INDORE. इंदौर में ईश्वर एलाय स्टील लिमिटेड ( Ishwar Alloy Steel Limited ) की मौके की 300 करोड़ से ज्यादा की उद्योग विभाग की जमीन बिल्डर अशोक एरन, सहयोगी पराग देसाई को जाने के पीछे पूरा सुनियोजित स्कैम हुआ है। द सूत्र ने इस पूरे मामले के और दस्तावेज जुटाए और पड़ताल की तो सामने आया कि इसमें मप्र शासन में तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan ) के समय एमएसएमई विभाग (जिसमें तत्कालीन मंत्री ओमप्रकाश सखलेचा थे), डीआईसी इंदौर से लेकर डीआरटी मुंबई में हर जगह खेल हुआ है। सही बातें ना कभी हाईकोर्ट में रखी गई और ना ही डीआरटी मुंबई में। इसके चलते पूरा यह स्कैम हो गया। वही इस स्कैम को रोकने के लिए मोहन सरकार को जल्द हाईकोर्ट में अपील लगाना होगी नहीं तो यह स्कैम हकीकत में तब्दील हो जाएगा।
सबसे बड़ा खेल लीज निरस्त थी तभी बोली लग गई
1. सबसे बड़ा खेल यह हुआ कि मप्र शासन ने ईश्वयर एलाय की जमीन की लीज को 10 जनवरी 2022 में निरस्त कर दिया था। इसके खिलाफ कंपनी प्रमोटर हाईकोर्ट इंदौर गए, वहां से आदेश हुए कि सक्षम प्राधिकारी के पास केस लगाएं और वहां से 45 दिन में फैसला हो।
2. इसके बाद एमएसएमई कमिशनर के पास लीज बहाली के लिए आवेदन लगा, लेकिन इसमें फैसला आया 6 जनवरी 2023 को कि लीज बहाल की जाती है।
3. जब लीज निरस्त थी, इस दौरान डीआरटी मुंबई ने इस जमीन की नीलामी कर दी, इसमें 16 दिसंबर 2022 को एरन बिल्डर्स ने 75 करोड़ में यह जमीन ले ली। लीज निरस्ती के दौरान नीलामी हो ही नहीं सकती थी। लेकिन इस दौरान डीआईसी और मप्र शासन ने यह बातें डीआरटी में रखी ही नहीं। वहीं क्योंकि इसमें ईश्वर अलाय पार्टी नहीं था वह लीज बहाली के लिए लगा हुआ था, तो इसे भी सुना नहीं गया।
4. नीलामी में जमीन बिकने के बाद 6 जनवरी 2023 को शासन ने ईश्वर अलाय को जमीन लीज बहाल की, ताकि इसे फिर एरन ग्रुप को ट्रांसफर किया जा सके।
हाईकोर्ट में डबल बैंच से पहले यह आदेश हुआ
इस नीलामी के बाद ईश्वर एलाय के सुखवंत सिंह बब्बर और गुरूचरण सिंह ने हाईकोर्ट डबल बैंच में अपील की। इसमें 7 मई 2024 को फैसला आया कि पक्षकार डेब्टस् एंड बैंककरप्सी एक्ट 1993 में राहत लेने के लिए स्वतंत्र है। वह सक्षम अथॉरिटी के पास जा सकता है। तब तक कोई आदेश पास नहीं किया जाता है।
डीआरटी मुंबई में बोली के खिलाफ चल रहा है केस
ईश्वर एलाय ने इस जमीन की नीलामी के खिलाफ फिर डीआरटी मुंबई में अपील की हुई है, जहां केस अभी जारी है। उधर केस जारी होने के दौरान ही डीआईसी ने एरन ग्रुप से लीज ट्रांसफर की 18 करोड़ की राशि भरवाकर लीज भी ट्रांसफर कर दी।
हाईकोर्ट बैंच में यह सारी बाते आई ही नहीं
हाईकोर्ट बैंच ने एरन ग्रुप के हक में जो फैसला दिया जिसमें प्लाटिंग की मंजूरी दी गई। इसमें सबसे अहम बात है कि कई तथ्य इसमें रखे ही नहीं गए, क्योंकि ईश्वर एलाय को पार्टी ही नहीं बनाया गया। यह फैक्ट आया ही नहीं कि डीआरटी मुंबई में नीलामी के खिलाफ ही केस चल रहा है, वहीं खुद हाईकोर्ट के मई 2024 के फैसले को भी किसी ने सामने नहीं रखा जिसमें खुद हाईकोर्ट ने पक्षकार ईश्वर एलाय को अल्टरनेटिव राहत लेने के लिए सही अथॉरिटी पर जाने की और तब तक कोई भी फैसला नहीं लेने की बात कही थी। डीआरटी मुंबई में अभी केस चल ही रहा है।
इस पूरे नियम संशोधन को भी रखा दरकिनार
मप्र शासन ने भूमि आवंटन नियम में जब बदलाव किए तब 21 अक्टूबर 22 को जारी नियमों में 19 (बी) में नीलामी में बिक्री जमीन को लेकर कोई क्लाज नहीं था। लेकिन 17 मार्च 2023 में नियम में फिर बदलाव हुए और यह भी जोड़ दिया गया कि नीलामी से खरीदी जमीन के मामले में यह रहेगा कि उसे कम से कम पांच साल उद्योग चलाना होगा और दो साल बंद हो तभी वह प्लाटिंग कर सकेगा। इस नियम को भी हाईकोर्ट की बहस में नहीं रखा गया बल्कि अक्टूबर 2022 के नियम को रखा गया।
पूरी बहस नियम की जगह मूल आवंटी को लेकर
इस पूरे खेल में यह अहम रहा कि मुद्दा मूल आवंटी बनने का बनाया गया, ना कि 19(बी) के नियम को जिसमें शासन की नीति में साफ है कि को भी उद्योग की जमीन भले ही नीलामी से ले लेकिन उसे पांच साल उद्योग चलाना होगा और दो साल बंद हो तभी प्लाटिंग कर सकेगा। इस नियम को लेकर बहस होती तो प्लाटिंग रूकती, लेकिन मुद्दा मूल आवंटी का बनाया गया कि एरन ग्रुप मूल आवंटी है या नहीं। इसके लिए ग्रुप ने बताया कि उसे ईश्वर एलाय की बाकी समयावधि के लिए लीज ट्रांसफर हुई है, इसलिए वह मूल आवंटी है, क्योंकि लीज शिफ्ट हुई है।
उद्योग विभाग के आवंटन नियम से भी सही नहीं
डीआईसी ( जिला उद्योग केंद्र ) द्वारा जब किसी उद्योग को जमीन दी जाती है तो वह कंपनी का मेमोरेंडम देखती है कि वह उद्योग क्या चलाती है, साथ ही उद्योग की प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी मांगती है। लेकिन ऐरन डेवलपर्स के मेमोरेंडम में तो उद्योग चलाने की तो कोई बात ही नहीं है, कंपनी विश्दुद रूप से बिल्डर ग्रुप है। हालांकि बताया जाता है कि दिखावे के लिए उद्योग चलाने की प्रोजेक्ट रिपोर्ट दी गई है। ग्रुप के पास उद्योग विभाग का कोई रजिस्ट्रेशन नंबर भी नहीं है। इंदौर में अविकसित जमीन आवंटन में 90 करोड़ के खेल का उजागर करने के बाद सीएम डॉ. मोहन यादव ने 24 घंटे में सख्ती करते हुए आवंटन रद्द कर दिए थे। अब एक बार फिर मोहन सरकार को सख्ती दिखाने की जरूरत है। ऐसा नहीं होने पर उनकी लगातार रीजनल इंडस्ट्री कान्क्लेव कर प्रदेश को उद्योग प्रदेश बनाने की मुहिम की पलीता लग जाएगा। द सूत्र इंदौर में 300 करोड़ के इस पूरे गेम प्लान का खुलासा कर रहा है, जिसमें सरकार बिल्डर के वकीलों के आगे हाईकोर्ट में हार चुकी है और इसका असर पूरे उद्योग विभाग में होने वाला है।
मामला जुड़ा है ईश्वर एलाय की 300 करोड़ की जमीन का
यह मामला ईशवर एलाय स्टील लिमिटेड की सांवेर रोड इंडस्ट्रियल सेक्टर डी में मौजूद जमीन का। यह 35 एकड जमीन प्लाट नंबर 4 ,5, 6, 7 ए और 7 बी व लगी हुई अतिरिक्त जमीन का। जो 1.50 लाख वर्गमीटर है। यह जमीन कंपनी के मालिक एसएस बब्बर को 1969, 1978, 1975 औऱ् 1986 में अलग-अलग समय में उद्योग विभाग से आवंटित हुई थी। वह भी 99 साल की लीज पर। बाद में कंपनी देनदारियों मे फंस गई और करीब 22 साल पहले बंद हो गई।
यह है उद्योग विभाग की एक्जिट पॉलिसी का नियम
मप्र के भू आवंटन नियम 2021 में संशोधन कर एक एक्जिट पॉलिसी लाई गई, जिसमें नियम 19(बी) पैरा में साफ है कि- बंद औद्योगिक इकाई जो कम से कम पांच साल तक उत्पादन में रही और कम से कम दो साल से बंद हो, वह आवंटित भूखंड के समुचित उपयोग के लिए व नए उद्योग स्थापना के लिए भूखंड का विभाजन कर हस्तांतरण हेतु पात्र होंगे, इसकी मंजूरी दी जाएगी। इसमें एक बात बिल्कुल साफ है कि यदि किसी ईकाई को मूल ईकाई के परिसमापन, न्यायालय (लिक्वीडेशन) द्वारा नीलामी या बैंक या ट्रिब्यूनल द्वारा नीलामी से भूमि ट्रांसफर होती है तो कम से कम पांच साल तक उत्पादन में रहना होगा और कम से कम दो साल से बंद रहना आवश्यक होगा।
इस नियम के अनुसार एरन ग्रुप को सात साल उद्योग चलाना था
इस नियम के मायने साफ है कि एरन ग्रुप ने डीआरटी नीलामी से दिसंबर 2022 में जमीन खरीदी। लेकिन उन्होंने कोई उद्योग चलाया ही नहीं, उनका कहना है कि मुझे लीज ट्रांसफर 99 साल की नहीं हुई बल्कि ईश्वर एलाय की बाकी समयावधि के लिए मिली है तो वह मूल आवंटी है और उन्हें पांच साल उद्योग चलाने की जरूरत नहीं है। डीआईसी हाईकोर्ट में यह पक्ष मजबूती से रख ही नहीं पाई कि यदि नीलामी से भी खरीदी है तो भी पांच साल उद्योग चलाना जरूरी है और फिर दो साल इसका किसी कारण से बंद होना जरूरी है, यानि नीलामी में खरीदी के सात साल तक वह यहां प्लाट काटकर बिक्री नहीं कर सकता है।
क्या होगा मप्र के उद्योग पर असर
इस पूरे मसले का उद्योग विभाग में बहुत असर होगा। मप्र में कई उद्योगों के पास हजारों करोड़ की जमीन पड़ी हुई है जो नीलामी प्रक्रिया में है और अन्य बिल्डर ग्रुप व अन्य बडे लोग खरीद रहे हैं। वह बिना उद्योग चलाए ही खुद को मूल आवंटी घोषित कराएंगे और इसके आधार पर वहां भी प्लाट काटकर जमकर मुनाफा कमाएंगे। उद्योग विभाग की जमीन बिल्डर के लिए एक बड़ा सेक्टर जमीन के खेल का खुल जाएगा।
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