति दयनीय रही है। लेकिन एक बार राज्य/प्रतिवादी को एक अंतिम अवसर देना उचित समझते हैं। बशर्ते कि उन्हें 50 हजार की कॉस्ट जमा कराना होगी।
पीएससी इसलिए बचना चाह रहा, 4 अप्रैल के आदेश में यह छिपा
पीएससी और शासन इस मामले में रिजल्ट जारी करने से बच रहे हैं। चार अप्रैल के आदेश में दो अहम बाते हैं...
पक्षकार नाम और मेरिट रैंकिंग की सूची सार्वजनि करें। जो 13 फीसदी होल्ड में हैं। उनकी मेरिट रैंकिंग की भी खुलासा हो।
यह भी खुलासा हो कि क्या याचिकाकर्ता की तुलना में कम योग्यता रैंकिंग हासिल करने वाले किसी भी कम उम्मीदवार को 87 फीसदी रिक्ती को भरने में नियुक्त किया गया है।
यह है मामला
मप्र शासन ने ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया। लेकिन मामला हाईकोर्ट में गया तो इसमें 14 फीसदी से ज्यादा आरक्षण देने पर रोक लगा दी गई। शासन ने इसका तोड़ निकाला कि उन्होंने 87-13 फीसदी फार्मूला लागू कर दिया और ओबीसी आरक्षण 14 फीसदी के हिसाब से 87 फीसदी का रिजल्ट जारी किया।
13 फीसदी पद ओबीसी और अनारक्षित दोनों के लिए अलग रख दिए। कहा गया जब ओबीसी आरक्षण पर अंतिम फैसला होगा, तब यह रिजल्ट जारी होगा। यानी यदि ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी हुआ तो यह 13 फीसदी पद उनके कोटे में नहीं तो अनारक्षित के कोटे में चले जाएंगे। लेकिन इसके लिए कोई समयसीमा तय नहीं है। साल 2019 के बाद 2020, 2021 के भी अंतिम रिजल्ट हो गए हैं और सभी 13 फीसदी पद रूके हुए हैं। यही हाल राज्य सेवा के साथ राज्य वन सेवा व पीएससी के अन्य सभी भर्ती परीक्षा यहां तक कि शिक्षक पात्रता परीक्षा तक में लागू कर दिया गया।
यह है सबसे बड़ी समस्या
सबसे बड़ी समस्या यह है कि उम्मीदवार जो भी 13 फीसदी में हैं, उन्हें पता ही नहीं है कि उनके अंक कितने हैं। ओबीसी या अनारक्षित कैटेगरी दोनों यह जानना चाहते हैं कि किसी के भी हक में फैसला आए, लेकिन क्या वह मेरिट के आधार पर चयन सूची में है भी कि नहीं? नहीं है तो वह भविष्य में आगे की ओर बढ़े, उसे कब तक यह जानने के लिए इंतजार करना होगा कि वह चयन सूची के दायरे में आएगा भी या नहीं।
वहीं इस केस के चक्कर में साल 2019, 2020, 2021 किसी भी परीक्षा की मैंस देने वालों को अपनी कॉपियां देखने को नहीं मिल रही है और ना ही अंक पता है कि आखिर वह क्या गलती कर रहा है? इसी के चलते 35 हजार से ज्यादा उम्मीदवार उलझे हुए हैं और सैंकड़ों पद भी अटक गए।
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