पूरे देश में नवरात्र की धूम है। श्रद्धालु अपने- अपने तरीके से देवी की उपासना कर रहे हैं। दुर्गा पंडालों में मां दुर्गा के अलग- अलग रूपों की भव्य झांकियां सजी हैं, मगर छिंदवाड़ा जिले के कुछ आदिवासी गांवों में नजारा कुछ अलग है। एक दर्जन से ज्यादा आदिवासी गांवों में एक ओर मां दुर्गा के पंडालों में देवी की आराधना हो रही है तो कुछ ही दूरी पर ठीक उलट रावेन पेन की आरती। यह रावेन रामायण वाला रावण नहीं, बल्कि आदिवासियों के लोक देवता हैं। यह पहली बार है, जब आदिवासी समाज ने पंडालों में रावेन मूर्तियों की झांकी लगाई है। उनका मानना है कि वह हजारों सालों से रावेन की उपासना करते आ रहे हैं। तो आइए जानते हैं इस रोचक परंपरा के बारे में सबकुछ…
तो चलिए जमुनिया गांव
छिंदवाड़ा से सिर्फ 16 किलोमीटर दूर बसा है जमुनिया गांव है। यहां के आदिवासी ग्रामीणों ने इस बार नवरात्रि के दौरान रावेन पेन की प्रतिमा स्थापित की है। ऐसी प्रतिमाएं जिले के करीब एक दर्जन गांवों में स्थापति की गई हैं। नरसिंहपुर रोड पर बसे जमुनिया में इस नवरात्रि में लोग पारंपरिक तरीके से रावेन पेन की प्रतिमा की पूजा कर रहे हैं। यहां रावेन पेन की प्रतिमा को भगवान शिव की पूजा करते हुए दिखाया गया है। बता दें कि आदिवासी समाज में शिव आराध्य माने जाते हैं। रावेन के इन पंडालों में फर्क सिर्फ इतना है कि यहां आरती की बजाय समरणी की जाती है।
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जानिए कौन है रावेन पेन, रावण से भी आदिवासी समुदाय का नाता
आदिवासी समुदाय के लोग बताते हैं कि रावेन पेन रामायण के रावण नहीं, बल्कि उनके पूर्वजों द्वारा पूजे जाने वाले देवता हैं। रावेन को आदिवासी समाज में विशेष महत्व प्राप्त है। उनके पंडाल में पांच कलश स्थापित किए गए हैं। दशहरा के दिन रावेन का विसर्जन किया जाएगा। बता दें कि छिंदवाड़ा जिले के रावणवाड़ा गांव में रावण का मंदिर भी है। यहां के आदिवासी समाज के लोग रावण को अपना देवता मानते हैं। इसी तरह कई जगहों पर मेघनाथ की भी पूजा की जाती है। यही कारण है कि आदिवासी समाज के लोग दशहरे पर रावण दहन का विरोध करते हैं और इसे रोकने की मांग भी करते हैं। यही कारण है कि गोंडवाना महासभा ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर विरोध जताया है और मांग की है कि समाज खंडराई पेन और महिषासुर पेन की पूजा करता है। अत: उनका पुतला देवी की प्रतिमा के साथ विसर्जित नहीं किया जाए। साथ ही गांवों में रावेन की प्रतिमा हमारे समाज ने स्थापित की है उसे प्रशासन संरक्षण और अनुमति दे और रोक न लगाए।
पुलिस की निगरानी में हो रही आराधना
शहर के आसपास के अन्य गांवों में भी रावेन की प्रतिमा स्थापित की गई है। पुलिस प्रशासन यह सुनिश्चित कर रहा है कि इससे किसी प्रकार की अशांति न फैले। संत विप्र पुरोहित सेवा संगठन के जिला अध्यक्ष का मानना है कि आदिवासी समाज सनातन परंपरा का हिस्सा है। उनकी मान्यताओं का सम्मान किया जाना चाहिए।
अहिरावेन से भी जुड़ाव
ये दस सिर वाले रावण की नहीं, बल्कि एक सिर वाले रावेन की पूजा की जा रही है। ये हमारे आराध्य है। आदिवासी समाज में 22 से ज्यादा रावेन की मान्यता है। पातालकोट में एक रावेन है जो जिसे अहिरावेन के रूप में पूछते हैं।
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