News Strike : नए और पुराने भाजपाइयों की जंग में एक बार फिर पुराने भाजपा नेता जंग हारते दिख रहे हैं। निगम मंडलों की नियुक्ति के लिए बीजेपी ने जो फार्मूला तैयार किया है। उससे ये तो तय हो गया है कि अपनी पुरानी पार्टी को छोड़ बीजेपी में आए नए नेताओं के वारे न्यारे होने वाले हैं। जो पुराने नेता हैं, वो एक बार फिर हाथ मलते रह जाएंगे। नए भाजपाइयों की वजह से पार्टी के अधिकांश पुराने नेता नाराज हैं। अब नए फैसलों से ये साफ है कि पुराने भाजपाइयों की नाराजगी से पार्टी को कोई खास फर्क नहीं पड़ रहा है।
केपी यादव को मिल सकती है नई जिम्मेदारी
बीजेपी संगठन को मजबूत बनाने के लिए जिलों में प्रभारियों की नियुक्ति हो चुकी हैं। अब सरकार का फोकस निगम और मंडल के खाली पदों को भरने पर शिफ्ट हो गया है। हालांकि ये नियुक्ति कब होंगी इस पर पार्टी ने कुछ क्लियर नहीं किया है लेकिन एक नया क्राइटेरिया जरूर साफ कर दिया है। इस नए क्राइटेरिया के तहत ऐसे नेताओं को मौका मिलेगा जो विधानसभा चुनाव या लोकसभा चुनाव के दौरान अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी का हिस्सा बन गए। इस लिस्ट में कई बड़े नाम भी शामिल हैं और, ऐसे नेताओं के नाम भी शामिल हैं जो दल बदल कर आए लेकिन टिकट नहीं हासिल कर पाए। अब उन्हें पार्टी निगम मंडलों के पदों के जरिए ओबलाइज कर सकती है। इस नए क्राइटेरिया ने जब से अटकलों की गली पकड़ी है तब से कुछ नाम ऐसे हैं जिनका जिक्र बार-बार हो रहा है, जिसमें एक नाम गुना के पूर्व सांसद केपी यादव का भी है। जो पहले कांग्रेस से बीजेपी में आए और ज्योतिरादित्य सिंधिया को हराया। उसके बाद उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला, लेकिन उन्होंने पार्टी नहीं बदली। जिसका फल अब उन्हें मिल सकता है।
वो क्राइटेरिया जो इस बार निगम मंडल में नियुक्ति का आधार बन सकता है...
पहला क्राइटेरिया दल- बदलू नेताओं का
सबसे पहला क्राइटेरिया दलबदलू नेताओं का है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस को कमजोर करने के लिए बीजेपी ने अनऑफिशियल रूप से ऐसी सेल बना दी थी जिसकी जिम्मेदारी दल बदल कराना ही था। इस सेल ने बड़े पैमाने पर काम किया और कांग्रेस के अलावा दूसरी पार्टियों के नेता को भी बीजेपी का सदस्य बना लिया। इस सेल की उपलब्धि ये रही कि कांग्रेस के दिग्गज नेता सुरेश पचौरी सहित 6 पूर्व विधायक, एक महापौर, 205 सरपंच और इतने ही पार्षद बीजेपी में शामिल हो गए। करीब 500 नेता ऐसे बीजेपी का हिस्सा बने जो कभी जनप्रतिनिधि रहे थे। इसके अलावा 17 हजार कांग्रेस कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल हुए। पूर्व कैबिनेट मंत्री नरोत्तम मिश्रा तो ये दावा तक कर चुके हैं कि उन्होंने एक दिन में एक लाख लोगों को बीजेपी में शामिल किया है। जिसमें नब्बे फीसदी से ज्यादा कांग्रेसी हैं। अब इनमें से कुछ नेताओं को निगम-मंडल की कमान सौंपी जा सकती है। जिसमें दीपक सक्सेना, पूर्व सांसद गजेंद्र राजूखेड़ी, शिवदयाल बागरी, दिनेश अहिरवार और शशांक भार्गव जैसे नेताओं का नाम रेस में शामिल है।
दूसरे क्राइटेरिया में सीनियर विधायक
क्राइटेरिया के दूसरे पॉइंट में उन नेताओं को रखा गया है जो सीनियर विधायक हैं लेकिन उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया। मोहन कैबिनेट में सांसद से विधायक बने कुछ कद्दावर नेता शामिल हैं। सिंधिया समर्थकों में तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत और प्रद्युम्न सिंह तोमर रिपीट किए गए हैं। ताजा-ताजा दल बदलकर आए राम निवास रावत भी मंत्री बनाए जा चुके हैं लेकिन शिवराज सरकार में मंत्री रहे 19 विधायकों को इस बार मौका नहीं मिला है। संभावनाएं हैं कि उन्हें निगम मंडल के जरिए मंत्री या राज्यमंत्री दर्जा दिया जाए। बीजेपी के कुछ ऐसे भी नेता हैं जिन्होंने संगठन में रहते हुए पार्टी को मजबूत बनाने के लिए भरपूर मेहनत की। ऐसे नेताओं को भी निगम मंडल में जगह दी जा सकती है। सूत्रों के मुताबिक मिल रही खबर को मानें तो शैलेंद्र बरुआ और जितेंद्र लटोरिया को ये पद मिल सकता है। इसके अलावा नरेंद्र बिरथरे, गौरव रणदिवे, डॉ. हितेश बाजपेयी, यशपाल सिंह सिसोदिया, लोकेंद्र पाराशर और विनोद गोटिया भी निगम मंडल में पद के दावेदार माने जा रहे हैं।
निगम मंडल में नियुक्ति का मसला बीच-बीच में जोर पकड़ता रहा है। नेताओं को उम्मीद थी कि लोकसभा चुनाव होते ही ये पद भर दिए जाएंगे, लेकिन अब मामला 2025 तक जाता हुआ नजर आ रहा है। बीजेपी के ही पुराने पैटर्न को देखें तो लगता है कि ये नियुक्तियां और लेट भी हो सकती हैं। शिवराज सरकार ने भी चुनाव होने के डेढ़ या दो साल पहले ही निगम मंडल में 25 नियुक्ति की थी। चुनाव से करीब सात महीने पहले 35 और नियुक्तियां कर दी गईं। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी करने के बाद मोहन यादव ने सारी नियुक्ति निरस्त कर दी थीं। उसके बाद से नेताओं को दोबारा नियुक्ति का शिद्दत से इंतजार है। अब तो क्राइटेरिया भी तैयार है। देखना ये है कि इन क्राइटेरिया के आधार पर नामों का ऐलान कब होता है।
सदस्यता अभियान के आधार पर निगम मंडल का पद
सबसे लास्ट क्राइटेरिया में वो नेता आते हैं जो पार्टी के भूले बिसरे नेता हैं। ऐसे नेता जिनके टिकट दल बदलुओं की वजह से कट गए। या ऐसे नेता जो एक समय पार्टी वफादार रहे हैं लेकिन दल बदलुओं की वजह से नाराज हैं या फिर दल-बदल कर आए। ऐसे नेता जो टिकट मिलने के बावजूद जीत नहीं सके। ऐसे नेताओं को भी निगम मंडल में मौका मिल सकता है। इस क्राइटेरिया के आधार पर अपने नाम की उम्मीद लगा चुके नेताओं को एक क्राइटेरिया और समझना होगा। जिसे मोस्ट इंपोर्टेंट क्राइटेरिया माना जा सकता है। वो इसलिए कि सारे क्राइटेरिया एक तरफ और ये क्राइटेरिया एक तरफ। जो पहले ज्यादा इंपोर्टेंट है। निगम मंडल में पद मिलने का आधार सदस्यता अभियान है। सीएम मोहन यादव और संगठन दोनों ये साफ कर चुके हैं कि पद उन्हें ही मिलेगा, जिनका परफॉर्मेंस सदस्यता अभियान में जबरदस्त होगा। इस क्राइटेरिया के डिटेल आप न्यूज स्ट्राइक के पुराने एपिसोड में जान सकते हैं।
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