पांढुर्णा में गोटमार, पत्थर लगने से 32 लोग घायल हुए , 4 की हालत गंभीर

पांढुर्णा में आयोजित गोटमार मेले में मंगलवार सुबह 10 बजे से शुरू हो गया है। बताया जा रहा है कि इस खेल में दोपहर 12 बजे तक पत्थर लगने से 32 लोग घायल हुए हैं जबकि 4 की हालत गंभीर है। आइए जानते हैं क्या है गोटमार खेल और इसे रोकने के लिए प्रशासन के प्रयास...।

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Deeksha Nandini Mehra
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पांढुर्णा में गोटमार खेल
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Gotmar game in Pandhurna : मध्य प्रदेश के पांढुर्णा में सदियों से चली आ रही खूनी खेल खेलने की परंपरा की शुरुआत 2 सितंबर से हो गई है। इसे आज भी लोगों द्वारा खेला जाएगा। इस परंपरा के तहत लोग एक-दुसरे के ऊपर पत्थरों से हमला करते है। इस खेल में अब तक 13 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि कई घायल होते है। सोमवार को हुए गोटमार खेल में 10 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हुए है जिनको अस्पताल में भर्ती कराया गया है। स्थानीय प्रशासन ने इसे रोकने के लिए कई बार कोशिशें की लेकिन सभी प्रयास फेल हुए। आइए जानते हैं क्या है गोटमार खेल और इसे रोकने के लिए प्रशासन द्वारा किए गए प्रयास...।

क्या होता है गोटमार खेल में 

इस खेल में जाम नदी की पुलिया पर दो पक्ष एक दुसरे के ऊपर जमकर पत्थरों की बौछार करते हैं। यह खेल सुबह से शुरू होकर शाम तक चलता है। इस खेल के दौरान भारी पुलिस बल की तैनाती की जाती है। इसके अलावा एम्बुलेंस डॉक्टर्स और नर्स की व्यवस्था भी होती है। 

गोटमार खेल का इतिहास 

पूर्वजों के अनुसार इस खेल को खेलने के पीछे दो कहानियां मानी जाती है। पहली कहानी ये कि प्राचीन मान्यता के अनुसार हजारों साल पहले जाम नदी के किनारे पिंडारी समाज का प्राचीन किला था।  इस किले में पिंडारी समाज और उनकी सेना रहती थी। सेना का सेनापति दलपत शाह था। इस किले पर महाराष्ट्र के भोसले राजा की सेना ने हमला बोल दिया था। हथियार कम होने से पिंडारी समाज की सेना ने पत्थरों से हमले का जबाव दिया। भोसले राजा परास्त हाे गया। तब से यहां पत्थर मारने की परंपरा चली आ रही है। 

बताया जाता है कि युद्ध के बाद जनता ने सेनापति दलपत शाह का नाम बदलकर राजा जाटबा नरेश कर दिया था। आज भी जाटबा राजा की समाधि यहां मौजूद है और उस इलाके का नाम पांढुर्णा नगर पालिका में जाटबा वार्ड के नाम से दर्ज है।

प्रेमी युगल की याद में

गांव के बुजुर्गों के अनुसार दूसरी कहानी ये है कि सावरगांव की युवती और पांढुर्णा का युवक एक दूसरे से प्रेम करते थे। दोनों शादी करना चाहते थे लेकिन दोनों के गांव के लोग इसके खिलाफ थे। पोला त्योहार के दूसरे दिन भद्रपक्ष अमावस्या की सुबह युवक-युवती ने भागने का प्रयास किया था लेकिन जाम नदी की बाढ़ में फंस गए। दोनों के घर से भागने की खबर तब तक पांढुर्णा और सावरगांव के लोगों तक पहुंच चुकी थी। नदी के पास जमा हुए पांढुर्णा और सावरगांव के लोगों ने प्रेमी जोड़े पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया, जिससे दोनों की मौत हो गई। तभी से प्रेमी युगल की याद में गोटमार का खेल खेला जाता है।

प्रशासन ने खूनी खेल को रोकने के किए प्रयास 

इस खूनी खेल को बंद कराने के लिए प्रशासन ने काफी सख्त कदम उठाकर पुलिस ने 1978 और 1987 में गोलियां बरसाई थीं। इस गोलीकांड में 3 सितंबर 1978 को ब्रह्माणी वार्ड के देवराव सकरडे और 1987 में जाटवा वार्ड के कोठीराम सांबारे की गोली लगने से मौत हुई थी। इस दौरान पांढुर्णा में कर्फ्यू जैसे हालात बने थे। वहीं पुलिस की ओर से लाठीचार्ज भी हुआ था।

इसके अलावा 2001 में प्रशासन ने पत्थरों की जगह प्लास्टिक बॉल जाम नदी पर बिछाई थी। जिससे पत्थर मारने की प्रथा बंद हो सके, लेकिन गोटमार खेलने वाले खिलाड़ियों ने प्लास्टिक और रबर के बॉल को नदी में फेंककर पत्थर मारकर गोटमार शुरू कर दिया।

आज गोटमार खेल में 32 लोग हुए घायल 

पांढुर्णा में आयोजित गोटमार मेले में मंगलवार सुबह 10 बजे से शुरू हो गया है। बताया जा रहा है कि इस खेल में दोपहर 12 बजे तक पत्थर लगने से 32 लोग घायल हुए हैं जबकि 4 की हालत गंभीर है। सभी का इलाज सिविल अस्पताल में किया जा रहा है। मेले में 4 स्वाथ्य शिविर भी लगाए गए हैं। 6 जिलों का पुलिस बल तैनात है। बीएमओ डॉ. दीपेन्द्र सलामे ने बताया, सोमवार को 10 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इनमें 4 लोग गंभीर हैं, जिनका इलाज सिविल अस्पताल में जारी है।

 अब तक कितने लोगों की मौत 

  • महादेव सांबारे —सावरगांव —  22 अगस्त 1955
    देवराव सकरडे —  ब्रामनी —  3 सितंबर 1978
    लक्ष्मण तायवाडे —  गुरुदेव वार्ड — 29 अगस्त 1979
    कोठीराम सांबारे —  जाटबा वार्ड — 24 अगस्त 1987
    विठ्ठल तायवाडे — गुरुदेव वार्ड —  31 अगस्त 1989
    योगीराज चौरे — सावरगांव —  31 अगस्त 1989
    गोपाल चनने — पांढुर्णा — 31 अगस्त 1989
    सुधाकर हापसे — सावरगांव — 31 अगस्त 1989
    रवि गायकी — भंदारगोंदी — 4 सितंबर 2004
    जनार्दन सांबारे — घनपेठ — 6 सितंबर 2005
    गजानन घुघुसकर — जाटबा वार्ड — 31 अगस्त 2008
    देवानंद वाघाले — गांधी वार्ड — 29 अगस्त 2011
    सुदामा लेंडे — गुरुदेव वार्ड — 15 सितंबर 2023 

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