News Strike : सोशल मीडिया के दौर में कितने नेता ऐसे हैं जो हर तरह मीडिया से वाकिफ हैं। जो किसी भी प्लेटफॉर्म पर अपना अकाउंट बना सकते हैं। अपने मूवमेंट से जनता को अपडेट रख ही सकते हैं साथ ही मतदाता की नब्ज को समझते हुए मौके बेमौके पोस्ट कर सकते हैं। कहां हैं नेताजी में हम आज ऐसी ही एक नेता की बात कर रहे हैं जिसने अपने ही प्रचार प्रसार के लिए इस प्लेटफॉर्म का जबरदस्त तरीके से इस्तेमाल किया। एक बड़े नेता की करीबी रहीं और जमकर सुर्खियां बटोरीं। लेकिन अब एकदम खामोश हैं। उनका सोशल मीडिया भी अब बस बधाइयों के पोस्ट तक सीमित रह गया है। कहां हैं नेताजी में इस बार ये सवाल है इमरती देवी से...
सहानुभूति बटोरने के लिए हरसंभव कोशिश की
मध्य प्रदेश की सियासत से जरा भी वाबस्ता हैं तो फिर Imarti Devi के नाम से जरूर परिचित होंगे। साल 2020 में पार्टी बदलने के बाद उन्होंने ने बीजेपी से एक भी चुनाव नहीं जीता है। लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि दलबदल के बाद सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरने में वो कामयाब रहीं। कभी कमलनाथ के बयान की वजह से तो कभी खुद अपने बयानों की वजह से। उपचुनाव में हार मिली तो अपनी एक फोटो की वजह से भी इमरती देवी खूब चर्चाओं में रहीं। लेकिन अब जब साल 2023 के विधानसभा चुनाव में भी उन्हें हार मिली तब वो साइलेंट मोड में चली गई लगती हैं। चलिए एक बार इमरती देवी के पॉलीटिकल करियर की टाइमलाइन को अच्छे से समझते हैं। इमरती देवी डबरा से विधायक रही हैं। कट्टर ज्योतिरादित्य समर्थक होने के नाते उन्होंने साल 2020 में उनके साथ कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामा। इससे पहले वो कमलनाथ सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री थीं। दलबदल के बाद इमरती देवी का विधायक पद गया तो मंत्री पद जाना भी तय ही था। इसके बाद वो इसी सीट से 2020 में चुनाव लड़ीं। इस दौरान कमलनाथ ने उनके ऊपर एक टिप्पणी कर दीं। जिसकी वजह से कमलनाथ की खूब आलोचना हुई। इमरती देवी ने इस मौके पर सहानुभूति बटोरने के लिए हरसंभव कोशिश की। वे अपने क्षेत्र में सक्रिय रहीं और मौन व्रत पर भी बैठीं। इस विरोध प्रदर्शन में ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल हुए। लेकिन इमरती देवी को अपने क्षेत्र में कोई फायदा नहीं मिला।
सोशल मीडिया पर भी भरपूर काम किया
अगर आप जबरदस्त सोशल मीडिया प्रेमी हैं तो Imarti Devi की पुरानी टाइमलाइन चैक कर सकते हैं। पार्टी बदलने के बाद Imarti Devi अपने क्षेत्र में तो एक्टिव थीं। उन्होंने सोशल मीडिया पर भी भरपूर काम किया। वो कब किस क्षेत्र में किससे मिलने गईं हैं। किस मतदाता से मुलाकात की, किस इवेंट में शामिल हुई। इसकी भरपूर जानकारी वो सोशल मीडिया पर शेयर करती थीं। ये शायद उनका शौक समझा जा सकता है। पर, असल में यही उनकी मजबूरी भी था। मजबूरी इसलिए क्योंकि साल 2008 के बाद से ही वहां कांग्रेस मजबूत स्थिति में थी। सियासी इतिहास गवाह है कि नरोत्तम मिश्रा की सीट जैसे ही डबरा से दतिया हुई, उस सीट पर लगातार सिर्फ कांग्रेस ही जीतती रही है। इसलिए इस सीट पर दल बदल के बाद जीत दर्ज करना इमरती देवी के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहा है। तमाम कोशिशों के बावजूद इमरती देवी को जीत नसीब नहीं हुई।
ज्योतिरादित्य सिंधिया को मानती हैं पॉलीटिकल गुरू
उपचुनाव में हार के बाद सिंधिया के दूसरे समर्थकों की तरह इमरती देवी को मंत्री पद नहीं मिल सका था। जिसके बाद उन्हें मंत्री दर्जा दिलाने के दूसरे तरीके निकाले गए। इस तरह से दर्जा तो बरकरार रहा। लेकिन रसूख वो न मिल सका। इस करारी हार के बाद इमरती देवी और ज्योतिरादित्य सिंधिया की एक इमेज भी वायरल हुई। जिसे देखकर ये अंदाजा लगाया जा सकता था कि वो इस हार से किस कदर हताश हैं। लेकिन फिर अगले विधानसभा चुनाव के लिए इमरती देवी कमर कस कर तैयार हुईं। अपने क्षेत्र के साथ साथ सोशल मीडिया हैंडल पर भी खूब एक्टिव रहीं। अपने चुनाव प्रचार से ज्यादा इमरती देवी अपने पॉलीटिकल स्टंट्स और बयानों को लेकर सुर्खियों में रही हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया को वो अपना पॉलीटिकल गुरू मानती हैं। उनके बारे में वो ये बयान तक दे चुकी हैं कि अगर महाराज कुएं में कूदेंगे तो वो भी कूद जाएंगी। उनके कांग्रेस में रहते जब तत्कालीन सीएम कमलनाथ ने बयान दिया कि उन्हें सड़क पर उतरना है तो उतर जाएं। तब सिंधिया ने भी ये बयान दिया था कि वो भी महाराज के साथ सड़क पर उतर जाएंगी। दल बदल करने वाले नेताओं में सिंधिया के बाद इमरती देवी ही एकमात्र ऐसी नेता रहीं जिन पर कई तरह की विवादित टिप्पणियां हुईं।
निगम मंडल की रेस में इमरती देवी का नाम शामिल नहीं
नपे तुले बयान देने वाले कमलनाथ तो उनके लिए आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल कर ही चुके थे। हाल ही में कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी ने भी उन पर गलत तरह से एक बयान दे दिया। ये बयान इसी साल मई महीने का है। तब भी इमरती देवी ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं। जीतू पटवारी के बयान के बाद उन पर एफआईआर भी दर्ज की गई। और इमरती देवी के बहाने बीजेपी को ये कहने का मौका भी मिल गया कि कांग्रेस महिलाओं और दलितों की इज्जत नहीं करती है। इसके बाद से इमरती देवी का नाम सियासी फिजाओं से गायब है। उन्हें तमाम कोशिशों के बावजूद 2023 में भी उन्हें जीत नहीं मिल सकी। आलम तो अब ये है कि निगम मंडल या आयोग में भी अब तक एडजस्ट नहीं किया गया है। हालांकि मोहन सरकार में अब तक ये नियुक्तियां हुई नहीं हैं। लेकिन इस बार मांग भी जोरशोर से नहीं उठ रही है। न ही इमरती देवी के भीतर पद या रसूख को लेकर कोई हड़बड़ाहट दिख रही है। जबकि इससे पहले हार के बावजूद उन्होंने भोपाल में मिला बंगला और गाड़ी वापस नहीं किए थे। अब इमरती देवी शा्ंत हैं। आलम तो ये है कि निगम मंडल में नियुक्ति तो दूर की बात निगम मंडल की रेस में शामिल नेताओं में भी इमरती देवी का नाम शामिल नहीं किया जा रहा है। अब इमरती देवी की सक्रियता के नाम पर चंद ऐसे पोस्ट दिख रहे हैं जिसमें वो या तो सिंधिया परिवार के किसी सदस्य को बधाई दे रही हैं या फिर जयंति और पुण्यतिथि पर पोस्ट डाल रही हैं। इसका क्या आशय है क्या इमरती देवी अब ये मान चुकी हैं कि बीजेपी में उनका भविष्य कुछ खास उज्जवल नहीं है या अब चुनाव नजदीक आने पर ही इमरती देवी दोबारा एक्टिव नजर आएंगी।
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