News Strike : हारे हुए नेताओं को भी मिलेगा जीत का इनाम, केंद्रीय संगठन में BJP देगी अहम जिम्मेदारी!

नए और पुराने की जंग से लॉन्ग टर्म में बीजेपी को नुकसान हो सकता है। लिहाजा अब बीजेपी का पूरा फोकस संगठन में बदलाव और मजबूती की तरफ हो गया है। इस बदलाव की कौन भेंट चढ़ सकता है और किसे मौका मिल सकता है?

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Ravi Singh
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News Strike : मध्यप्रदेश में बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के दौरान जीत के जबरदस्त झंडे गाढ़े हैं, लेकिन अब एडजस्टमेंट का दौर जारी है। जीत की खातिर बीजेपी ने बहुत सारे डिप्लोमेटिक गेम्स खेले थे, जिसमें बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं का दल-बदल हुआ था। इसके अलावा कांग्रेस के बड़े नेताओं को तो बकायदा इवेंट बनाकर बीजेपी में शामिल किया गया। इस रणनीति से बीजेपी ने हालिया जंग तो जीत ली,लेकिन आगे जीत के आसार बहुत कम दिखाई दे रहे हैं। असल में हर रिपोर्ट ने इस बात की गवाही दी है कि जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं में बहुत नाराजगी है। नए और पुराने की जंग से लॉन्ग टर्म में पार्टी को नुकसान हो सकता है। लिहाजा अब बीजेपी का पूरा फोकस संगठन में बदलाव और मजबूती की तरफ हो गया है। इस बदलाव की कौन भेंट चढ़ सकता है और किसे मौका मिल सकता है।

24 राज्यों के प्रदेश प्रभारी और सह प्रभारी बदले

भोपाल में हाल ही में बीजेपी की एक बड़ी बैठक हुई। इस बैठक में करीब एक हजार से ज्यादा मंडल अध्यक्ष शामिल हुए। इस बैठक अहम मकसद तो रिजल्ट की समीक्षा करना था, लेकिन ये भी साफ कर दिया गया कि संगठन में बड़े बदलावों के लिए हर कार्यकर्ता तैयार रहे। केंद्रीय आलाकमान के लेवल से तो ये काम शुरू भी हो भी चुका है। आलाकमान ने 24 राज्यों के प्रदेश प्रभारी और सह प्रभारी बदल दिए हैं। मध्यप्रदेश में फिलहाल डॉ. महेंद्र सिंह और सतीश उपाध्याय को ये जिम्मेदारी सौंपी गई है। एक सवाल ये जरूर उठ सकता है कि जब एमपी में बीजेपी सारी की सारी सीटें जीत चुकी है तो यहां रिजल्ट की समीक्षा कैसी और संगठन में बदलाव की जरूरत क्यों...। असल में साल 2020 से मध्यप्रदेश में दल बदल का सिलसिला तेजी से जारी है। ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसा लीडर इस दल बदल का फेस बने। इसके बाद ये सिलसिला पूरे देश में दिखाई दिया, लेकिन मध्यप्रदेश में इसका लेवल कुछ अलग ही रहा है। यहां जितनी बड़ी संख्या में बड़े नेता दल बदल कर बीजेपी में आए। उतनी ही बड़ी संख्या में उनके समर्थक भी बीजेपी का हिस्सा बने। इसके बाद से बीजेपी के संगठन को ये शिकायत मिलती रही है कि कांग्रेस से इंपोर्ट कार्यकर्ता पार्टी के चाल, चरित्र और चेहरे को समझ नहीं पा रहे हैं। जिस वजह से मूल कार्यकर्ता नाराज है।

बीजेपी संगठन में कसावट लाने में देर नहीं करेगी

इस बार बीजेपी पूरी तरह से पावर में थी। विधानसभा चुनाव में मोदी के फेस और शिवराज सिंह चौहान की लाडली बहना योजना ने कमाल दिखाया और कांग्रेस की हार हुई। लोकसभा चुनाव में सारा दांव सिर्फ एक सीट पर था।  कुछ सीटों पर बीजेपी ने अपने दिग्गज नेता उतारे और एक हारी हुई सीट छिंदवाड़ा में जीत के लिए सारी ताकत झौंक दी। तब जाकर कहीं 29 की 29 लोकसभा सीटें बीजेपी को मिल सकी हैं। अब प्रदेश में किसी भी स्तर पर चुनाव होने में कुछ साल हैं। इस समय का उपयोग बीजेपी संगठन में कसावट लाने और नए कार्यकर्ताओं को कसने में करना चाहती है, क्योंकि एक बार तो बीजेपी ने ऐसे हालात में चुनाव जीत लिया। लेकिन ये हर बार मुमकिन हो ही जाएगा ये कहना सही नहीं होगा। यही वजह है कि जीत के बावजूद बीजेपी संगठन में कसावट लाने में देर नहीं करना चाहती है।

इन नेताओं का दबदबा केंद्रीय संगठन में दिखाई देगा!

माना जा रहा है कि कांग्रेस का सूपड़ा साफ करने में अहम भूमिका रही है, उन नेताओं का दबदबा अब केंद्रीय संगठन में दिखाई दे सकता है। संगठन में जिन्हें जगह मिल सकती है, उनमें प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा, अरविंद भदौरिया, जयभान सिंह पवैया सहित कई नेताओं के नाम शामिल होने की चर्चा है। इन नेताओं को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। पार्टी पदाधिकारियों का कहना है कि सत्ता हो या संगठन भाजपा में हमेशा प्रदेश के नेताओं का दबदबा रहा है। वही दबदबा एक बार फिर कायम दिखाई देगा।

सभी ने अपना जिम्मा पूरा किया

मौजूदा पदाधिकारियों को ये भी यकीन है जिस तरीके से केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य के पांच नेताओं को मंत्री बनाया है, उसी तरह आने वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी मप्र के बड़े नेताओं को जगह मिलेगी। वीडी शर्मा को पार्टी ने बड़ी जिम्मेदारी दी थी। उन पर वोट शेयर बढ़ाने, मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक आकर्षित करने, युवाओं जोड़ने और सभी सीटें जिताने की जिम्मेदारी थी। शर्मा ने इन सभी जिम्मेदारियों को निभाया। इसका नतीजा रहा कि पूरे देश में मप्र ऐसा राज्य बना है, जहां भाजपा ने क्लीन स्वीप किया। शर्मा खुद अपनी सीट से 5 लाख 31 हजार 229 वोटों से जीते। इसी तरह पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा को नई ज्वाइनिंग कमेटी का जिम्मा दिया गया था। उन्होंने पूरे प्रदेश में भाजपा में सदस्यता अभियान चलाया और कई लोगों को पार्टी में जोड़ा। खास बात यह रही कि, इस दौरान कांग्रेस के सैकड़ों कार्यकर्ता और दिग्गज नेता भी भाजपा में शामिल हो गए। इस अभियान ने भाजपा की जीत में बड़ी भूमिका निभाई।

दल-बदल कर आने वालों को पूरा क्रेडिट मिला

बीजेपी ये भी नहीं भूली कि दल बदल कर आने वाले बड़े नेताओं को कहां और कैसे नवाजना है। ज्योतिरादित्य सिंधिया को लगातार पार्टी तवज्जो देती रही है। उनके साथ दल बदल कर आने वालों को भी पूरा क्रेडिट मिला और हाल में कांग्रेस से बीजेपी में आए वरिष्ठ विधायक रामनिवास रावत को भी बीजेपी ने मंत्री पद सौंप दिया है। सिर्फ एक नए विधायक को कैबिनेट में शामिल करने के लिए मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया, हालांकि ये खबर लिखे जाने तक राम निवास रावत ने अपनी पुरानी पार्टी यानी कि कांग्रेस से इस्तीफा नहीं दिया था। 

सिंह और उपाध्याय की जोड़ी का प्रभाव देखने को मिलेगा

अब एक बार फिर रुख करते हैं पार्टी के संगठन का, मध्यप्रदेश में सौ प्रतिशत रिजल्ट देने वाले लोकसभा चुनावों के प्रभारी डॉ. महेंद्र सिंह और सह प्रभारी सतीश उपाध्याय को ही मप्र की जिम्मेदारी सौंपी गई है। प्रभारियों की नियुक्ति के बाद में प्रदेश संगठन स्तर पर बड़ा बदलाव किया जा सकता है। संभावना जताई जा रही है कि प्रदेश संगठन के गठन में डॉ. महेंद्र सिंह और सतीश उपाध्याय की जोड़ी का प्रभाव देखने को मिलेगा। संगठन के प्रभारी रहे पी मुरलीधर राव प्रभारी की जिम्मेदारी से मुक्त किए जा चुके हैं। सिंह और उपाध्याय की जोड़ी ने लोकसभा चुनावों के दौरान प्रदेश में खासी मेहनत की थी। बूथ स्तर तक पहुंचकर दोनों कार्यकर्ताओं की बैठकें कर रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाई. हर जिले में संगठन के नेता और कार्यकर्ताओं के बीच दोनों की पहचान भी हो चली है। साथ ही संगठन के नेताओं से तालमेल भी छह महीने में बना है। उपाध्याय को तो 2019 के चुनाव में भी प्रदेश का सह प्रभारी बनाया गया था। विधानसभा चुनाव केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को मध्य प्रदेश का प्रभारी और केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव को सह प्रभारी बनाया था।

अब माना जा रहा है कि बीजेपी का संगठन लेवल का ढांचा बदला हुआ दिखाई देगा। बीजेपी की कोशिश है कि राम निवास रावत के एडजस्टमेंट के बाद अब पार्टी को बड़े लेवल पर ज्यादा एडजस्टमेंट पर काम न करना पड़े। अब सारा फोकस उन कार्यकर्ताओं पर है जो इन बड़े नेताओं के साथ आए हैं लेकिन बीजेपी के नहीं हो पा रहे हैं। जमीन लेवल के उस कॉन्फ्लिक्ट को खत्म कर बीजेपी अगले चुनावों से पहले अपनी जड़ें मजबूत कर लेना चाहती है।

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