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एमपी की सबसे बड़ी परीक्षा एजेंसी, संवैधानिक मप्र लोक सेवा आयोग (पीएससी), जो सरकार की नीतियों को मैदान में उतारने वाले अधिकारियों को चुनती है। यानी इसमें काम करने वाले अधिक योग्य, विशेषज्ञ होना चाहिए। लेकिन एक बार फिर आयोग की कार्य़शैली कठघरे में आ गई है।
इनके विशेषज्ञ कमेटी द्वारा तय की गई आंसर की में ऐसे सवालों के आंसर गलत दिए हैं जो आम व्यक्ति को भी मुंह जबानी याद है। अब समस्या यह है गलती आय़ोग के विशेषज्ञों की लेकिन इसमें आपत्ति के लिए बेरोजगारों को राशि देना होगी, अब सवाल यह है कि आयोग की गलती की खामियाजा बेरोजगार युवा क्यों भुगतें।
हद तो यह कि जो महीना आया नहीं उसे सही माना
हद को यह है कि एक प्रश्न में तो उस जवाब को सही माना गया है जो अभी आया ही नहीं अक्तूबर 2025 को, अब जिस विशेषज्ञ ने यह विकल्प दिया वह भी बहुत ही भविष्यवक्ता रहा होगा और इस विकल्प को सही मानने वाला विशेषज्ञ भी उनके जैसा ही होशियार होगा।
अब बताते हैं दोनों सवाल
मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग ने 1 जून को असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती 2024 की भर्ती परीक्षा के पहले चरण में एक जून को 14 विषयों के लिए परीक्षा आयोजित की। इसमें आंसर 6 जून को जारी की गई। इसमें राजनीति शास्त्र यानी पॉलिटिकल साइंस के दो प्रश्नों पर उनकी आंसर की के जवाब से हंगामा मच गया।
1- एक प्रश्न है एमपी में विधानसभा में कुल कितीन सीटे हैं- इस प्रश्न के विकल्प ए 200, बी में 225, सी में 230 सीट और डी में 250 सीट दिए गए।
(आयोग की आंसर की में इसका जवाब बी यानी 225 सीट है, जबकि सही जवाब हर व्यक्ति जानता है 230 सीट यानी विकल्प सी सही है।)
2- एक प्रश्न है- मध्य प्रदेश सहित नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जो बयान दिए थे वो कहां और कब दिए गए थे?। इसमें विकल्प ए भोपाल 15 जनवरी 2025, बी में रायुपर 7 जनवरी 2025, सी नई दिल्ली 7 अक्तूबर 2025 और डी हैदराबाद दो अक्तूबर 2024 दिया गया।
(आयोग ने सही जवाब सी नई दिल्ली 7 अक्तूबर 2025 माना जो अभी इस साल आया ही नहीं है अभी तो जून माह चल रहा है। इसमें सही जवाब है ही नहीं सही जवाब 7 अक्तूबर 2024 नई दिल्ली है)
3- एक और गफलत है। एक प्रश्न है कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियि किस साल अधिनियम यानी इस्टेबिलिस्ड हुआ। इसमें विकल्प ए में 1992, बी में 1988, सी में 1980 और डी में 1990 दिया है।
(इसमें सही जवाब ए 1992 है लेकिन मजे की बात यह है कि इस प्रश्न के इंग्लिश वर्जन में यह विकल्प नहीं दिया इसकी जगह विकल्प में साल 1922 लिखा गया है, यानी यह भी डिलीट होना चाहिए)
सही जवाब चाहिए तो दो 140 रुपए
अब इसमें सबसे बड़ा मुद्दा है कि जब तक आवेदक उम्मीदवार आपत्ति दर्ज नहीं कराता है और सही जवाब होने के साथ में सबूत पेश नहीं करता है, तब तक यह आंसर की आयोग नहीं सुधारेगा। आपत्ति लगाने के लिए एक प्रश्न का उसे 100 रुपए और 40 रुपए ऑनलाइन पोर्टल फीस देना होगी, यानी 140 रुपए प्रति सवाल पर आपत्ति का खर्चा।परीक्षा में हजारों उम्मीदवार बैठे (27 हजार ने दी थी), यानी आंसर सुधरवाना है तो सबूत दो और पैसे दो।
आयोग के विशेषज्ञों की गलती, बनी कमाई का जरिया
पीएससी पहले आंसर की में सवाल पर आपत्ति के 50 रुपए लेता था लेकिन बाद में इसे 100 रुपए कर दिया। एक और नियम चेंज किया गया, यदि आपत्ति सही होती थी तो आपको रिफंड मिलते थे, लेकिन अब राशि रिफंड नहीं होगी यानी गलती भले ही आय़ोग की हो लेकिन भुगतना बेरोजगार युवा को ही है। उलटे आयोग तो इस गलती से कमाई करेगा।
द सूत्र ने एक बार सूचना के अधिकार में आवेदन भी किया था कि अब तक इस तरह आंसर की पर आपत्ति से आयोग को कितनी कमाई हुई और कितना रिफंड किया लेकिन आयोग ने इसे गोपनीय वित्तीय मामला बताते हुए जवाब देने से ही इंकार कर दिया था।
क्या करना चाहिए आयोग को-
आयोग के आंसर की पर पांच दिन में ऑनलाइन आपत्ति लगाना है, नहीं तो यही आंसर की मान्य रहेगी। यानी 140 रुपए प्रति सवाल उम्मीदवार को भरना होगा। वहीं आपत्ति लगाना भी जरूरी है क्योंकि हाईकोर्ट में विविध केस में साफ हो चुका है कि केवल आपत्ति लगाने वाले को ही इसका लाभ मिलता है।
जैसे नीट-यूजी में इंदौर के परीक्षा केंद्रों बत्ती गुल का मामला हो या पहले राज्य सेवा परीक्षाओं के प्री पेपर का। लेकिन आयोग को चाहिए कि वह तत्काल आंसर की वापस ले और नई आसंर की जारी करे। इसमें मप्र की विधानसभा सीट का सही आंसर जारी करे और बाकी दोनों प्रश्न क्योंकि विकल्प नहीं तो डिलीट करे। डिलीट करने पर दोनों के समान अंक सभी उम्मीदवारों को नियमानुसार मिल सकेंगे।
विशेषज्ञों को तत्काल प्रतिबंधित किया जाए
वहीं आय़ोग को कायदे से इस तरह के सवाल बनाने और आंसर की बनाने वाले विशेषज्ञों की पैनल तो तत्काल प्रभाव से सेवा से बर्खास्त कर ब्लैकलिस्ट करना चाहिए जो आयोग की छवि को तो खराब कर ही रहे हैं बल्कि बेरोजगार युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। इनके एक गलत सवाल और जवाब के चलते उम्मीदवार क्वालीफाई होने से तो अटकता ही है फिर मामला कोर्ट में जाता है और खुद आयोग की किरकिरी होती है और परीक्षाओं में देरी अलग। ऐसे में बिना किसी पक्षपात के योग्य विशेषज्ञों को लेते हुए इन सभी को ब्लैकलिस्ट किया जाना चाहिए।
ईएसबी ने भी आपत्ति शुल्क तीन गुना कर दिया है
यही काम कर्मचारी चयन मंडल यानी ईएसबी ने भी किया है। हाल ही में ईएसबी ने आपत्ति लगाने के शुल्क को 60 रुपए से बढ़ाकर 185 रुपए कर दिया है। सीधे तीन गुना। जबकि ईएसबी की परीक्षा शुल्क से कमाई सुनकर आप चौंक जाएंगे। साल 2016 से 2024 के बीच आठ साल में ईएसबी ने 112 परीक्षाएं कराई और इसमें शुल्क से 1.5 करोड़ बेरोजगार आवेदकों से 530 करोड़ रुपए कमाए। इसमें 278 करोड़ रुपए परीक्षा कराने वाली एजेंसी को दिए और बाकी राशि शुध्द ईएसबी की 252 करोड़ रुपए कमाई रही।
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परीक्षा शुल्क एक बार ही लेने का नियम भी खत्म किया
तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने चुनावी साल देखते हुए कई घोषणाएं की थी जिसमें एक थी कि परीक्षा शुल्क एक ही बार लिया जाएगा, यानी ईएसबी ने साल में दस परीक्षाएं ली तो भी शुल्क एक ही बार लगेगा। लेकिन उनके हटते ही और नई सरकार के आते ही साल पूरा होते ही यह निमय खत्म कर दिया गया और सरकार ने कहा कि वह तो एक ही साल के लिए नियम था।
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