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ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर
Latest Religious News: मध्यप्रदेश का ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग एक अत्यंत पवित्र और अनोखा तीर्थस्थल है। यहां भगवान शिव के दो अविभाज्य स्वरूपों की पूजा होती है। यह द्वीप नर्मदा नदी के बीचों-बीच स्थित है, जो दूर से पवित्र 'ॐ' की आकृति जैसा दिखाई देता है।
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ओंकारेश्वर द्वीप की विशेषता
नर्मदा नदी के बीच स्थित यह पवित्र द्वीप ही शिव का निवास स्थान है। यह द्वीप 'ॐ' के आकार का है, इसलिए इसे 'ओंकारेश्वर' कहा जाता है।
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दो भागों में विभाजन
शिव पुराण के मुताबिक, देवताओं के अनुरोध पर शिवजी ने अपने ज्योतिर्लिंग को दो स्वरूपों में विभाजित कर दिया। यह विभाजन भक्तों को सरल दर्शन देने के लिए किया गया था।
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ओंकारेश्वर
एक स्वरूप को 'ओंकारेश्वर' नाम दिया गया, जो नर्मदा के बीच स्थित मांधाता द्वीप पर प्रकट हुआ, जिसका आकार पवित्र 'ॐ' जैसा है।
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ममलेश्वर
दूसरा स्वरूप 'ममलेश्वर' कहलाया, जो नर्मदा नदी की मुख्य भूमि पर स्थित है और जिसकी पूजा भी समान रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है।
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नामों का आध्यात्मिक अर्थ
ओंकारेश्वर का अर्थ है 'ॐकार के ईश्वर' या वह शिव जो 'ॐ' के रूप में प्रकट हुए। ममलेश्वर का अर्थ है 'मेरे (मम) ईश्वर' या संपूर्ण ब्रह्मांड के ईश्वर।
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पुराणों में उल्लेख
शिव पुराण के मुताबिक, ओंकारेश्वर को ज्योतिर्लिंग कहा गया है। यह परंपरा है कि ओंकारेश्वर के दर्शन के बाद ममलेश्वर के दर्शन भी अनिवार्य हैं। ये दोनों एक ही ज्योतिर्लिंग की शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन्हें शिव का अविभाज्य रूप माना जाता है।
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पूजन की प्राचीन परंपरा
ममलेश्वर मंदिर में शिवलिंग के पास छोटे-छोटे शिव मंदिरों की पूजा भी होती है। भक्तों का मानना है कि इन दोनों ज्योतिर्लिंगों की पूजा से ही तीर्थ यात्रा पूरी होती है। भक्तों का मानना है कि इन दोनों रूपों के दर्शन से सभी पाप धुल जाते हैं। यह स्थान मोक्ष और आध्यात्मिक शांति प्रदान करने वाला माना जाता है। डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
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