News Strike: दिल्ली से खाली हाथ लौटे नागर सिंह चौहान की मुस्कान में छुपे कितने राज ? सियासी ड्रामे की पूरी टाइमलाइन

दिल्ली दरबार से वैसे तो नागर सिंह चौहान खाली हाथ लौटे हैं, लेकिन ऐसा क्या जवाब मिला कि आधी रात को उनकी मुस्कुराती हुई तस्वीर शेयर करना जरूरी हो गया।

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Harish Divekar
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Nagar Singh Chauhan
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News Strike : नागर सिंह चौहान को आलाकमान ने क्या जवाब दिया..। दिल्ली दरबार से वैसे तो नागर सिंह चौहान खाली हाथ लौटे हैं, लेकिन ऐसा क्या जवाब मिला कि आधी रात को उनकी मुस्कुराती हुई तस्वीर शेयर करना जरूरी हो गया।  ये तस्वीर मंगलवार 23 जुलाई की देर रात से ही जबरदस्त तरीके से वायरल है। जिसे आप सभी ने देखी होगी। तस्वीर का इशारा तो साफ है कि बीजेपी में सब कुछ फिर से ऑल-इज-वैल है। इस मुस्कान के पीछे कुछ तो राज है। वो राज क्या है। पढ़ते रहिए...सब पता चल जाएगा।

लौट के बुद्धु घर को आए

अब बीजेपी में सब कुछ ऑल इज वेल है। कम से कम दिखाई तो यही दे रहा है। पुरानी कहावत है, लौट के बुद्धु घर को आए। अब ये बुद्धु कौन हैं। आप लोग समझदार हैं समझ ही गए होंगे। खैर इस जुमलेबाजी और कहावत को छोड़कर कुछ ठोस बातें कर लेते हैं। हम बात कर रहे हैं नागर सिंह चौहान की। जो बीजेपी के जितने दमदार नेता हैं और उतना ही दमखम आदिवासी क्षेत्र और मतदाताओं के बीच भी रखते हैं। ये उनके ही रसूख का असर कहा जा सकता है कि रतलाम में उनकी पत्नी अनीता नागर सिंह चौहान को जीत मिली। इस लोकसभा सीट से जीतने वाली वो पहली महिला हैं।

विभाग छिन जाना तौहीन लगने लगा

उनका सियासी सफर वैसे तो स्मूथ ही चल रहा था। वो कई बार विधायक का चुनाव जीते। इस बार उन्हें मंत्री पद भी मिला। परिवारवाद की खिलाफत करने वाली पार्टी ने उनकी पत्नी को भी लोकसभा का टिकट दिया और वो जीतीं भी। अचानक सियासत का मौसम बदला। दलबदलुओं की बारिश शुरू हुई. जिस सियासी रास्ते पर नागर सिंह चौहान चल रहे थे वहां इस बारिश ने ऐसे गड्ढे किए कि गाड़ी डगमगा गई. कांग्रेस से आए रामनिवास रावत को बीजेपी ने मंत्री बनाया और वही एक विभाग रावत को सौंप दिया जो अब तक नागर सिंह चौहान के पास था। ये विभाग था वन एवं पर्यावरण। ऐसा नहीं था कि इस विभाग के छिन जाने के बाद नागर सिंह चौहान विभाग विहीन मंत्री हो गए थे। उनके पास अब भी आदिवासी कल्याण विभाग था और है। एक विभाग छिन जाना नागर सिंह चौहान को अपनी तौहीन लगने लगा।

पॉलीटिकल ड्रामे का द एंड

वैसे तो वो बीजेपी की चाशनी में पगे हुए नेता ही हैं फिर भी मुखर विरोध कर बैठे और दिल्ली तक दौड़ लगा दी। यहां तक तो आप सब जानते हैं। उनका विरोध इतना मुखर था कि खुद इस्तीफा देने के बाद पत्नी को भी इस्तीफा दिलाने के लिए तैयार थे। इस पॉलीटिकल ड्रामे का द एंड हुआ है इस तस्वीर के साथ। इस तस्वीर में सीएम मोहन यादव हैं। प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा हैं और हितानंद शर्मा भी दिख रहे हैं और नागर सिंह चौहान भी हैं जो हंसते हुए दिखाई दे रहे हैं। ये मुस्कान उतनी सहज नहीं है जितनी दिखाई दे रही है। तल्ख तेवर से लेकर नर्म तेवरों के बीच ऐसा बहुत कुछ है जो जान लेना जरूरी है। इसके लिए आपको छोटी सी टाइम लाइन बता देता हूं। नागर सिंह चौहान अपनी पत्नी के साथ दिल्ली पहुंचे थे। तब तक तेवर में कोई कमी नहीं थी। सुबह करीब 11 बजे जेपी नड्डा से मुलाकात के लिए वो मध्यप्रदेश भवन से संसद भवन पहुंचे। तीन घंटे तक इंतजार करते रहे। इस बीच मीडिया वाले लगातार उनसे पूछते रहे कि क्या हुआ है और नागर सिंह चौहान का जवाब रहा सिर्फ एक की मीटिंग चल रही है। बाद में खबर आई कि वो खाली हाथ लौटे हैं। जेपी नड्डा ने उन्हें समय ही नहीं दिया। दिन में उन्होंने शहीद चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर एक वीडियो जारी किया। जिसमें मंत्री बताने की जगह अलीराजपुर का विधायक ही बताया। ये हथकंडा भी काम नहीं आया। आखिरकार नागर की नड्डा से मुलाकात नहीं हो सकी। थक हार कर नागर शाम को मप्र भवन लौटे और तुरंत ही एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गए। वो दिल्ली से भोपाल भी नहीं पहुंचे होंगे कि यहां उनसे मुलाकात की तैयारियां तेज हो गईं। उन्हें सीएम हाउस बुलाया गया। मीटिंग हुई और फिर ये खुशनुमा तस्वीर जारी हो गई।

बीजेपी की जल्दबाजी क्यों?

अब सवाल ये उठता है कि नागर के मामले को सुलझाने में बीजेपी ने इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई. जिस दबदबे को दिल्ली ने नकार दिया क्या प्रदेश बीजेपी को आदिवासी क्षेत्र में उसी दबदबे का डर है। इसका जवाब है हां..। बीजेपी बिलकुल नहीं चाहती कि अभी आदिवासी वोटर्स में जरा सी भी खलबली मचे। वैसे भी आदिवासी वोटर्स को अपने पाले में लाने के लिए बीजेपी ने बहुत पापड़ बेले हैं। नागर सिंह चौहान की नाराजगी से सारा खेल खराब हो सकता था। यही वजह थी कि दिल्ली से वापसी के साथ ही राजधानी भोपाल में सियासी सरगर्मियां तेजी से बढ़ीं और नागर सिंह चौहान से मुलाकात की गई। इस बैठक में क्या हुआ ये तो कोई खुलकर नही बोला, लेकिन ये बताया जा रहा है कि नागर सिंह चौहान को बड़ी जिम्मेदारी देने का आश्वासन दे दिया गया है। ये तो हुआ पार्टी का एंगल। अब जरा इसे नागर सिंह चौहान के एंगल से समझिए। नागर सिंह चौहान अगर पार्टी के सामने अड़ भी जाते तो उन्हें क्या मिलता। कई सालों तक चुनाव लड़ने के बाद उन्हें अब जाकर मंत्री पद मिला है। पत्नी भी सांसद का टिकट हासिल करने में कामयाब रहीं औऱ जीतीं भी। अब बीजेपी उनको इससे ज्यादा क्या दे सकती है और, अगर नागर सिंह चौहान नाराजगी पर डटे ही रहते तो भी क्या हासिल कर लेते। उल्टे इतने सालों की निष्ठा भी सवालों के घेरे में आ जाती। दिल्ली दरबार में भी दाल नहीं गली, गुस्से की दाल गलने का सवाल भी बीजेपी में नहीं उठता है। मुंह लटकाने की जगह इस तरह उनका मुस्कुराना ही बेहतर है। ये भी माना जा रहा है कि उन्हें गुस्सा छोड़कर वापसी करने में शिवराज सिंह चौहान ने अहम भूमिका अदा की है।

घटनाक्रम का सबसे जरूरी एंगल

अब इस पूरे घटनाक्रम का सबसे जरूरी एंगल भी जान लीजिए। मध्यप्रदेश में किसी भी वक्त कुछ खास सीटों पर विधानसभा उपचुनाव हो सकते हैं। इसमें से एक सीट तो बुधनी की है। जो शिवराज सिंह चौहान के सांसद बनने के बाद खाली हुई है। इस सीट पर बीजेपी को फिलहाल कोई खतरा नहीं है, लेकिन विजयपुर में भी उपचुनाव हैं। ये सीट बीजेपी के लिए काफी इंपोर्टेंट है। लोकसभा चुनाव से पहले इसी सीट के विधायक राम निवास रावत बीजेपी में शामिल हुए और अब मंत्री पद से नवाजे गए। जिसके बाद से ही पार्टी में ये हंगामा बरपा हुआ है। रावत को ही वन एवं पर्यावरण मंत्री बनाया गया है। जिससे नागर सिंह चौहान नाराज हुए। हालांकि, रावत खुद किसी भारी भरकम विभाग की डिमांड कर रहे थे लेकिन उनकी इतनी बात नहीं सुनी गई। रावत की जो विधानसभा सीट है वो आदिवासी बहूल इलाका है। रावत को टिकट मिलने की बात से पहले ही बीजेपी नेता सीताराम आदिवासी पार्टी से खफा हैं। उनकी नाराजगी रावत पर भारी पड़ सकती है। ऐसे में नागर सिंह चौहान भी रूठ जाते तो आदिवासी वोटर्स का भी पार्टी से छिटकना तय था।

बीजेपी हर कदम फूंक फूंक कर...

वैसे भी ग्वालियर और चंबल की सीटों पर बीजेपी हर कदम फूंक फूंक कर रख रही है। ये वही इलाका है जहां सबसे ज्यादा दलबदल हुआ है और कार्यकर्ताओं की नाराजगी और असंतोष चरम पर है। अब बीजेपी इस इलाके में और राजनीतिक खलबली नहीं होने देना चाहती थी, इसलिए इतनी तेजी में डैमेज कंट्रोल किया गया। क्या ये डैमेज कंट्रोल स्थाई है। नागर सिंह चौहान और उनकी पत्नी के पास तो पद है और आश्वासन भी। ग्वालियर चंबल में ही ऐसे बहुत से नेता हैं जो इस प्रक्रिया से परेशान हो चुके हैं। क्या उनका भीतराघात बीजेपी पर राम निवास रावत पर भारी नहीं पड़ सकता।

वैसे भी राम निवास रावत की सीट यानी कि विजयपुर में सियासी संग्राम बेहद दिलचस्प मोड़ ले चुका है। वो भी तब जब वहां पर उपचुनाव का ऐलान भी नहीं हुआ। क्या है ये सियासी ट्विस्ट वो भी बताउंगा। जिसे जानने के लिए न्यूज स्ट्राइक का अगला एपिसोड जरूर देखिए और बेवसाइट पढ़ते रहें।

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