OBC आरक्षण: मप्र हाईकोर्ट ने कभी नहीं कहा 13 फीसदी नियुक्ति होल्ड हों

जबलपुर हाईकोर्ट ने शुक्रवार को ओबीसी आरक्षण ( OBC Reservation) को लेकर लगी 85 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मामले को फिलहाल आगे बढ़ा दिया, क्योंकि इस मामले में याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं और वहां 4 मार्च को सुनवाई है।

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BP shrivastava
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जबलपुर हाईकोर्ट ने शुक्रवार को ओबीसी आरक्षण पर सुनवाई करते हुए मामले को फिलहाल आगे बढ़ा दिया।

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संजय गुप्ता, INDORE. जबलपुर हाईकोर्ट ने शुक्रवार को ओबीसी आरक्षण को लेकर लगी 85 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मामले को फिलहाल आगे बढ़ा दिया, क्योंकि इस मामले में याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं और वहां 4 मार्च को सुनवाई है। लेकिन विविध परीक्षाओं में पद होल्ड करने पर लगी याचिकाओं पर जस्टिस शील नागू और जस्टिस विनय सराफ की बेंच ने यह कहा कि हाईकोर्ट ने कभी नहीं कहा कि 13 फीसदी पद होल्ड किए जाएं। तर्क दिया गया कि सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा इस संबंध में परिपत्र जारी किया गया है। इस पर कोर्ट ने परिपत्र पेश करने के आदेश दिए। बताया गया कि महाधिवक्ता के सुझाव के चलते यह व्यवस्था दी गई थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि महाधिवक्ता के सुझाव का परीक्षण नहीं किया जा सकता, यदि सरकार का कोई आदेश है तो वह प्रस्तुत किया जाए। सामान्य प्रशासन विभाग ( जीएडी ) की गाइडलाइन पर 13% पद होल्ड किए जा रहे हैं।

शासन जून 2021 में दे चुका शपथपत्र, 14 फीसदी पर करेंगे भर्ती

साल 2019 में कांग्रेस सरकार के समय ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी करने का फैसला हुआ। इस मामले में कई याचिकाएं लग गई। इसी दौरान कोविड के चलते मेडिकल ऑफिसर की कमी होने पर भर्ती निकली, लेकिन आरक्षण में उलझ गई। इस पर मप्र शासन की ओर से महाधिवक्ता द्वारा जून 2021 में शपथपत्र दिया गया और इसमें कहा गया कि हम 14 फीसदी ही योग्यता के आधार पर ओबीसी उम्मीदवारों का चयन करेंगे, 27 फीसदी का नहीं किया जाएगा। खुद सरकार भी औपचारिक तौर पर ओबीसी के लिए 14 फीसदी ही आरक्षण मानती है।

अगस्त 2023 में हाईकोर्ट ने 27 फीसदी आरक्षण पर रोके थे रिजल्ट

इसके पहले ईएसबी ( कर्मचारी चयन मंडल ) द्वारा 27 फीसदी आरक्षण पर नियुक्ति देने पर लगी याचिकाओं पर अगस्त 2023 में हाईकोर्ट ने आरक्षण सीमा 14 फीसदी तक रही रखने का आदेश दे दिया था। इसके बाद मप्र शासन ने इनके रिजल्ट रोक दिए। बाद में 87-13-13 फीसदी के फार्मूले के आधार पर इनके रिजल्ट जारी हुए, यानी 13 फीसदी पद होल्ड कर दिए गए।

फिर आया 87-13 फीसदी का फार्मूला आया कहां से और क्यों ?

कांग्रेस की सरकार ने 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का दांव खेला, इसमें बाद में बीजेपी सरकार भी उलझ गई और ना वह इसका विरोध कर पा रही है और ना ही हाईकोर्ट में स्पष्ट तौर मंशा बता पा रही है। मप्र शासन ने खुद के बचाव के लिए सितंबर 2022 में यह 87-13-13 फीसदी का अजीब फार्मूला निकाला। इस फार्मूले से सरकार यह जंचाना चाह रही थी कि हम तो 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण देना चाहते हैं लेकिन मामला कोर्ट में हैं, इसलिए अभी दे नहीं सकते हैं, हम इसके लिए खुले हुए हैं।

मप्र में क्या रहा है आरक्षण प्रतिशत

मप्र में इस 27 फीसदी विवाद के पहले एससी के लिए 16 फीसदी, एसटी के लिए 20 फीसदी, ओबीसी के लिए 14 फीसदी , अनारक्षित के लए 40 फीसदी और 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षण था। 27 फीसदी आरक्षण ओबीसी करने के बाद एसटी और एससी के लिए तो प्रतिशत समान था लेकिन 13 फीसदी प्रतिशत अनारक्षित से निकलकर ओबीसी के पास चला गया, अनारक्षित का 27 फीसदी रह गया और ओबीसी का बढ़कर 27 फीसदी हो गया। शासन ने 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के तहत ही आगे की भर्ती परीक्षाओं की नियुक्तियां जारी की। 

87-13-13 फीसदी से क्या हुआ, यह क्या है ?

मप्र शासन ने ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी विवाद में गली निकाली इसका नाम ही 87-13-13 फीसदी है। इसके तहत 87 फीसदी मूल पद या मूल रिजल्ट में रहेंगे इसमें एससी के 16 फीसदी, 20 फीसदी एसटी के लिए, अनारक्षित के 27 फीसदी, ईडब्ल्यूएस के 10 फीसदी और ओबीसी के 14 फीसदी पद रहेंगे। इसमें अनारक्षित कोटे के 13 फीसदी सीधे कम हो गए। बाकी 13 फीसदी प्रोवीजनल रिजल्ट में रहेंगे जो होल्ड होंगे, इस रिजल्ट में 13 फीसदी पदों पर ओबीसी और अनारक्षित दोनों ही चुने जाएंगे। ओबीसी आरक्षण का विधिक फैसला होने तक इन सभी के रिजल्ट, नियुक्त सब लिफाफे में बंद रहेंगे और गोपनीय रहेंगे। जिसके पक्ष में फैसला आया यह पद उन्हें दिए जाएंगे। यानि यदि ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी मान्य हो जाएगा तो प्रोवीजनल रिजल्ट में शामिल 13 फीसदी पद ओबीसी उम्मीदवारों के पास चले जाएंगे। यदि आरक्षण तय सीमा तक ही रहा और आरक्षण 14 फीसदी ही मान्य हुआ तो यह 13 फीसदी पद अनारक्षित कोटे में चले जाएंगे। 

गड़बड़ अब इसमें कहां पर की गई ?

इस फार्मूले का भविष्य क्या होगा ? यह सीनियर अधिकारियों से लेकर शासन की विधिक सेल और खुद सरकार किसी ने नहीं सोचा। यह 13 फीसदी पद कब तक होल्ड रहेंगे किसी को नहीं पता। ऐसे में जब भी नियुक्ति खुलेगी, एक साल, दो साल या पांच साल बाद, तब क्या चयनित उम्मीदवार अपनी बैच जैसी सीनियरटी नहीं मांगेगे और साथ ही हुए वित्तीय व अन्य नुकसान का क्या होगा? यह किसी ने नहीं सोचा और 27 फीसदी आरक्षण की आड़ में खुद को बचाने के लिए दाव खेल दिया गया और इसमें दाव पर लग गए हजारों पद और इस पर चयनित हुए हजारों उम्मीदवार। 

जरूरत ही नहीं है 13 फीसदी पद होल्ड की

जबकि हाईकोर्ट ने कभी भी शासन से नहीं कहा कि वह 13 फीसदी पद होल्ड करके रिजल्ट निकाले। शासन ने केवल यही कहा कि वह आरक्षण सीमा को क्रास नहीं कर सकती है और 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण लागू नहीं कर सकती है। यानी शासन स्वतंत्र था कि वह कानूनी लड़ाई का अंतिम फैसला आने तक आराम से 14 फीसदी ओबीसी आरक्षण के साथ पूरे सौ फीसदी का रिजल्ट जारी कर नियुक्ति दे सकती थी, लेकिन उन्होंने अपने साथ ही हजारों, लाखों उम्मीदवारों को भी उलझा दिया। 

अधिवक्ता बोले- गलत विधिक सलाह से हुआ यह सब

उम्मीदवारों के लिए पैरवी करने वाले अधिवक्ता रामेशवर ठाकुर ने कहा कि महाधिवक्ता कार्यालय ने हाईकोर्ट ने ओबीसी के 27% आरक्षण को लागू नहीं किए जाने का आवेदन माय शपथ पत्र के दिया है। इस पर हाईकोर्ट मध्य प्रदेश शासन की मंशा अनुसार दिनांक 13/07/2021 को आदेश कर चुकी है। इसके बाद भी महाधिवक्ता ने समान्य प्रशासन विभाग को असंवैधानिक रूप से अभिमत देकर 13 फीसदी पदों को होल्ड करा दिया है। आरक्षण संशोधन अधिनियम 2019 के प्रवर्तन पर हाईकोर्ट का स्थगन यानि स्टे नहीं है। फिर भी ओबीसी को 27% आरक्षण नहीं दिया जा रहा है जो गलत है। 

ओबीसी को लुभावने के लिए 27 फीसदी पर विज्ञापन आ रहे

ठाकुर ने कहा कि ओबीसी को लुभावने और आईवास करने के लिए सभी विज्ञापन 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण पर जारी हो रहे हैं। शासन द्वारा एक भी मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं की जा रही है। साथ ही महाधिवक्ता कार्यालय ने ओबीसी आरक्षण की याचिकाओ को पेंडिंग रखने के उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर याचिकाएं दाखिल कर दी है।

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