Point of View : सांसद-विधायक अपने कर्तव्यों में विफल हो रहे हैं?

भारत की संसद और विधानसभाओं का उद्देश्य नागरिकों के हितों की रक्षा करना है, लेकिन क्या हमारे प्रतिनिधि इस जिम्मेदारी को निभा रहे हैं? thesootr के एडिटर इन चीफ आनंद पांडे बता रहे हैं- किस तरह मध्यप्रदेश विधानसभा में विधायकों की सक्रियता घट रही है।

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Anand Pandey
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Photograph: (thesootr)

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Point of View: किसी भी लोकतंत्र में आम जनता की आवाज बुलंद करने वाली सबसे बड़ी पंचायत। सबसे बड़ा मंच। सबसे ताकतवर और प्रभावशाली संस्था कौन सी होती है? भारत के संदर्भ में आप तपाक से जवाब दे सकते हैं- संसद और विधानसभाएं।

देश की संसद और राज्यों की विधानसभाओं का काम ही होता है नागरिकों के हितों की रक्षा करना। संसद और विधानसभा में जो नुमाइंदे यानी सांसद और विधायक हम चुनकर भेजते हैं, उनका काम ही है- अपने वोटर। यानी हमारे और आपके जैसे नागरिकों के हित में कानून बनाना और उन कानूनों का ठीक से पालन हो रहा है या नहीं, ये देखना। इसी वजह से संसद और विधानसभाएं देश की सर्वोच्च शक्ति प्राप्त संस्थाएं हैं।

...लेकिन आपको क्या लगता है क्या हमारे सांसद और विधायक वाकई में वो काम कर पा रहे हैं, जिनके लिए हमने इन्हें चुनकर संसद और विधानसभा में भेजा है। ये सवाल हम क्यों पूछ रहे हैं ये आपको जल्द ही समझ आ जाएगा। सबसे पहले सिर्फ रिफरेंस के तौर पर हम बात कर लेते हैं संसद की। इसके बाद विस्तार से चर्चा करेंगे मध्यप्रदेश विधानसभा की।

संसद में पहले दिन भौं-भौं की चर्चा 

इस बार संसद का शीतकालीन सत्र यानी जो अभी चल रहा है वो शुरू हुआ था 1 दिसंबर से। 19 दिसंबर तक ये सत्र चलेगा, लेकिन पहले दिन क्या हुआ? कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी कुत्ता लेकर संसद पहुंच गईं। अब कुत्ता लेकर संसद जा सकते हैं या नहीं। हम इस बहस में नहीं पड़ेंगे, लेकिन पूरे दिन चर्चा रही भौं-भौं की। संसद का पिछला सत्र भी आपको याद ही होगा। जब बीजेपी सांसद रवि किशन ने पूरे देश में समोसे की साइज और रेट एक से करने का मुद्दा उठा दिया था।  

'द सूत्र' ने खंगाला सत्र का इतिहास

हम फिर मध्यप्रदेश पर लौटकर आते हैं। यहां मोहन सरकार को दो साल हो गए हैं। इस दरमियान विधानसभा के कुल सात सत्र हुए हैं। हालांकि, दिसंबर 2023 का पहला सत्र सिर्फ विधायकों की शपथ में निपट गया था। इसके बाद जो बड़ा सत्र आया, वो था फरवरी 2024 में। इसे मिलाकर अब तक छह सत्र हो चुके हैं। इन्हीं में कामकाज हुआ।

अब ये कितना चिंताजनक है कि इन छह सत्रों में कुल 47 बैठकें हुईं। 'द सूत्र' ने सदन के कामकाज को समझने के लिए 67 सालों का इतिहास खंगाला है। इसमें पता चला कि यहां तो उलटी गंगा बह रही है। पहले साल में औसतन 55 बैठकें होती थीं। अब घटकर मात्र 15 बैठकें हो गई हैं।

चार्ट से समझें, MP विधानसभा में किस सत्र में कितनी बैठकें हुईं...

सत्रबैठक संख्या
7 दिसंबर 254
6 जुलाई 258
5 मार्च 2515
4 दिसंबर 249
3 जुलाई 245
2 फरवरी 246

तो देखा आपने...। मप्र विधानसभा के सत्र लगातार छोटे हो रहे हैं। विधायकों की रुचि ही नहीं है।

सवालों पर गौर करें तो इन छह सत्रों में सूबे के 230 विधायकों ने 15 हजार 563 सवाल उठाए। चार्ट देखिए...  

सत्रउठाए गए सवालों की संख्या
7 दिसंबर 251497
6 जुलाई 253306
5 मार्च 252790
4 दिसंबर 241697
3 जुलाई 243997
2 फरवरी 242276

अब यदि हम अंकगणित पर जाएं तो 230 विधायकों के हिसाब से एक विधायक ने औसत रूप से दो साल में 67 सवाल उठाए। एक साल में यह संख्या 33 रह जाती है। हर सत्र के हिसाब से इसे देखें तो एक सत्र में एक विधायक ने महज 11 सवाल उठाए।

इन आंकड़ों को देखकर मुझे तो लगता है कि मध्यप्रदेश में रामराज्य का आ गया है? आप लोग यूं ही कहते रहते हैं कि सरकार और विपक्ष कुछ नहीं कर रही। हां, भैया आप ही सही हैं।

आपके विधायक जी कुछ नहीं कर रहे। मैं फिर दूसरे तरीके से आपको समझाऊं तो एक विधानसभा में औसत रूप से ढाई लाख वोटर होते हैं। ढाई लाख लोगों की आवाज 11 सवालों में कैसे समेटी जा सकती है? उस पर विधायक विधानसभा में ऐसे सवाल पूछते हैं, जिनका आपसे यानी जनता से सीधे तौर पर कोई लेना देना नहीं होता है।

वेतन में हम किसी से कम नहीं

यदि मध्यप्रदेश विधानसभा के लिहाज से खर्च और विधायकों की तनख्वाह, भत्ते देखें तो वे भी बेहिसाब बढ़ रहे हैं। मध्यप्रदेश में विधायकों का वेतन किसी बड़े कॉर्पोरेट एम्प्लाई से कम नहीं है।

अभी विधायकों को...

  • वर्तमान वेतन–भत्ता: 1 लाख 10 हजार रुपए मिलता है।
  • पूर्व विधायक: 35 हजार पेंशन पाते हैं।
  • मंत्री: 1 लाख 70 वेतन, भत्ते के हकदार हैं।
  • राज्यमंत्री: 1 लाख 50 हजार की श्रेणी में आते हैं।

और इन सब में फिर बढ़ोतरी की तैयारी है।

अब एक और गैर-बराबरी देखिए

सरकारी कर्मचारी को 62 साल की उम्र या 30 साल की नौकरी पर 9 हजार रुपए की न्यूनतम पेंशन मिलती है, लेकिन MP में कोई शख्स सिर्फ एक दिन विधायक रह जाए, तो भी उसे 35 हजार रुपए की पेंशन मिलना तय है। कई नेताओं को यहां 3–3 पेंशन मिल रही हैं।

राघवजी को एक लाख रुपए पेंशन मिलती है

पूर्व वित्त मंत्री राघवजी 3 बार विधायक, 4 बार सांसद रहे हैं। उन्हें हर महीने पूर्व विधायक पेंशन 43 हजार रुपए, पूर्व सांसद के रूप में लोकसभा की 25 हजार और राज्यसभा की 10 हजार रुपए पेंशन मिलती है। मीसाबंदी पेंशन के रूप में वे 25 हजार रुपए पाते हैं।

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प्रदर्शन के लिए तो सड़कें हैं 

हां, ये जरूर है कि विधायक यह कह सकते हैं कि हम तो सवाल उठाना चाहते हैं, लेकिन सत्र ही छोटे हो रहे हैं? तो फिर यहां सवाल है कि सत्र छोटे हो क्यों रहे हैं? ये किसकी जिम्मेदारी है। विरोध और प्रदर्शनों में तो सत्र खत्म हो जाता है।

मौजूदा शीतकालीन सत्र की ही बात करें तो इसमें विपक्ष के विधायकों ने तीन बार प्रदर्शन किया। पूतना का रूप धरा। बंदर का रूप धरा। अरे भैया, प्रदर्शन के लिए सड़कें हैं। सदन तो चर्चा के लिए होता है।

क्योंकि... हम तो वोटर बनकर ही खुश हैं

अब यहां आप सोच रहे होंगे कि हम यह खबर क्यों बता रहे हैं? विधायक क्यों इतने लापरवाह हो गए हैं? क्योंकि बतौर नागरिक हम दबाव नहीं बना रहे हैं। हम यह जानने की कोशिश ही नहीं करते कि विधायक जी कैसा काम कर रहे हैं। क्योंकि हम तो वोटर बनकर ही खुश हैं... नागरिक बोध हम में से नदारद ही होता जा रहा है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए द सूत्र जो हमेशा कहता है कि वोटर नहीं नागरिक बनिए... एक नई पहल कर रहा है।

अपने फैसले की आप कीजिए समीक्षा

इसीलिए अब 'द सूत्र' आपको मौका दे रहा है। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़… तीनों राज्यों में अलगे हफ्ते सरकारों के दो साल पूरे हो रहे हैं। दो साल पहले आपने उम्मीदों से भरे जनादेश के साथ नई सरकारों को मौका दिया था। नया नेतृत्व आया। नए वादे आए। नए दावे आए। अब आप फिर उसी मोड़ पर खड़े हैं, जहां आपको अपने फैसले की समीक्षा करनी चाहिए।

इन दो सालों में क्या आपके इलाके की तस्वीर बदली? क्या विकास ने सच में रफ्तार पकड़ी? क्या आपके जनप्रतिनिधि जमीन पर दिखे? इसी उद्देश्य से 'द सूत्र' लेकर आया है-  "मन मत"। यह तीनों राज्यों का सबसे बड़ा डिजिटल सर्वे है।

'द सूत्र' के इस सर्वे में आप खुलकर बता सकते हैं कि विधायक ने दो साल में कितना काम किया। वादे पूरे हुए या नहीं हुए। जनता से रिश्ता कितना मजबूत रहा। क्षेत्र में विकास की दिशा तय हुई या अभी भी सब कुछ कागजों में ही दौड़ता रहा।

'द सूत्र' की पत्रकारिता हमेशा जनहित और सामाजिक सरोकारों पर आधारित रही है। हम मानते हैं कि लोकतंत्र तभी मजबूत रह सकता है, जबकि जनता सिर्फ एक दिन की वोटर बनकर न रह जाए। उसे हमेशा, लगातार जागरूक रहकर अपना नागरिक धर्म निभाना पड़ेगा। ये सर्वे इसी सोच का नतीजा है।

एमपी सरकार के दो साल पूरे होने पर सर्वे में शामिल होने के लिए फोटो पर क्लिक करें...

MP GOVERNMENT

आपकी राय ही असली फैसला

लोकतंत्र में जनता अंतिम फैसला करती है। यह डिजिटल सर्वे उसी हक को और मजबूत बनाता है। आप सर्वे में हिस्सा लेकर न केवल अपने विधायक की परफॉर्मेंस सामने ला सकते हैं, बल्कि अपने इलाके की वास्तविक स्थिति का आईना भी दिखा सकते हैं।

अगर आप मध्यप्रदेश, राजस्थान या छत्तीसगढ़ से हैं तो नीचे डिस्क्रिप्शन में दिए गए लिंक पर क्लिक कर अपनी राय दर्ज करें। सर्वे बहुत आसान है। आप जिस राज्य के निवासी हैं, वहां की लिंक पर क्लिक करें। एक गूगल फॉर्म खुलेगा सवालों के विकल्प चुनकर अपनी राय दर्ज करें। कुछ ही मिनट में आपका वोट दर्ज हो जाएगा।

बस्ती में तुम खूब सियासत करते हो।
बस्ती की आवाज उठाओ तो जानें।।

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Journalist Anand Pandey | पत्रकार आनंद पांडेय | प्वाइंट ऑफ व्यू

मध्यप्रदेश विधानसभा पत्रकार आनंद पांडेय Journalist Anand Pandey Point Of View प्वाइंट ऑफ व्यू
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