News Strike : बीजेपी के बागियों की अब बैंड बजना तय है। अब ऐसे नेताओं को गलती का अहसास होता भी है तो उन्हें बस एक ही बात कही जा सकती है कि बहुत देर कर दी मेहरबां आते आते। मध्यप्रदेश की शांत सी रहने वाली राजनीति में बागी शब्द तब से बहुत ज्यादा सुर्खियों में रहा है। जब दल बदलुओं सत्ता परिवर्तन का बड़ा कारण बने। इस के बाद नेताओं के बागी होने के सियासी किस्से आम हो गए। और दल बदल का सिलसिला तो कुछ ऐसा हो गया जैसे घर शिफ्ट करना हो। कांग्रेस इस सिलसिले पर लगाम कसने में नाकाम रही है। जबकि सब से ज्यादा बागी और बगावत पिछले चार साल से वही देख रही है। पर बीजेपी ने अब बागियों पर सख्त स्टेंड लेने का फैसला किया है। ये ऐसा फैसला है जिसे जानने के बाद कोई भी नेता बगावत करने से पहले बहुत बार सोचेगा।
बागी नेताओं की वापसी के रास्ते बंद
बीजेपी के संगठन ने अब उन नेताओं के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने का फैसला किया है जो बीते चुनाव में या उस से पहले से पार्टी को बागी तेवर दिखा रहे थे। इस में कुछ ऐसे नेताओं के नाम भी शामिल हैं जो लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी से बगावत पर अमादा थे। खबर है कि ऐसी लिस्ट तैयार की गई है। जिसमें उन नेताओं के नाम शामिल हैं जिन्होंने न सिर्फ बीजेपी के प्रत्याशियों का विरोध किया बल्कि खुद चुनाव में भी उतरे। जिस की वजह से पार्टी प्रत्याशी पर हार का खतरा मंडराता रहा। अब अगर ऐसे नेताओं को अपनी गलती का अहसास होता भी है तो भी पार्टी उन पर तरस खाने वाली नहीं है। अब बीजेपी ऐसे नेताओं को जरा भी तवज्जो देने के मूड में नहीं है। इसलिए अब बागी नेताओं की पार्टी में वापसी के रास्ते पूरी तरह से बंद करने की तैयारी है। फिर वो नेता चाहें कितना भी वरिष्ठ क्यों न हो। और पहले पार्टी के लिए कितना भी निष्ठावान ही क्यों न रहा हो।
बीजेपी के डिजिटल दरवाजे भी बंद
बीजेपी ने हाल ही में सदस्यता अभियान चलाया था। जिस में डिजिटली भी बीजेपी का सदस्य बना जा सकता था। बीजेपी इस डिजिटल लिस्ट में भी बागी नेताओं के नाम तलाशेगी और उन्हें छांट छांट कर अलग भी करेगी। इतना ही नहीं पार्टी ने अपने मंडल और जिला स्तर के नेताओं को भी ताकीद कर दिया है कि ऐसे नेता का नाम जहां भी दिखे उसे अलग कर दिया जाए। इसका सीधा सा अर्थ ये है कि पहले बगावत कर चुके नेता अब सुबह के भूले की तरह घर लौटने को तैयार हैं तो भी वो भूले ही कहलाएंगे। उन के लिए सत्ता संगठन के साथ-साथ बीजेपी के डिजिटल दरवाजे भी बंद हो गए हैं। बीते विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी के कुछ दिग्गज नेताओं का टिकट कटा था। उन दिग्गजों ने ये ऐलान कर दिया कि वो पार्टी के खिलाफ जाकर चुनाव लड़ेंगे।
दीपक जोशी की बीजेपी में वापसी की कोशिश
तब बागियों के नाम खुद अमित शाह ने संदेश दिया था। चुनाव से पहले अमित शाह प्रदेश में आए थे। उन्होंने संभागीय बैठकें ली और नामाकंन वापस लेने के लिए कहा। उस समय धार से रंजना बघेल और जबलपुर से धीरेंद्र पटेरिया ने शाह की बात का मान रखते हुए नामांकन वापिस ले लिया था। लेकिन सारे बागी उनकी तरह समझदार नहीं निकले कई बागी अपनी जिद पर अड़े रहे। ऐसे बागियों में एक नाम दीपक जोशी का शामिल है। जो गुस्सा हुए, अपने पिता कैलाश जोशी की तस्वीर हाथ में उठाई और कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस ने उन्हें खातेगांव से टिकट भी दिया लेकिन वो जीत हासिल नहीं कर सके। जिस के बाद खबरें हैं कि वो फिर से बीजेपी में वापसी के लिए कोशिश कर रहे हैं। हालांकि बीजेपी का धड़ा उन्हें वापस लेने के बिल्कुल खिलाफ बताया जा रहा है।
नारायण त्रिपाठी का नाम भी शामिल
ऐसे ही नेताओं में नारायण त्रिपाठी का नाम भी शामिल है। वैसे तो नारायण त्रिपाठी हर चुनाव एक नई पार्टी के टिकट से लड़ते रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने अपनी ही अलग पार्टी बना ली। जिसका नाम उन्होंने विंध्य विकास पार्टी रखा। पर वो मैहर से चुनाव नहीं जीत सके।बीजेपी के दिवंगत नेता नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे को भी उम्मीद थी कि टिकट उन्हें मिलेगा। लेकिन अर्चना चिटनिस को टिकट मिला। तब चौहान ने बुरहानपुर से खुद भी पर्चा भरा। सांसद से विधायक बनने का चुनाव लड़ने आए गणेश सिंह की विधानसभा में हार का भी यही कारण था। उनकी सीट से बीजेपी के जिला उपाध्यक्ष रत्नाकर चतुर्वेदी शिवा भी चुनाव में उतर गए। नतीजा ये रहा कि सतना सीट से गणेश सिंह हार गए।
पार्टी को बगावत बर्दाश्त नहीं
ममता मीणा ने भी टिकट कटने पर यही कहा था कि उन्हें कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों से ऑफर हैं। हालांकि वो चाचौड़ा चुनाव में तीसरे नंबर पर रही और जीत बीजेपी की ही हुई। सीधी में केदार शुक्ला भी बागी हो गए थे। इन्हीं नेताओं की तरह रसाल सिंह, गिरिजाशंकर शर्मा, वीरेंद्र रघुवंशी, रूस्तम सिंह, बोध सिंह भगत, अवधेश नायक, बैजनाथ जैसे कई नाम है जो बीजेपी संगठन की हिट लिस्ट में शामिल हैं। संगठन को खबर मिली है कि इनमें से कुछ ने डिजिटल एंट्री लेने की कोशिश की है। उन्हें भी खंगाला जा रहा है। पार्टी का रुख साफ है कि ये नेता किसी भी कीमत पर अब बीजेपी में एंट्री नहीं ले सकेंगे। इस की वजह है पार्टी नेताओं के बीच ये मैसेज देना कि अपने डिसिप्लीन और रूल्स पर चलने वाली पार्टी इस तरह की बगावत बर्दाश्त नहीं करेगी जिसका खामियाजा हार के रूप में भुगतना पड़े। इस तरह की सख्ती से बीजेपी को उम्मीद है कि इस फैसले से बागियों के पर कतरे जा सकेंगे।
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