कमल से नहीं बनी बात, फिर थामा हाथ, कमलनाथ की चूक किस पर पड़ेगी भारी ?

मध्यप्रदेश में कमलनाथ कांग्रेस में रहेंगे या जाएंगे, इस सवाल का सस्पेंस खत्म हो चुका है। अब ये साफ हो चुका है कि कमलनाथ कांग्रेस में ही रहेंगे। पर सवाल ये उठता है कि कमलनाथ जैसे दिग्गज और मंझे हुए राजनेता अपनी पूरी प्लानिंग में कहां मात खा गए।

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Rahul Garhwal
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रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय। टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गांठ परी जाय

हरीश दिवेकर, BHOPAL. रहिमन की ये सीख भूलकर कमलनाथ (kamalnath) एक बड़ी गलती कर चुके हैं। पहले सियासी प्रेम का धागा तोड़ा। फिर खुद ही जोड़ा। अब जो गांठ पड़ी है वो नुकसान तो पहुंचाएगी ही। हम आपको बता रहे हैं कि कांग्रेस और कमलनाथ के बीच की डोर में अब कितनी गिरह हैं। जो खुल सकेंगी या नहीं, कहना मुश्किल है। 

सस्पेंस खत्म

कमलनाथ कांग्रेस में रहेंगे या जाएंगे, इस सवाल का सस्पेंस खत्म हो चुका है। अब ये साफ हो चुका है कि कमलनाथ कांग्रेस में ही रहेंगे। पर, सवाल ये उठता है कि कमलनाथ जैसे दिग्गज और मंझे हुए राजनेता अपनी पूरी प्लानिंग में कहां मात खा गए। और, उससे भी बड़ा सवाल ये है कि कमलनाथ का बीजेपी में न जाना या कांग्रेस में ही रुक जाना खुद कमलनाथ और कांग्रेस के लिए फायदेमंद है। थोड़ा गहराई से सोचेंगे तो ये समझ पाएंगे कि कमलनाथ के जाते-जाते रुक जाने से कमलनाथ और कांग्रेस दोनों को नुकसान है। और, 3-4 दिन जो माहौल बना, उससे बीजेपी को फायदा ही फायदा है।

सियासी उठापटक

सबसे पहले आपको पूरा घटनाक्रम याद दिला दें कि बीते दिनों एमपी की सियासत में कितनी उठापटक हुई। बात शुरू होती है इन अटकलों से कि कमलनाथ बेटे समेत बीजेपी में शामिल होने जा रहे हैं। उधर उनके पुराने साथी दिग्विजय सिंह ये दावा करते हैं कि कमलनाथ कांग्रेस में ही रहेंगे। इसके कुछ ही देर बाद बेटे नकुलनाथ अपनी ट्विटर प्रोफाइल से कांग्रेस का लोगो हटा लेते हैं। दोनों पिता-पुत्र दिल्ली के लिए रवाना होते हैं। खबरों का बाजार ये पुख्ता कर देता है कि बस शाम तक कमलनाथ और कमल एक हो जाएंगे, लेकिन बात एक दिन टलती है, 2 दिन टलती है और फिर रफा-दफा ही हो जाती है। ये स्पष्ट हो जाता है कि सारी पॉलिटिकल नौटंकी के बाद अब कमलनाथ कांग्रेस में ही रहने वाले हैं।

किसका फायदा और किसका नुकसान

अब बात करते हैं इस ग्रेट इंडियन पॉलिटिकल सर्कस के बाद आगे क्या क्या हुआ, हो सकता है। और जो होगा उससे किसको फायदा और किसको नुकसान होगा। आपको क्या लगता है। कमलनाथ बीजेपी में शामिल नहीं हुए। क्या ये बीजेपी का बड़ा नुकसान है। जरा सोचिए, क्या वाकई एमपी में बीजेपी को कमलनाथ जैसे कद के नेता की जरूरत है। अगर कमलनाथ बीजेपी में शामिल हो जाते तो उससे बीजेपी को फायदा होता या नुकसान।

अगर कमलनाथ बीजेपी में शामिल हो जाते तो बीजेपी को फायदा कम नुकसान ज्यादा होता। हो सकता है कमलनाथ के आने के बाद बीजेपी छिंदवाड़ा आसानी से जीत जाती, लेकिन ताजा हालात को देखकर ये कहा जा सकता है कि थोड़ी मेहनत से बीजेपी अब भी छिंदवाड़ा को जीत सकती है। बात करें लीडरशिप की तो बीजेपी के पास मध्यप्रदेश में लीडरशिप की कमी नहीं है। न फेस की कमी है और न ही बड़ा प्रभाव रखने वाले नेताओं की। उल्टे कमलनाथ आते तो हालात शायद ज्योतिरादित्य सिंधिया के दलबदल से भी ज्यादा खराब होते। 

बीजेपी को फायदा

इससे पहले तक बीजेपी ग्वालियर में नाराज भाजपा और महाराज भाजपा जैसी गुटबाजी से निपट रही थी। कमलनाथ के आने के बाद हालात शायद नाथ भाजपा वाले हो जाते, दिग्गज नाराज होते सो अलग। तो ये कह सकते हैं कि बीजेपी तो फायदे ही फायदे में है। 3 दिन चला आने-जाने का ये पॉलिटिकल ड्रामा भी बीजेपी के लिए फायदेमंद ही साबित हुआ। जो छिंदवाड़ा में ये मैसेज दे गया कि कमलनाथ हार और जीत को लेकर डरे हुए हैं। साइक्लोजिकल पॉलीटिकल वॉर में बीजेपी 3 दिन के इस सियासी ड्रामे का कमलनाथ के खिलाफ जमकर इस्तेमाल कर सकती है।

कांग्रेस को नुकसान

अब बात करते हैं कांग्रेस की। जिसके पास उसके पुराने दिग्गज नेता कमलनाथ मौजूद हैं। फिर भी कांग्रेस घाटे में है ही। कमलनाथ चले जाते तो कांग्रेस को जितना नुकसान था, शायद अब उनके रहने से भी कांग्रेस को उतना ही नुकसान हो सकता है। और देखा जाए तो थोड़ा फायदा भी है। फायदा ये कि कांग्रेस की ये उम्मीद तो जिंदा रह ही सकती है कि छिंदवाड़ा की सीट तो शायद उसके खाते में आ ही जाएगी और लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश से सूपड़ा साफ होने से बच जाएगा।

इसके अलावा कमलनाथ हैं तो उनका नजर आना भी जरूरी है। बीजेपी प्रवक्ता ये दावा कर चुके हैं कि कमलनाथ को रोकने के लिए कांग्रेस ने उनकी हर शर्त मान ली है। जिसमें ये भी शामिल है कि प्रदेशाध्यक्ष भले ही जीतू पटवारी रहें। हर फैसले में उनकी सहमति जरूर ली जाएगी। दूसरी शर्त ये कि उनके समर्थित जिला अध्यक्षों और अन्य नेताओं का कद नहीं घटाया जाएगा। संगठन में उनकी अहमियत बरकरार रहेगी और छिंदवाड़ा का टिकट उनके बेटे को ही मिलेगा। बीजेपी प्रवक्ता का ये दावा सही मान लिया जाए तो एक बार फिर कांग्रेस गुटबाजी में बंटी ही रहेगी और प्रदेश के नए कांग्रेस आलाकमान को अपने हिसाब से काम करने के लिए फ्री हैंड नहीं मिल सकेगा।

कमलनाथ को क्या मिला ?

अगर बीजेपी प्रवक्ता का ये दावा सही है तो जाहिर है कांग्रेस को दबाव में रहकर ही आगे बढ़ना होगा और बदलाव की सोचना तो समझिए कि बेकार ही है। अब बात करते हैं इस पूरी कहानी के सबसे अहम पॉइंट पर। इस कहानी के असल किरदार पर, जो हैं कमलनाथ, इस पूरे सियासी ड्रामेबाजी से कमलनाथ को क्या मिला। वो फायदे में रहे या नुकसान में रहे। अपनी ही पुरानी पार्टी में रहकर क्या वो अपनी साख को बरकरार रख सकेंगे। कमलनाथ के जाने या न जाने से कांग्रेस को फायदा नुकसान कितना होगा। इस आंकलन से ज्यादा ये जानना जरूरी है कि कमलनाथ को इसका कितना फायदा या नुकसान होगा। इस पूरी चर्चा में फिलहाल नकुलनाथ की बात की जानी बहुत जरूरी नहीं है, क्योंकि उनकी जो भी साख है वो सिर्फ अपने पिता कमलनाथ की वजह से है। 

ऑल इज नॉट वेल

जिस वक्त कमलनाथ के बीजेपी जाने की खबरें बिलकुल जोरों पर थीं। उस वक्त हमने आपको बताया था कि कमलनाथ के बीजेपी में जाने से उन्हें कितना फायदा होगा। फिलहाल सिर्फ घाटों पर फोकस करते हैं। तजुर्बेकार राजनेता हर सियासी दल की जरूरत होता है। संजय गांधी के समय से कांग्रेस में एक्टिव कमलनाथ को न सिर्फ एक तजुर्बेकार नेता का बल्कि पार्टी में आलाकमान सा रुतबा हासिल था। विधानसभा चुनाव की हालिया हार से पहले कमलनाथ के फैसलों पर किसी ने कभी एतराज जाहिर नहीं किया। अब भले ही कांग्रेस के दिग्विजय सिंह जैसे पुराने नेता और जीतू पटवारी जैसे नए नेता ऑल इज वेल का राग अलाप रहे हों पर सच्चाई ये है कि ऑल इज नॉट वेल। खासतौर से कमलनाथ के लिए, जिन्हें ये साफ हो चुका होगा कि कांग्रेस में जिस तरह उनकी शर्तों पर वो राज करते आए हैं वो राज बीजेपी में नहीं चल सकता। बीजेपी को न उनके नाम की जरूरत है न तजुर्बे की। कैलाश विजयवर्गीय तो साफ कह भी चुके हैं कि कमलनाथ के लिए पार्टी के दरवाजे बंद हैं। उनकी बीजेपी को जरूरत नहीं। और क्या पता कि इस बार के घटनाक्रम के बाद कमलनाथ के लिए बीजेपी के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हों। 

कमलनाथ का सियासी वजन हो रहा कम

कांग्रेस में क्या अब पहले जैसी बात कायम रहेगी। उनका पार्टी में बने रहने और पहले की तरह बैठकों में शामिल होना, वीडियो कॉनफ्रेंसिंग के जरिए ही सही जारी है। जूनियर नेता भी चुपचाप उनकी बातें सुनने पर मजबूर हैं। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कमलनाथ की निष्ठा अब सवालों के घेरे में है। वो ये जाहिर कर सकते हैं कि उनके दरवाजे खुले हैं और वो पुराने नेता होने के बावजूद दलबदल कर सकते हैं। उनकी निष्ठा पर सवाल इसलिए भी कि छिंदवाड़ा या अपने कारोबारी फायदे के चलते वो राजनीतिक मूल्यों से समझौता कर सकते हैं। ये वो जाहिर कर चुके हैं। इसके अलावा भी बहुत-सी बाते हैं जो कमलनाथ के सियासी वजन को कम कर रही हैं।

पहली तो उनका सत्ता में आना और महज पंद्रह महीने में सरकार गिराना। उस वक्त ज्योतिरादित्य सिंधिया कठघरे में थे और कमलनाथ का चेहरा साफ नजर आ रहा था। इस बार कमलनाथ उसी कठघरे में खड़े थे। हालांकि वापस बाहर आ चुके हैं पर क्लीन चिट मिली या नहीं ये अभी कहा नहीं जा सकता। इसके बाद कमलनाथ लाख तजुर्बेकार होते हुए भी मध्यप्रदेश की नब्ज नहीं भांप पाए और 2023 में करारी हार का शिकार हुए। तीसरा कमलनाथ आइडियोलॉजी के मामले में भी पार्टी से अलग चल रहे हैं। बीजेपी के हिंदुत्व से न टकराकर कांग्रेस मोहब्बत की दुकान लगा रही है। जबकि कमलनाथ का रवैया या तो न्यूट्रल रहा है या सॉफ्ट हिंदुत्व वाला। जिसका कांग्रेस को कोई फायदा नहीं मिल सका। ये रवैया वोट पॉलेराइजेशन रोकने में पूरी तरह फेल ही साबित हुआ।

कमलनाथ को दोहरा नुकसान

इस नाते कमलनाथ के रुकने से कांग्रेस न फायदे में है न नुकसान में। जबकि कमलनाथ दोहरे नुकसान में जा चुके हैं। हालांकि कांग्रेस में ऐसा कोई नेता नहीं है जो उनकी निष्ठा पर सवाल उठा सके और ईमानदारी का इम्तिहान देने की बात कह सके। लेकिन इस पॉलीटिकल ड्रामेबाजी के बाद कुछ खामियाजा तो उन्हें भुगतना पड़ ही सकता है।

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