BHOPAL. स्कूल शिक्षा की बदहाल तस्वीर सब देख ही रहे हैं, लेकिन प्रदेश में उच्च शिक्षा की हालत भी ठीक नहीं है। उच्च शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए प्रदेश सरकार ने नई तैयारी की है। इसके लिए अब हर जिले के एक कॉलेज को आइडियल बनाया जाएगा। इन कॉलेजों को पीएम कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस या प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस नाम दिया गया है। कॉलेजों को यह नाम देकर सरकार ने एक तीर से दो निशाने लगाने की कोशिश की है। प्रधानमंत्री नाम देकर इस मुहिम में मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार को भी जोड़ लिया है। यही वजह है कि बीते माह पीएम कॉलेज के शुभारंभ के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह स्वयं प्रदेश के दौरे पर आए थे। पूर्व में प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री रह चुके सीएम अपने इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम को लेकर बेहद उत्साहित हैं। लेकिन उच्च शिक्षा विभाग और कॉलेज के प्रोफेसरों में इसको लेकर कोई रुचि नहीं दिख रही। यही वजह है कि कॉलेज प्राचार्य बनने की योग्यता रखने वाले 3 हजार में से केवल 213 प्रोफेसरों ने ही इस पद के लिए आवेदन किया है।
सूबे के मुखिया डॉ.मोहन यादव प्रदेश में उच्च शिक्षा विभाग का जिम्मा संभाल चुके हैं। उन्हें कॉलेजों में पढ़ाई की हकीकत गहराई से पता है। यही वजह है डॉ. यादव प्रदेश की बागडोर संभालने के साथ ही कॉलेजों की व्यवस्था दुरुस्त करने में जुटे नजर आ रहे हैं। उन्होंने प्रदेश के हर जिले में एक कॉलेज को मॉडल के रूप में स्थापित करने का प्रोजेक्ट शुरू किया है। इस कॉलेज में उच्च शिक्षा के सभी कोर्स, अध्ययन के संसाधन और विद्यार्थियों के लिए सुविधाएं उपलब्ध होंगी। बीती 14 जुलाई को इंदौर में एक आयोजन के दौरान देश के गृहमंत्री अमित शाह इसका शुभारंभ कर चुके हैं। यानी अब प्रदेश के जिलों में 55 ऐसे कॉलेज होंगे जिनका नाम प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस होगा। सूबे के मुखिया डॉ.मोहन यादव के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर करीब 500 करोड़ का खर्च आएगा।
3 हजार योग्यताधारी, फिर भी 213 ने ही किए आवेदन
प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस को लेकर सीएम डॉ.मोहन यादव खासे उत्साहित हैं। उनकी रुचि के बावजूद विभागीय स्तर पर प्रोजेक्ट को लेकर अफसर दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। यहीं वजह है कि प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस को चलाने प्राचार्यों की पदस्थापना टलती जा रही है। उच्च शिक्षा विभाग ने पीएमश्री कॉलेजों के प्राचार्य पदों को भरने नियमित प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसरों से आवेदन बुलाए हैं। प्रदेश में कुल 562 सरकारी कॉलेज हैं जिनमें 3 हजार से ज्यादा प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर ऐसे हैं जो प्राचार्य पद के लिए जरूरी योग्यता रखते हैं। उधर प्रदेश के 42 प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस प्रभारी प्राचार्यों के भरोसे चल रहे हैं। इन पदों के विरुद्ध 13 जिलों के सरकारी कॉलेजों से एक भी आवेदन नहीं आया है। जबलपुर, सागर, दतिया और बालाघाट जिलों के पांच कॉलेजों के प्राचार्यों ने भी आवेदन किए हैं। लेकिन वे भी वर्तमान जिले के एक्सीलेंस कॉलेज में ही प्राचार्य पद चाहते हैं। फिलहाल 42 एक्सीलेंस कॉलेजों में प्रभारी प्राचार्य के लिए फेकल्टी मेंबर्स की ओर से 213 आवेदन उच्च शिक्षा विभाग के पास पहुंचे हैं। विभाग द्वारा पदोन्नति न देने के कारण ये प्रोफेसर अपने पुराने पद पर ही काम करने विवश हैं। पदोन्नति पर विभाग की बेरुखी का जवाब अब प्रोफेसरों की उदासीनता के रूप में दिख रहा है।
पदोन्नति न वेतन में इजाफा, इसलिए रुचि नहीं
प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस के संचालन के लिए उच्च शिक्षा विभाग द्वारा अतिरिक्त प्रतिभावान प्रोफेसरों से आवेदन आमंत्रित किए हैं। यह पद उसे दिया जाना है जो वर्तमान दायित्व को पूरा करने के साथ ही कॉलेज को बेहतर बनाने अतिरिक्त प्रयास कर सके। यानी इसके लिए प्रोफेसरों को अतिरिक्त समय देना होगा और ज्यादा काम भी करना होगा, लेकिन बदले में न तो पदोन्नति होगी, न वेतनमान बढ़ेगा और न दूसरी कोई सुविधा मिलेगी। पहले ही कई साल से पदोन्नति का इंतजार कर रहे प्रोफेसर दोहरे दायित्व को संभालने के बदले में पदोन्नति या वेतनमान में वृद्धि की आस लगाए थे। लेकिन ऐसा कोई लाभ न मिलने का पता चलने के बाद अब वे प्राचार्य बनने तैयार नहीं हैं। प्रोफेसरों का कहना है प्राचार्य के जिम्मे कई दायित्व होते हैं। सरकार जब कोई लाभ नहीं देना चाहती तो उन्हें भी दोहरी जिम्मेदारी उठाने की जरूरत नहीं है। कुछ प्रोफेसरों ने प्राचार्य बनने में दिलचस्पी दिखाई है लेकिन वे इस पर तभी राजी हैं जब पसंदीदा कॉलेज उन्हें मिले। उनकी इस शर्त ने उच्च शिक्षा विभाग की उलझन को बढ़ा दिया है।
विभाग की शर्तों से असमंजस में प्रोफेसर
एक्सीलेंस कॉलेजों में प्राचार्य के पद रिक्त हैं। इन पदों को भरने के लिए फिलहाल विभाग के पास विकल्प नहीं है। यही वजह है कि योग्यतावान प्रोफेसरों को उच्च पद पर प्रभार देने की तैयारी की गई है। यानी इन कॉलेजों में प्राचार्य पद का दायित्व संभालने तैयार प्रोफेसरों को प्रभारी बनाया जाएगा। उनकी यह नियुक्ति काम चलाऊ होगी। मतलब साफ है कि जब इस पद पर नियमित प्राचार्य की नियुक्ति होगी प्रभारी को दायित्व छोड़ना होगा। उनको विभाग द्वारा दूसरे शहर के कॉलेजों में ट्रांसफर भी किया जा सकता है। उच्च पद पर प्रभार की योग्यता रखने वाले अधिकांश प्रोफेसरों की सेवानिवृत्ति अवधि नजदीक है। यानी दो या तीन साल में ज्यादातर लोग सेवानिवृत्त हो जाएंगे। बिना किसी लाभ के नए शहर या नए कॉलेज का दायित्व संभालना और कई साल की सीनियरिटी के बाद भी प्राचार्य पद के लिए साक्षात्कार की बाध्यता वरिष्ठ प्रोफेसरों को रास नहीं आ रही है।
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