News Strike : पार्टी क्राइटेरिया को तोड़ेंगे शिवराज, बेटे को दिलवाएंगे बुधनी विधानसभा का टिकट या पार्टी लाइन को करेंगे फॉलो ?

पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। जिसके बाद बुधनी विधानसभा सीट खाली है। अब वहां उपचुनाव की घंटी बजने जा रही है, लेकिन सवाल ये है कि बीजेपी के इस गढ़ में अब कौन होगा शिवराज का सियासी वारिस।

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान को उनके बीस साल से ज्यादा की मेहनत का फल मिलेगा या फिर पार्टी एथिक्स के नाम पर शिवराज सिंह चौहान को खामोश कर दिया जाएगा। इसमें कोई शक नहीं कि सीएम शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के सबसे लोकप्रिय राजनेताओं में से एक हैं। जो पैठ राज्य के हर जिले में है वैसा ही प्यार कार्यकर्ताओं के बीच भी रहा है, लेकिन सीएम पद से हटने या हटाए जाने के बाद से शिवराज सिंह चौहान के लिए अपनी ही पार्टी में सब कुछ बहुत आसान नहीं रहा। बीच में तो खबरें ये भी आईं कि विधानसभा में जीत का क्रेडिट लाडली बहना को देने की वजह से आलाकमान के स्तर पर उनसे खासी नाराजगी भी है। उन्हें लोकसभा का टिकट मिलना भी मुश्किल लग रहा था, लेकिन अब केंद्रीय केबिनेट में मंत्रीपद से भी नवाजे जा चुके हैं। ऐसा होने के बाद क्या अब उन्हें अपनी बीस साल पुरानी विरासत से हाथ धोना पड़ेगा या पार्टी उनके तरफ नर्म रुख अपनाएगी।

अब कौन होगा शिवराज का सियासी वारिस

पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। जिसके बाद बुधनी विधानसभा सीट खाली है। अब वहां उपचुनाव की घंटी बजने जा रही है, लेकिन सवाल ये है कि बीजेपी के इस गढ़ में अब कौन होगा शिवराज का सियासी वारिस। वैसे शिवराज सिंह चौहान उस कद के नेता हैं कि पार्टी फोरम पर अपनी बात आसानी से रख सकते हैं और बता सकते हैं कि ये सीट किसे मिलनी चाहिए. और, पसंद पूछ ली गई तो इसमें कोई शक नहीं कि वो सबसे पहले अपने बेटे कार्तिकेय सिंह चौहान का ही नाम लेंगे। जो बहुत समय शिवराज सिंह चौहान के सियासी कामकाज, इस क्षेत्र में देखना शुरू कर चुके हैं। इतना ही नहीं शिवराज सिंह चौहान के इलेक्शन कैंपेन में भी वो खासे सक्रिय रहे हैं, तो क्या शिवराज का पुराना रिकॉर्ड और निष्ठा देखते हुए उनकी बनाई इस मजबूत पिच पर उनके बेटे को कार्तिकेय चौहान को बल्लेबाजी का मौका बीजेपी दे सकती है। कतार में वो नाम भी है जिन्होंने 2005 में अपनी जीती जिताई सीट छोड़कर त्याग किया, लेकिन सिला आज तक नहीं मिला। राजेन्द्र सिंह ने 2005 में शिवराज के कहने पर बुधनी सीट से त्यागपत्र दे दिया था। संभवतः वो भी सीट के दावेदार हों, लेकिन शिवराज जैसे बड़े कद के नेता के लिए भी अपनी मर्जी से अपनी ही सीट पर टिकट दिलावाना आसान नहीं है। पार्टी लाइन उनके आड़े आ  सकती है। जो बीजेपी परिवारवाद का नारा दे देकर कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश करती रही है। क्या वहां शिवराज के परिवार के किसी सदस्य की सियासी ग्रोथ मुमकिन होगी। वो भी तब जब शिवराज सिंह चौहान आलाकमान की नजरों में खटकते रहे हैं। तब क्या पार्टी लाइन का हवाला देकर आलाकमान शिवराज सिंह चौहान को खामोश नहीं करवा सकते। वैसे भी शिवराज सिंह चौहान उस परिपाटी के नेता रहे हैं जो पार्टी के डिसिप्लीन और आदेश को मानने में सबसे अव्वल है। वो विरोध दर्ज करवाएं इसकी संभावनाएं कम ही होती हैं। 

शिवराज सिंह की च्वाइस से फाइनल होगा प्रत्याशी

बात करें बुधनी विधानसभा सीट की तो एक तरीके से शिवराज सिंह का होम ग्राउंड ही है। इस सीट से वैसे बीजेपी के सामने उम्मीदवारों का संकट नहीं है, लेकिन सवाल बस यही है कि नाम शिवराज की च्वाइस से फाइनल होगा या पार्टी की मुहर पर। खास बात ये है कि इस सीट पर किरार समाज का वोट बैंक सबसे ज्यादा मजबूत है और किरार समाज का नेता यहां दमदार जीत दर्ज करवाता रहा है। वजह है यहां रहने वाले 40 हजार से ज्यादा किरार वोटर। दूसरा शिवराज सिंह चौहान का चेहरा,  यहां बीजेपी के लिए हमेशा जीत की गारंटी ही रहा है। जिस वक्त विधानसभा चुनाव के लिए टिकट बांटे गए थे तब भी शिवराज सिंह चौहान की च्वाइस को तवज्जो दी गई थी। न सिर्फ बुधनी में बल्कि पूरे प्रदेश में भी उनकी मर्जी हावी रही थी।  अब इसमें कोई दो राय नहीं कि बुधनी में भी उनकी राय अहम रहेगी, लेकिन सवाल ये है कि क्या शिवराज कार्तिकेय का नाम बढ़ा पाएंगे। बीजेपी में जिस तरह से परिवारवाद को लेकर क्राइटेरिया बनाया गया है, उसमें ये कम मुमकिन लगता है।

फिलहाल यहां जो नाम मजबूती में है, उनमें पहला नाम शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय सिंह चौहान का है। कार्तिकेय अभी संगठन में किसी पद पर नहीं हैं, लेकिन अपने पिता शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते हुए ही उन्होंने बुधनी सीट पर जमीनी तैयारी शुरु कर दी थी। यहां तक की बीते विधानसभा चुनाव में कार्तिकेय और साधना सिंह ही यहां सक्रिय रहे। बीजेपी को जीत दिलाने के लिए शिवराज सिंह चौहान तो पूरे प्रदेश में सभाएं कर रहे थे. लिहाजा ये नहीं कहा जा सकता कि कार्तिकेय इस पिच पर कमजोर पड़ सकते हैं, लेकिन सवाल उनके सिलेक्शन का है। क्या पार्टी बुधनी में परिवारवाद का बीज बोने देगी।

चौहान के यह करीबी होंगे उम्मीदवार 

दूसरा नाम है राजेंद्र सिंह का. जो शिवराज सिंह चौहान के करीबी भी रहे हैं और उनके प्रति निष्ठावान भी रहे हैं। 2003 में वो बुधनी विधानसभा सीट से चुनाव जीते थे, लेकिन साल 2005 में शिवराज सिंह चौहान के कहने पर एक मिनट में सीट खाली कर दी थी। ये जानते हुए भी कि एक बार सीट हाथ से निकली तो दोबारा नहीं मिलेगी,क्योंकि फिर शिवराज सिंह चौहान के नाम ही ये सीट हो जाएगी। उसके बावजूद उन्होंने कोई सेकंड थोट नहीं दिया। हालांकि उन्हें निगम मंडलों में जगह देकर भरपाई की गई, लेकिन विधानसभा या लोकसभा का टिकट कभी नहीं मिला। इस लिहाज से देखें तो इस बार राजेन्द्र सिंह को बीस बरस पहले किए गए उनके त्याग का सिला दिया जा सकता है।

किरार समाज पर फोकस

पार्टी अगर सिर्फ किरार समाज पर फोकस करती है तो कार्तिकेय सिंह चौहान से बेहतर कोई उम्मीदवार नहीं हो सकता है। हालांकि रेस यहां भी बरकरार है। यहां दूसरा नाम है रवीश चौहान बीजेपी किसान मोर्चे के पूर्व प्रदेश महामंत्री रहे रवीश किरार समाज में सक्रिय हैं। उन्हें भी टिकट मिलता है तो उनकी जीत पर भी कोई संशय नहीं किया जा सकता। बुधनी सीट में किरार समाज का वोट निर्णायक है। यही वजह है कि कि 1985 छोड़कर हमेशा किरार समाज के चेहरे को ही टिकट मिलती रही और जीतते रहे। इस सीट 1985-90 शिवराज सिंह चौहान, 1990 में शिवराज सिंह चौहान इस सीट से विधायक चुने गए, लगभग डेढ़ साल बाद उन्हें पार्टी ने उपचुनाव में विदिशा से टिकट दी और जीतकर वे सांसद बने। शिवराज के बाद किरार समाज से ही कांग्रेस नेता राजकुमार पटेल चुनाव जीते और फिर 2003 में राजकुमार पटेल के भाई देव कुमार पटेल विधायक बने। बस 2003 में ठाकुर समाज के राजेंद्र सिंह जीते, फिर उन्होंने शिवराज के लिए सीट छोड़ दी, उप चुनाव में शिवराज सिंह जीते। 

कार्तिकेय सिंह चौहान की जीत....

कार्तिकेय सिंह चौहान को टिकट मिलता है तो उनकी जीत पर भी कोई संशय नहीं है। ये भी संभव है कि वो अपने पिता की तरह एक जमीनी राजनेता ही बने, लेकिन पहली जंग पार्टी से टिकट मिलने की. पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह अक्सर अपनी जीत का क्रेडिट एंटी परिवारवाद वाली रणनीति को ही देते रहे हैं। ये रूल भी बताया जा चुका है कि अगर दो लोग एक ही परिवार से हैं तो लाभ का पद किसी एक ही सदस्य को दिया जाएगा तो, अब शिवराज सिंह चौहान क्या करेंगे। क्या वो कोशिश करेंगे एक बार बेटे के नाम की सिफारिश करने की और, अगर पार्टी किसी एक के लाभ के पद पर रहने की हिमायत करती है तो क्या शिवराज सिंह चौहान बेटे की खातिर अपना केंद्रीय मंत्री पद कुर्बान करेंगे। 

ये तय है कि बुधनी के फैसले को अंजाम तक पहुंचाने के लिए गेंद शिवराज सिंह चौहान के पाले में ही है। उन्हें बस ये देखकर किक लगानी है कि दूसरे छोर पर खिलाड़ी कौन है और हवा का रुख क्या है...?

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