INDORE. तीन तलाक, भरण पोषण अधिकार पर सुप्रीम फैसला होने के बाद अब मुस्लिम पर्सनल ला (शरीयत) में बाल विवाह उम्र 15 साल को कानूनी चुनौती मिली है। इस मामले में समाजेवी द्वारा जनहित याचिका इंदौर हाईकोर्ट डबल बैंच में लगी है, जिसमें सुनवाई होने के बाद सभी पक्षकारों को नोटिस जारी किए हैं।
यह मुद्दा उठाया गया है
याचिकाकर्ता अमन शर्मा द्वारा यह याचिका लगाई गई है जिसमें मुस्लिम पर्सनल ला एक्ट 1937 और देश में लागू बाल विवाह निषेध एक्ट 2006 के बीच टकराव की स्थिति को उठाया गया है। शर्मा के अधिवक्ता अभिनव पी. धनोड़कर ने इस मुद्दे पर तर्क किए। उन्होंने कहा कि शरीयत में 15 साल में विवाह की मंजूरी है, वहीं बाल विवाह एक्ट 2006 में महिलाओं के लिए कानूनी तौर पर आयु 18 साल न्यूनतम और पुरूष के लिए 21 साल न्यूनतम है।
याचिका में बताया शरीर पर होने वाले प्रभाव
अधिवक्ता ने इस कानून के कारण शारीरिक प्रभाव को बताया। उनहोंने कहा कि कम उम्र में विवाह बच्चियों के स्वास्थ्य और शिक्षा दोनों पर प्रभाव डालता है। साथ ही सामाजिक-आर्थिक असमानता, लैंगिक भेदभाव को भी बढ़ावा देता है। ऐसे विवाह संविधान में निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। इसमें शिक्षा, स्वास्थय का भी मौलिक अधिकार शामिल है।
सभी पक्षकारों को नोटिस
बैंच ने बहस सुनने के बाद केंद्र सरकार, कानून और न्याय मंत्रालय, महिला व बाल विकास मंत्रालय, मप्र शासन, गृह विभाग, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सभी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। चार सप्ताह में सभी को जवाब देना है।
यह की गई है मांग
याचिका में मांग की है कि बाल विवाह निषेध कानून को विरोधाभाषी कानून मुस्लिम पर्सनल ला पर वरीयता दी जाए, साथ ही सभी समुदायों में विवाह की कानूनी आयु समान हो इसके लिए विधायी संशोधन के निर्देश दिए जाएं, साथ ही इस कानून के पालन आदि के लिए व्यवस्था सुनिश्चित करने और बाल विवाह से प्रभावितों के लिए सेवा की स्थापना की मांग की गई है।
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