नर्सिंग कॉलेज घोटाला : मध्य प्रदेश में नर्सिंग कॉलेज की मान्यता की जांच करने वाले सीबीआई अधिकारियों की रिश्वतखोरी का भंडाफोड़ हुआ था। इसके बाद सीबीआई के एंटी करप्शन ब्यूरो के डिप्टी एसपी आशीष प्रसाद और सहित सीबीआई इंस्पेक्टर राहुल राज सहित 23 नामजद आरोपियों और अन्य के खिलाफ एफआईआर की गई थी। सीबीआई के द्वारा दर्ज की गई FIR से यह सामने आया की सीबीआई अधिकारियों सहित जांच टीम में शामिल अन्य लोग और पटवारी तक इस रिश्वत का हिस्सा लेते थे। इन्होंने बाकायदा एक दलाल अप्वॉइंट किया हुआ था जो नर्सिंग कॉलेज को क्लीन चिट देने के एवज में रिश्वत की रकम लेता था और पूरी टीम के हिस्से के अनुसार बराबर बंदरबांट की जाती थी।
कार्रवाई के लिए नहीं मिली सरकार से अनुमति
किसी भी न्यायाधीश या लोक सेवक के खिलाफ मामला चलाने के लिए अभियोजन की स्वीकृति की आवश्यकता होती है। लोकायुक्त, ईओडब्ल्यू या सीबीआई जैसी संस्थाओं में काम कर रहे लोक सेवकों पर ट्रायल चलाने के पहले अभियोजन की स्वीकृति आवश्यक होती है। इस मामले में अब तक ट्रायल के लिए स्वीकृति न मिलने का फायदा टीम के अन्य आरोपी सदस्यों को मिला है जिनकी जमानत याचिका पर जस्टिस अहलूवालिया की कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान यह बात सामने आई कि मुख्य आरोपियों के खिलाफ ट्रायल चलाने के लिए अभियोजन की अनुमति नहीं मिली है जिस कारण अभी कोर्ट में मुकदमा नहीं चलाया सकता तो ऐसी स्थिति में अन्य आरोपियों के खिलाफ भी तब तक ट्रायल नहीं चल सकेगा और इस परिस्थिति को देखते हुए कोर्ट ने अन्य आरोपियों जेल में बंद रखना उचित ना मानते हुए उन्हें जमानत का लाभ दिया है।
क्या है अभियोजन पूर्व स्वीकृति
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 19 के अंतर्गत किसी भी न्यायालय द्वारा धारा 7, 10, 11, 13, 15 के अधीन किसी लोक सेवक के विरुद्ध दंडनीय अपराध का संज्ञान, सक्षम प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति के बाद ही लिया जा सकता है। इसी प्रकार दंड प्रक्रिया संहिता ,1973 (Code of Criminal Procedure,1973) की धारा 197 के अंतर्गत यदि शासकीय कार्य करने के दौरान लोकसेवक को किसी दंडनीय अपराध के लिए आरोपी बनाया जाता है तो न्यायालय द्वारा संज्ञान लिए जाने के पूर्व सक्षम प्राधिकारी द्वारा अभियोजन की स्वीकृति आवश्यक होती है।
दलाल के जरिए होती थी रिश्वत की बंदरबांट
सीबीआई नई दिल्ली के द्वारा दर्ज की गई FIR के अनुसार यह जानकारी मिली कि मध्य प्रदेश के अलग-अलग जिलों मैं नर्सिंग कॉलेज की जांच करने के लिए सीबीआई एसीबी के डिप्टी एसपी आशीष प्रसाद और सीबीआई एसीबी भोपाल इंस्पेक्टर राहुल राज जांच टीमों का नेतृत्व कर रहे थे। इस जांच दल में सीबीआई अफसर के सहित इंडियन नर्सिंग काउंसिल के द्वारा मान्य किए गए नर्सिंग स्टाफ और पटवारी भी शामिल थे। सीबीआई को मिली जानकारी में यह खुलासा हुआ की जुगल किशोर नाम का एक व्यक्ति इस मामले में सीबीआई और नर्सिंग कॉलेज के बीच लेनदेन कर दलाली का काम करता था। दलाल जुगल किशोर नर्सिंग कॉलेज से पैसे लेता था और जांच टीम को उनके पद के अनुसार हिस्सा बांटा जाता था। इस रिश्वत वसूली के गिरोह के द्वारा अलग-अलग नर्सिंग कॉलेज से 2 लाख से लेकर 10 लख रुपए तक की रिश्वत ली गई जिसमें हर अधिकारी का हिस्सा तय था। जांच टीम में जो नर्सिंग स्टाफ थे उन्हें 25 से 50 हज़ार तक का हिस्सा मिलता था तो पटवारी को 5000 से 20 हज़ार रु तक रिश्वत का हिस्सा दिया जाता था। सीबीआई की टीम के द्वारा इंस्पेक्शन करने के तुरंत बाद या अगले दिन यह रिश्वत की रकम जांच टीम में बांटी जाती थी। इस मामले में सीबीआई ने कुल 23 नामजद आरोपियों और अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी।
मध्यप्रदेश में भी यही हाल,सरकारें बदली पर हालात नहीं
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मध्य प्रदेश विधानसभा में प्रस्तुत होने वाला लोकायुक्त प्रतिवेदन वर्ष 2015 के बाद से आज तक पटल पर नहीं रखा गया। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में उनके कैबिनेट मंत्रियों तथा विभागीय अधिकारियों आईएएस ,आईपीएस और आईएफएस शामिल है। लेकिन उनके खिलाफ लोकायुक्त में दर्ज शिकायतें अभियोजन की स्वीकृति के इंतज़ार में आज तक बंद फाइलों में पड़ी हैं। 15 महीने की कमलनाथ सरकार ने भी जन आयोग बनाकर भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने का वादा जरुर किया था, लेकिन वे किसी भी घोटाले की जांच करने में नाकाम रहे। सामान्य प्रशासन विभाग के सूत्रों के अनुसार वर्ष 2015-16 से वर्ष 2022-23 तक कुल आठ साल के लोकायुक्त के वार्षिक प्रतिवेदन विधानसभा में पेश नहीं किये गये हैं। ये सभी आठ प्रतिवेदन लोकायुक्त ने राज्य सरकार को सौंप दिये हैं। इन प्रतिवेदनों पर संबंधित विभागों से जानकारी ली जा रही है तथा जानकारी आने के बाद प्रतिवेदन एक्शन टेकन रिपोर्ट के साथ सदन में प्रस्तुत की जायेगी। यही स्थिति वर्तमान मुख्यमंत्री मोहन यादव की सरकार में भी बनी हुई है। भ्रष्ट अफसर पर जीरो टॉलरेंस की नीति के तहत कार्रवाई का वादा करने वाली मोहन सरकार के 6 महीने गुजर जाने के बाद भी किसी प्रकरण में अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी गई है। इसी साल फरवरी माह में राज्य सरकार ने अभियोजन स्वीकृति को लेकर विधि एवं विधायी कार्य विभाग और प्रशासकीय विभाग में मत भिन्नता की स्थिति में निर्णय लेने के लिए 6 मंत्रियों की समिति गठित की थी जिसके अध्यक्ष मुख्यमंत्री मोहन यादव हैं, उसके बाद भी केंद्र जैसे ही हाल मध्यप्रदेश के भी हैं। इससे तो यह साफ है कि केंद्र सरकार हो राज्य सरकार कोई भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध गंभीर नजर नहीं आ रही है।
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