मप्र लोक सेवा आयोग ( mppsc ) और सरकार को 13 फीसदी होल्ड रिजल्ट मामले में चार अप्रैल के आदेश का पालन नहीं करने पर हईकोर्ट जबलपुर की डबल बैंच ने मंगलवार को जमकर फटकार लगाई थी। साथ ही सरकार पर 50 हजार की कॉस्ट लगाने की बात कही थी।
इस मामले में अब औपचारिक तौर पर हाईकोर्ट का आदेश अपलोड हो गया है। इसमें अगली सुनवाई 31 जुलाई को है। इस मामले में चार अप्रैल को जारी आदेश किसी भी हाल में सामान्य नहीं है, इसकी दो लाइन आयोग के लिए सबसे ज्यादा चिंता बढ़ाने वाली है, यह होने पर विवाद होना तय है।
HC ने फटकार लगाने वाले आदेश में क्या कहा
हाईकोर्ट डबल बैंच ने लिखा है कि- याचिकाकर्ता (पीड़ित अभ्यर्थी) के अधिवक्ता द्वारा इस मामले में हो रही देरी की बात कहते हुए तात्कालिता को देखते हुए निर्देश जारी करने पर जोर दिया है। राज्य, द्वारा इस मामले में चार अप्रैल के आदेश का आज तक पालन नहीं किया है, उनकी स्थिति दयनीय रही है। लेकिन एक बार राज्य/प्रतिवादी को एक अंतिम अवसर देना उचित समझते हैं। बशर्ते कि उन्हें 50 हजार की कॉस्ट जमा कराना होगी।
अब चार अप्रैल के आदेश को देखते हैं इसमें क्या है
पीएससी और शासन इस मामले में रिजल्ट जारी करने से बच रहे हैं। चार अप्रैल के आदेश में दो अहम बाते हैं
- राज्य और पीएससी उम्मीदवारों के नाम और मेरिट रैंकिंग की सूची सार्वजनिक करें। जो 13 फीसदी होल्ड में हैं। उनकी मेरिट रैंकिंग की भी खुलासा हो
- यह भी खुलासा हो कि क्या याचिकाकर्ता की तुलना में कम योग्यता रैंकिंग हासिल करने वाले किसी भी कम उम्मीदवार को 87 फीसदी रिक्ती को भरने में नियुक्त किया गया है।
अब इसमें सबसे बड़ा पेंच क्या है
हाईकोर्ट ने 13 फीसदी होल्ड रिजल्ट में ओबीसी और अनारक्षित दोनों वर्ग की मेरिट सूची जारी करने की लिए कहा है। यहां तो ठीक है। लेकिन जो दूसरा अहम बिंदु है कि वह यह भी बताए क्या 87 फीसदी कैटेगरी में कोई ऐसा उम्मीदवार भी चयनित हुआ जो इन 13 फीसदी वालों में कम योग्यता यानी मेरिट अंक वाला हो।
यदि यह बात सामने आ जाती है तो इसके बाद नई याचिकाएं लगना शुरू होगी कि कम मेरिट वाला कैसे 87 फीसदी में पद पर चयनित हो गया? यानी 87 फीसदी रिजल्ट पर ही सवाल उठ जाएंगे और पूरी चयन सूची जिसमें अब तो शासन ने भर्ती भी दे दी और ट्रेनिंग भी, उन सभी पर सवाल खड़े होने शुरू हो जाएंगे। यानी की सीधे शब्दों में साल 2019, 2020, 2021 की अंतिम भर्ती के खिलाफ भी कानूनी विवाद होने शुरू होंगे।
आयोग ने भले ही यह गली निकाली लेकिन विवाद तो होंगे
आयोग का सबसे बड़ा तर्क तो यह है कि जो 13 फीसदी कैटेगरी में चयनित हुए वह प्री में चयनित ही इसलिए हुए क्योंकि इस फार्मूले में आ गए क्योंकि कायदे से हम 113 फीसदी बच्चों को ले रहे हैं (87-13-13), जिसमें 87 फीसदी पद के लिए सभी कैटेगरी के तय आरक्षण के साथ जिसमें 14 फीसदी ओबीसी आरक्षण शामिल है। बाकी 13 फीसदी पदों क लिए 13 फीसदी ओबीसी के और 13 फीसदी अनारक्षित दोनों ही वर्ग के ले रहे हैं। इसलिए इनका चयन का दावा गलत होगा क्योंकि यह फार्मूला नहीं होता तो अतिरिक्त 13 फीसदी प्री से ही बाहर हो जाते और वह मेंस तक पहुंचते ही नहीं।
पीएससी ने राज्य शासन द्वारा 87-13 फार्मूला आने के बाद यह रास्ता निकाला था कि सभी उम्मीदवारों को शपथ पत्र लिया गया है, जिसमें कहा गया है कि जो जिस मेरिट सूची में है यानी जो 87 फीसदी रिजल्ट में चयनित हुए वह वहीं रहेगा और जो 13 फीसदी में है वह वही रहेगा, यानी कोई भी एक-दूसरे में जंप नहीं मारेगा। लेकिन इसके बाद भी विवाद तो होंगे।
विवाद क्यों होंगे
यह मूल रिजल्ट और प्रोवीजनल उम्मदीवारों की लिस्ट बनी है, प्री रिजल्ट के आधार पर। इसके अंक अंतिम चयन में काम ही नहीं आते हैं, अंतिम चयन में लगते है मेन्स और इंटरव्यू के अंक।
अब प्री भले ही किसी ने कम अंक कटऑफ बार्डर पर लाकर पास की और वह 13 फीसदी कोटे में चला गया, लेकिन उसके मेन्स के पेपर बहुत अच्छे हैं और इंटरव्यू भी अच्छा गया, तो निश्चित ही उसके अंक ज्यादा होंगे और वह दावा करेगा उसे 87 फीसदी में पद दिया जाए।
जानकारों का पहले भी कहना रहा है कि जो 87-13 फीसदी फार्मूला लगना था, वह मेन्स रिजल्ट या फिर अंतिम रिजल्ट पर लगना था ना कि प्री पर। इससे साफ रहता है कि जो 13 फीसदी कैटेगरी में है वह मेरिट में सबसे अंतिम पायदान वाले ही है। इससे कोई विवाद ही नहीं होता। क्योंकि प्री तो केवल क्वालीफाइंग परीक्षा है, यह आधार गलत था।
87 फीसदी वाला भी करेगा मांग
इसी तरह 87 फीसदी वाले को भी यह समस्या आएगी कि यदि उसके अंक कुछ कम होने से उसे नीचे की पोस्ट मिली, लेकिन उसके अंक यदि 13 फीसदी मेरिट होल्डर से ज्यादा है, तो वह मांग करेगा कि मेरिट के आधार पर उसे 13 फीसदी कोटे में रिजर्व रखी डिप्टी कलेक्टर या डीएसपी जैसे बड़े पद दिए जाएं, कयोंकि मेरिट में वह उनसे आगे है। यानी समस्या दोनों ओर ही है।
यह है पूरा मामला
मप्र शासन ने ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया। लेकिन मामला हाईकोर्ट में गया तो इसमें 14 फीसदी से ज्यादा आरक्षण देने पर रोक लगा दी गई।
शासन ने इसका तोड़ निकाला कि उन्होंने 87-13 फीसदी फार्मूला लागू कर दिया और ओबीसी आरक्षण 14 फीसदी के हिसाब से 87 फीसदी का रिजल्ट जारी किया और 13 फीसदी पद ओबीसी और अनारक्षित दोनें के लिए अलग रख दिए। कहा गया जब ओबीसी आरक्षण पर अंतिम फैसला होगा, तब यह रिजल्ट जारी होगा।
यानी यदि ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी हुआ तो यह 13 फीसदी पद उनके कोटे में नहीं तो अनारक्षित के कोटे में चले जाएंगे। लेकिन इसके लिए कोई समयसीमा तय नहीं है। साल 2019 के बाद 2020, 2021 के भी अंतिम रिजल्ट हो गए हैं और सभी 13 फीसदी पद रूके हुए हैं। यही हाल राज्य सेवा के साथ राज्य वन सेवा व पीएससी के अन्य सभी भर्ती परीक्षा यहां तक कि शिक्षक पात्रता परीक्षा तक में लागू कर दिया गया।
यह है सबसे बड़ी समस्या
सबसे बड़ी समस्या यह है कि उम्मीदवार जो भी 13 फीसदी में हैं, उन्हें पता ही नहीं है कि उनके अंक कितने हैं। ओबीसी या अनारक्षित कैटेगरी दोनों यह जानना चाहते हैं कि किसी के भी हक में फैसला आए, लेकिन क्या वह मेरिट के आधार पर चयन सूची में है भी कि नहीं? नहीं है तो वह भविष्य में आगे की ओर बढ़े, उसे कब तक यह जानने के लिए इंतजार करना होगा कि वह चयन सूची के दायरे में आएगा भी या नहीं।
वहीं इस केस के चक्कर में साल 2019, 2020, 2021 किसी भी परीक्षा की मेन्स देने वालों को अपनी कॉपियां देखने को नहीं मिल रही है और ना ही अंक पता है कि आखिर वह क्या गलती कर रहा है? इसी के चलते 35 हजार से ज्यादा उम्मीदवार उलझे हुए हैं और सैंकड़ों पद भी अटक गए।
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