Pegasus Spyware : फिर सुर्खियों में पेगासस, बिना इजाजत चुराता है डाटा, पत्रकार और विपक्षी नेता ही क्यों होते टारगेट?

Pegasus Spyware : पेगासस स्पाइवेयर एक अत्यधिक आक्रामक मोबाइल निगरानी स्पाईवेयर है जो सीक्रेटली स्मार्टफ़ोन में घुसपैठ कर सकता है। आइए जानते हैं क्या है पेगासस स्पाइवेयर और इससे बचने का उपाय है ?

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Shrawan mavai
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Pegasus Spyware : पिछले कुछ सालों में पत्रकारों और विपक्षी नेताओं के लिए पेगासस स्पाइवेयर चिंता का विषय बना हुआ है। बिना किसी जानकारी के यह स्पाइवेयर लोगों के फोन से जानकारी चुराता है। आरोप है कि, इसका उपयोग सरकार द्वारा विपक्षी नेताओं और मुखर पत्रकारों के खिलाफ किया जाता है। मध्यप्रदेश में नर्सिंग घोटाले और नीट पेपर लीक के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी भी इसके शिकार हुए हैं। उन्होंने साइबर सेल में इसकी शिकायत की है। आइए जानते हैं क्या है पेगासस स्पाइवेयर और इससे बचने के उपाय ?


पेगासस स्पाइवेयर क्या है?


देश - दुनिया में अब लोगों पर नजर रखने के लिए जासूसों का नहीं स्पाइवेयर का उपयोग किया जाता है। इन्हें मॉडर्न टाइम के जासूस कहा जा सकता है क्योंकि न तो इन्हे टारगेटेड इंसान का पीछा करना पड़ता है न उसके बारे में लोगों से पूछना पड़ता है। ये तो चुपचाप स्मार्ट फोन में घुसकर व्यक्ति का डाटा चुरा लेते हैं और इस तरह अपने उद्देश्य में 100 परसेंट सफल होते हैं। पेगासस भी ऐसा ही एक स्पाइवेयर है। 

पेगासस स्पाइवेयर एक अत्यधिक आक्रामक मोबाइल निगरानी स्पाईवेयर है जो सीक्रेटली स्मार्टफ़ोन में घुसपैठ कर सकता है। इसके बाद यह अलग - अलग ऐप और स्रोतों से डेटा और जानकारी एकत्र कर लेता है। इसे इज़राइली साइबर-इंटेलिजेंस फ़र्म NSO ग्रुप द्वारा विकसित किया गया था। NSO ग्रुप का कहना है कि, वह केवल अपराध और आतंकवाद से लड़ने के लिए सरकारी एजेंसियों को यह स्पाइवेयर बेचती है लेकिन समय - समय पर इसके दुरूपयोग की खबरें सामने आई है।

जीरो क्लिक का यूज़ करता है पेगासस :


इजराइल में बना पेगासस स्पाईवयर बेहद आधुनिक है। यह बिना अनुमति के ही टारगेटेड व्यक्ति के फोन में घुस सकता है। डाटा चुराने के लिए यह जीरो क्लिक का उपयोग करता है। आसान भाषा में समझे तो बिना किसी लिंक पर क्लिक करे या अनुमति लिए यह मोबाइल में इंस्टॉल हो जाता है। जानकारी के अनुसार यह स्पाइवेयर व्हाट्सएप और आईमैसेज जैस ऐप की कमजोर का फायदा उठाता है। इसके जरिए टारगेटेड व्यक्ति के फोन में मेसेज या कॉल भेजा जाता है। अगर वह व्यक्ति यह कॉल न भी उठाए तब भी यह स्पाइवेयर फोन में इंस्टॉल हो जाता है।

जीरो डे वलरबिलिटी :


सिटीजन लैब द्वारा पेगासस स्पाइवेयर पर की गई स्टडी के अनुसार यह स्पाइवेयर एप्पल प्रोडक्ट्स में इंस्टॉल होने के लिए जीरो डे वलरबिलिटी (Zero Day Vulnerability) का उपयोग करता है। Zero Day Vulnerability फोन के ऑपरेटिंग सिस्टम की एक कमी या बग हैं जिसे अब तक दूर नहीं किया जा सका है क्यंकि इसे अब तक डिटेक्ट भी नहीं किया गया है।

इन देशों में हुआ है पेगासस का इस्तेमाल :


पेगासस का इस्तेमाल कई देशों में किया गया है। इन देशों में सऊदी अरब, मैक्सिको, भारत, मोरक्को, हंगरी, अज़रबैजान और रवांडा जैसे देश शामिल है। इन देशों की प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भी स्थिति कुछ अच्छी नहीं है। 

फोन में पेगासस को डिटेक्ट करना असंभव : 


पेगासस को फोन में डिटेक्ट करना लगभग असंभव है। पहले तो इसके इंस्टॉल होने की जानकारी नहीं मिलती और फिर जब पता चल जाये कि, किसी फोन में पेगासस स्पाइवेयर का हमला हुआ है तो ये खुद ही नष्ट हो जाता है।

कैसे जानें कि फोन में पेगासस स्पाइवेयर है या नहीं?


फोन में पेगासस स्पाइवेयर का पता लगाने के लिए मोबाइल वेरिफिकेशन टूलकिट या MVT का उपयोग किया जाता है। यह एक "ओपन-सोर्स मोबाइल फोरेंसिक टूल" है। प्रक्रिया थोड़ी जटिल है केवल प्रोग्रामिंग और टेक्नीकल नॉलेज वाला व्यक्ति ही इसका उपयोग कर सकता है। अगर आप खुद अपने आईफोन से इसे हटाने की कोशिश करेंगे तो यह बेवकूफी है। इसे तकनीकी रूप से दक्ष और किसी जिम्मेदार संस्था द्वारा की ठीक किया जा सकता है।

अपने फोन को कैसे रखें सुरक्षित :


पेगासस सॉफ्टवेयर के लिए तो नहीं लेकिन बाकी स्पाइवेयर या डाटा चुराने वाले ऐप से  बचने के लिए अपने फोन को पासवर्ड से सुरक्षित रखें। समय - समय पर पासवर्ड बदलते रहें। अगर फोन में कोई ऐप इंस्टॉल करना है तो गूगल प्ले स्टोर का इस्तेमाल करें। इसके अलावा किसी भी ऐप को परमिशन देने से पहले अच्छी तरह जांच कर लें।  

सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला :


पेगासस स्पाइवेयर का मामला साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था। मुख्य न्यायधीश एन वी रामन्ना ने आरोपों की जांच के लिए समिति का गठन किया था। इस समिति में के अध्यक्ष रिटायर्ड जज आरवी रवींद्रम थे।

इस समिति को कुछ सवालों के जवान ढूंढने थे। इनमें प्रमुख सवाल थे कि, आखिरकार किसने पेगासस स्पाइवेयर को खरीदा, क्या याचिकाकर्ता इसके शिकार हुए हैं और भारत में वो कौन से कानून हैं जो पेगासस जैसे स्पाइवेयर के उपयोग की इजाजत देते हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित समिति में कुछ टेक्निकल एक्सपर्ट्स भी थे।

क्या किसी के भी फोन में पेगासस मिला:


25 अगस्त साल 2022 में यह सामने आया कि, समिति द्वारा पेगासस सॉफ्टवेयर की जांच किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाई। 29 फोन की जांच की गई इनमें से से किसी भी फोन में पेगासस स्पाइवेयर अटैक की कोई जानकारी नहीं मिली, हालांकि पांच फोन में मालवेयर मिला था लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि, ये पेगासस स्पाइवेयर है। इस मामले में पर्याप्त डाटा भी समिति को नहीं मिला। समिति ने यह माना था कि, केंद्र सरकार ने जांच में सहयोग नहीं किया। इस तरह मामले को अगली सुनवाई तक टाल दिया गया।

 

 

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