News Strike : प्रदेश अध्यक्ष की रेस में दो बड़े नाम शामिल, नरोत्तम या कोई और ब्राह्मण चेहरा जीतेगा बाजी ?

लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तीन महीने बीत चुके हैं। नतीजों के बाद बहुत से ऐसे नाम सामने आए जो मध्यप्रदेश बीजेपी अध्यक्ष पद की रेस में शामिल है, लेकिन आलाकमान की ओर से बदलाव का कोई इशारा नहीं मिला। कहा जा सकता है कि संगठन में बदलाव हो भी न...

Advertisment
author-image
Harish Divekar
New Update
thesootr
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

News Strike : एमपी बीजेपी में सत्ता में बड़े बदलाव हो चुके, लेकिन संगठन में बदलाव कम। बीजेपी को दूर से देखो तो लगता है कि सब कुछ स्टेबल है। सतह पर भी इतनी शांति है कि देखकर बीजेपी में सब ऑल इज वेल ही दिखाई देता है। असल में अंदर ही अंदर हलचल बहुत है और ये हलचल है प्रदेशाध्यक्ष पद को लेकर। इस पद पर वीडी शर्मा का कार्यकाल पूरा हो चुका है। हालांकि, संगठन में बदलाव की फिलहाल कोई अटकलें नहीं है। सतह पर जितनी शांति नजर आ रही है उतने है भी नहीं। प्रदेश संगठन की इस टॉप मोस्ट पॉजिशन के लिए लॉबिंग तेज है और कई बड़े नेता इस पद को पोने की कोशिश कर रहे हैं।

हर पद पर जितने दावेदार हैं उतनी खींचतान भी

वैसे बीजेपी ऐसी पार्टी है जिसके पास ऑप्शन्स की कोई कमी नहीं है। अगर एक पद के लिए मुफीद नेता चाहिए हो तो पांच से छह दावेदार मिल जाएंगे। ये सुनकर लगता है कि बीजेपी के लिए फैसला लेना कितना आसान है, लेकिन तस्वीर जैसी दिखती है वैसी है नहीं। हर पद पर जितने दावेदार हैं उतनी ही खींचतान भी है। यही खींचतान फिलहाल बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए जारी है। इस पद वीडी शर्मा अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। लोकसभा चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हुआ तो ये सुगबुगाहटें थीं कि वीडी शर्मा को अब केंद्र में मंत्री पद से नवाजा जाएगा, लेकिन उन्हें केंद्र का बुलावा नहीं आया। अब चुनाव के नतीजे आए भी तीन महीने का वक्त बीत चुका है। नतीजों के बाद बहुत से ऐसे नाम सामने आए जो प्रदेशाध्यक्ष पद की रेस में शामिल है, लेकिन आलाकमान की तरफ से बदलाव का कोई इशारा नहीं मिला। इसे देखते हुए ये कहा जा सकता है कि शायद संगठन में कोई बदलाव न हो। 

वीडी के कार्यकाल में खामियां निकालना मुश्किल 

अगर नियमों की बात करें तो प्रदेशाध्यक्ष पद पर चुनकर आने के बाद दो साल में अध्यक्ष का चुनाव कराना जरूरी होता है, लेकिन वीडी  शर्मा के केस में ये बात लागू नहीं होती। क्योंकि वो चुनकर नहीं आए हैं। उन्हें इस पद पर आलाकमान ने चुना था। इसलिए वीडी शर्मा के एक्सटेंशन को नियमों का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता। कहने का मतलब ये कि आलाकमान चाहेंगे तो वीडी शर्मा इस पद पर बने भी रह सकते हैं। उनका कार्यकाल भी इतना जबरदस्त रहा है कि उसमें खामियां निकालना मुश्किल है। ब्राह्मणों की नाराजगी की कुछ इक्का दुक्का घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो उन्हें लेकर कोई असंतोष भी नहीं रहा है। 2020 के उपचुनाव से लेकर 2023 के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में भी पार्टी का ग्राफ ऊपर ही उठा है। जिस हिसाब से हालात नजर आ रहे हैं। उसे देखते हुए लगता है कि कम से कम आने वाले तीन साल तक बीजेपी मध्यप्रदेश में ज्यादा उलटफेर करने के मूड में नहीं है। 

प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए खबरें उफान पर हैं 

प्रदेशाध्यक्ष पद को लेकर अभी से जोड़तोड़ चल रही है इसमें कुछ बड़े नाम भी सुनाई दे रहे हैं। दो सबसे ज्यादा चौंकाने वाले नाम हैं कैलाश विजयवर्गीय और राजेंद्र शुक्ल, दोनों ही मोहन कैबिनेट का हिस्सा हैं। राजेंद्र शुक्ल के पास उपमुख्यमंत्री पद का ओहदा है और कैलाश विजयवर्गीय सीनियर मंत्री हैं। सियासी गलियारों में ये खबरें उफान पर हैं कि प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए इन दोनों का नाम भी आलकमान के पास पहुंच चुका है। दोनों ही प्रदेश बीजेपी के सीनियर नेता हैं। कैलाश विजयवर्गीय मालवा का धाकड़ नाम हैं तो विंध्य में राजेंद्र शुक्ल के नाम का दबदबा है। दोनों ही नेता ऐसे हैं जो मौजूदा सीएम से सियासी तजुर्बे में कहीं ज्यादा आगे भी हैं। वैसे तो मंत्री बनने के बाद भी सत्ता का सुख तो इनके पास है ही, लेकिन प्रदेशाध्यक्ष बने तो पूरे संगठन के हुक्मरान बन जाएंगे। अगर जातिगत समीकरण भी देखें तो पिछड़े वर्ग से मुख्यमंत्री मोहन यादव खुद आते हैं। ऐसे में ब्राह्मण चेहरा रिपीट करने से बीजेपी सवर्ण तबके को भी साध सकती है। कैलाश विजयवर्गीय इस रेस में पहले भी  शामिल रहे हैं। जब बीजेपी नए प्रदेशाध्यक्ष की तलाश में थी। तब कैलाश विजयवर्गीय का नाम रेस में सबसे अव्वल था। तब संघ की पसंद बने वीडी शर्मा बाजी मारने में कामयाब रहे थे। 

कांग्रेस को कमजोर करने का क्रेडिट नरोत्तम को

लोकसभा चुनाव के बाद इस पद के लिए शिवराज सिंह चौहान का नाम भी सुनाई दे रहा था, लेकिन केंद्र में दो अहम मंत्रालय संभाल रहे शिवराज सिंह चौहान की अब इस ओहदे पर प्रदेश में वापसी मुश्किल लगती है। नरेंद्र सिंह तोमर भी इस पद के लिए बड़ा नाम माना जा रहा था। विधानसभा स्पीकर बनने के बाद उन्हें भी इस रेस से बाहर माना जा सकता है। मंत्री पद संभालने के बावजूद कैलाश विजयवर्गीय और राजेंद्र शुक्ला का नाम तो रेस में बना ही हुआ है। एक और ब्राह्मण चेहरा है जो रेस जीतते-जीतते बार-बार चूक रहा है। ये नेता हैं नरोत्तम मिश्रा का। विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश में जब भी सीएम फेस बदलने की चर्चा तेज होती थी। तब नरोत्तम मिश्रा का नाम बतौर अगला सीएम सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहता था। वो गुंजाइश अब खत्म हो चुकी है। अब सिर्फ प्रदेशाध्यक्ष पद से ही आस है। जिसके लिए नरोत्तम मिश्रा पूरी ताकत लगा रहे हैं। लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस को तोड़कर कमजोर करने वाले नेताओं में सबसे ज्यादा क्रेडिट भी नरोत्तम मिश्रा को ही जाता है। हो सकता है उन्हें इस मेहनत का फल मिले। 

प्रदेश अध्यक्ष की रेस में इन दिग्गजों के भी हो सकते हैं नाम

बात ब्राह्मण चेहरों की है तो गोपाल भार्गव की बात भी की जा सकती है। हालांकि, कुछ मौकों पर खुले तौर पर विरोध जता चुके गोपाल भार्गव के लिए रेस जीतना जरा मुश्किल है, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता और बुंदेलखंड में तगड़ा होल्ड होने के नाते उन्हें कंसीडर किया जा सकता है। जातिगत बैलेंस बिठाने के लिए बीजेपी थोड़ा एक्सपेरिमेंट भी हो सकती है। हो सकता है कि ब्राह्मण चेहरे की बजाए इस बार किसी और वर्ग के चेहरे पर फोकस किया जाए। ऐसा होता है तो फग्गन सिंह कुलस्ते के नाम पर भी मुहर लग सकती है। वो भले ही विधानसभा चुनाव हारे हों, लेकिन लोकसभा चुनाव जीतकर बाउंसबैक कर चुके हैं। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि वो एक बड़ा आदिवासी फेस भी हैं। इस वर्ग में पैठ बनाने के लिए बीजेपी उनका फेस भी आगे कर सकती है। एक और नाम है सुमेर सिंह सोलंकी का। जो बीजेपी से ही राज्यसभा भी गए। सुमेर सिंह सोलंकी अनुसूचित वर्ग से आते हैं। वो शहीद भीमा नायक कॉलेज में प्रोफेसर भी रहे हैं। बीजेपी के सांसद रहे माकन सिंह सोलंकी के वो भतीजे भी हैं। संघ की पसंद थे इसलिए राज्यसभा पहुंच सके। हो सकता है जातिगत संतुलन के लिए उन्हें इस पद से नवाजा जाए। दलित वर्ग के साथ संतुलन की बात होगी तो लाल सिंह आर्य के नाम से भी इंकार नहीं किया जा सकेगा।

दलबदल के बाद के हालात वीडी ने बखूबी मैनेज किए

वीडी शर्मा के कार्यकाल की सबसे खास बात ये है कि उनके पूरे कार्यकाल के दौरान बीजेपी काफी मजबूत हुई है और कांग्रेस उतनी ही कमजोर। अब अगले अध्यक्ष को भी यही सियासी सिनेरियो मेंटेंन करके रखना होगा। वीडी शर्मा के सामने एक बड़ी चुनौती ये भी रही है कि पुराने भाजपाई और दल बदलकर भाजपाई हुए नेताओं में तालमेल बिठाना। दलबदल की वजह से कार्यकर्ताओं के बीच नाराजगी की खबरें भी आईं, लेकिन वीडी शर्मा ने ये हालात बखूबी मैनेज किए। अब प्रदेश में होने वाले किसी भी चुनाव में करीब तीन साल का वक्त है। इस बीच अगर संगठन में बदलाव होता है और दलबदल का सिलसिला यूं ही जारी रहता है तो यही तालमेल और डिसिप्लीन बनाए रखना किसी भी नए चेहरे के सामने बड़ी चुनौती होगी।

thesootr links

  द सूत्र की खबरें आपको कैसी लगती हैं? Google my Business पर हमें कमेंट के साथ रिव्यू दें। कमेंट करने के लिए इसी लिंक पर क्लिक करें

एमपी न्यूज News Strike न्यूज स्ट्राइक News Strike Harish Diwekar न्यूज स्ट्राइक हरीश दिवेकर