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Photograph: (the sootr)
भोपाल. मध्यप्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल इन दिनों अपने बयानों को लेकर चर्चाओं में हैं। इस बीच 'द सूत्र' ने उनसे इसकी वजह पूछी, जिसका उन्होंने खुलकर जवाब दिया। 'द सूत्र' के एडिटर इन चीफ आनंद पांडे के साथ विशेष बातचीत में मंत्री पटेल ने पीएम मोदी से लेकर सीएम डॉ. मोहन यादव, कसक से लेकर कसम और सियासत से लेकर सत्ता तक हर सवाल का बेवाकी से जवाब दिया।
मूल्यों की राजनीति और स्वाभिमान की जंग के बीच प्रहलाद सिंह पटेल ने व्यवस्था की खामियों पर तीखे सवाल किए, साथ ही सुधार की उम्मीद भी जगाई। विशेष बातचीत में उन्होंने नर्मदा के संरक्षण से लेकर युवाओं के स्वावलंबन तक और राजनीति में नैतिकता से लेकर सत्ता के वैभव के खतरे तक हर मुद्दे पर अपनी बात रखी।
उन्होंने शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद से हुए मनमुटाव की दास्तां भी साझा की। साथ ही मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के साथ समन्वय पर उन्होंने कहा कि मैं उनकी कैनिबेट का सदस्य हूं। वित्तीय मामलों की जानकारी लेना मंत्रिपरिषद के प्रत्येक सदस्य की जिम्मेदारी है और मुख्यमंत्री जी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं। मैं मानता हूं कि वो ठीक दिशा में काम कर रहे हैं। परिश्रम वो कर रहे हैं, ये सारा राज्य देख रहा है।
सवाल: प्रहलाद सिंह पटेल को गुस्सा क्यों आता है? क्या ये व्यवस्था को लेकर आपकी नाराजगी है, आपकी बेचारगी है या राजनीति में जो मुकाम आप हासिल करना चाहते थे, वो नहीं मिल पा रहा तो उसकी छटपटाहट है?
जवाब: कुछ चीजों पर आपको गुस्सा आना ही चाहिए। हर कदम पर आप मूल्यों की बात नहीं कर सकते, लेकिन जहां मूल्यों की, अच्छे काम की आप अपेक्षा करते हैं और वहां चीजें गड़बड़ाती हैं और वहां चेतावनी और समझाने के बाद भी यदि गलती होती है तो गुस्से का पहला स्टेज यह है कि आपने रिएक्ट कर दिया। दूसरा यह है कि कोई सरकारी मुलाजिम है तो कार्रवाई कर दी।
तीसरी बात है कि आप उसके पीछे इतिहास खंगालते हैं और आगे के रास्ते पर बढ़ते हैं। खास यह है कि यदि आप सार्वजनिक जीवन के लोगों से बात करते हैं तो आप उन्हें समझाते हैं और डांटते भी हैं। मुझे लगता है कि जिस टीम से आपको काम लेना है, जरूरी है कि उसे बौद्धिक समझ दी जाए और उसके बाद भी यदि वह सहयोग नहीं कर पा रहा है तो मुझे लगता है कि वह आगे चलने लायक नहीं है।
ऐसी ही घटनाएं होती हैं, जो परसेप्शन के रूप में बाहर आती हैं। जब मैं ये दो बातें कहता हूं तो दोनों लोग शामिल हैं। एक प्रशासनिक अधिकारी और दूसरे में स्वजातीय बंधु। मुझे लगता है कि किसी भी समाज को स्वाभिमान से दूर रखने की सलाह देना या लाभ ही कमाइए...सिर्फ यह कहना, इसी लालच ने तो हमारा कबाड़ा कर दिया है। हमारी जो बारहमासी नदियां थीं, आज वो सूखी हैं। जंगल कट रहे हैं, इसमें चंद लोगों को लाभ हुआ होगा, लेकिन आने वाली पीढ़ी का कितना बड़ा नुकसान है। जल, जंगल और जीवन का सरोकार मनुष्य से है। मैं मानता हूं कि नर्मदा पर संकट आना, मतलब राज्य पर संकट आना है।
सवाल: देश में चंद नेता हैं, जिन्होंने नर्मदा परिक्रमा की है, लेकिन हम ढाई दशक से देख रहे हैं कि नर्मदा में अवैध उत्खनन कैसे रुकेगा?
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जवाब: देखिए, ये विरोधाभासी चीजें हैं। इसे स्वीकार करने में कोई लज्जा नहीं आनी चाहिए। आज नरसिंपुर जिले में माइनिंग बंद हो गई है, लेकिन बाद में किसी कोने में शुरू हो गई। यदि आप चाहें कि बंद कर सकते हैं तो बंद की जानी चाहिए, लेकिन विकल्प भी तय कीजिए। अराजकता की छूट किसी को नहीं दी जानी चाहिए। खासकर नर्मदा को लेकर तो सख्त कदम नहीं उठाए जाएंगे तो वे तमाम लोग भागीदार होंगे, जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कहीं भी उसके साथ जुड़े हैं। एक समय मैंने ही कहा था कि पीडब्ल्यूडी में नर्मदा सेंड का जिक्र है, आप उसे डिलीट कर दीजिए। नर्मदा सेंड की अनिवार्यता क्यों है? अब तो कई तरह से रेत बनने लगी है। अब ऐसे बदलाव करने का समय आ गया है। नर्मदा को दूसरी सहायक नदियां ताकत देती हैं। अभी हमारे पास वक्त है, छोटी नदियों के उद्गम से लेकर उनके लिए काम करें, ताकि वे बारहमासी हो जाएं।
सवाल: हमारे देश में राजनीति का जो मौजूदा दौर चल रहा है, उसमें नेता या तो ड्रॉइंग रूम में बैठकर राजनीति कर रहा है या सोशल मीडिया पर राजनीति चल रही है। हम ऐसे लोगों को खड़े नहीं कर पा रहे हैं, जो नेता लीडर बनने की काबिलियत रखते हों। जिन्हें समाज फॉलो करे?
जवाब: मुझे लगता है मूल्यांकन करना चौथे स्तंभ का काम है। आप क्या सोचते हैं? क्या परसेप्शन है, लेकिन मैं इतना जरूर कहूंगा कि अभी भी समाज में काम करने वाले लोग हैं। पूरी व्यवस्था को सड़ी गली बताना अतिश्योक्ति है। इक्का-दुक्का ऐसे लोग हैं, जो हमें निराश करते हैं। इतने बड़े तंत्र में कुछ खामियां हो सकती हैं। अच्छे काम करने वाले लोग यदि सक्रिय बने रहें, मेरी यही कोशिश है।
सवाल: किसी राज्य का, किसी देश का तब तक भला नहीं हो सकता, जब तक या तो दार्शनिक राजा बन जाए, या राजा दर्शन शास्त्र पढ़ ले, आपकी क्या राय है?
जवाब: नहीं, इसमें सबकी अलग राय रही है। लोहिया जी ने कुछ और कहा है, लेकिन दीनदयाल उपाध्याय जी का मुझे पता है। वे कहते थे कि यदि किसी भी सामाजिक कार्यकर्ता के भीतर आध्यात्मिकता है तो फिर समाज और राष्ट्र का निश्चित रूप से भला होगा।
सवाल: राममनोहर लोहिया जी कहते थे कि 'व्यक्ति भ्रष्ट नहीं होता, सत्ता का वैभव उसे भ्रष्ट कर देता है...' आप करीब पांच दशक से राजनीति में हैं। उनके इस कथन से आप कितने सहमत हैं।?
जवाब: मैं सौ फीसदी सहमत हूं और मैं अटल जी की बात को कोट कर रहा हूं...वे नए और पुराने सांसदों से कहते थे कि ये दिल्ली मायानगरी है। यहां दाम सबके तय हैं। आपको बिकना है या नहीं बिकना है, यह आपको तय करना है। यहां प्रश्न लगाने के पैसे मिलते हैं, प्रश्न वापस करने के पैसे मिलते हैं। प्रश्न में अनुपस्थित होने के पैसे मिलते हैं, तो ये आपको तय करना है। अटल जी जैसे लोग हमेशा कहते रहे। हमारे शास्त्र भी कहते हैं कि किसी का तप भ्रष्ट करना हो तो उसे सत्ता दे दो। लोहिया जी ने सही कहा है। वे समाजवादी थे, लेकिन वे भारतीय समाजवाद के प्रणेता थे।
सवाल: पूरे देश के युवा के सामने सबसे बड़ी समस्या रोजगार को लेकर है? आपके पास पंचायत और ग्रामीण विकास जैसे विभाग हैं, तो आपके पास क्या विजन है, जिससे उनके लिए रोजगार का निर्माण हो सके?
जवाब: मुझे लगता है कि नेताओं को विलेन की तरह देखने की आदत पड़ गई है। जिसको जो मर्जी आए, वो कहता है। मैं अपना उदाहरण देता हूं। मैं कॉलेज से निकला तो रोजगार का संकट हमारे सामने भी था। हम किसी राजा के यहां पैदा नहीं हुए। एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार से आते हैं। बड़े भैया नौकरी करने लगे, छोटे भाई खेती करते थे और हम पूरी तरह से खर्चा करते थे, लेकिन मैंने उस समय स्टेट पीएससी दी थी और तब डीएसपी की कैटेगिरी होती थी तो उसमें रिटर्न टेस्ट में पास भी हो गया, लेकिन मेरा मन था कि नौकरी नहीं करूंगा, क्योंकि मुझे सरकार से इतनी नाराजगी थी कि सरकार से लड़ना है, तब तो भविष्य में नहीं था कि मैं सांसद बनूंगा, विधायक बनूंगा। जिस जगह मैं पैदा हुआ, वहां मैं पार्षद नहीं बन सकता था, क्योंकि मेरे पिता ही मेरे विरोध में थे। ऐसी स्थिति में भी जब आप कोई फैसला करते हो, तो रोजगार का मतलब क्या है। मेरे हिसाब से रोजगार का मतलब स्वाबलंबन है। आप सरकारी नौकरी को जब रोजगार मानकर परिभाषित करेंगे तो फिर संकट खड़ा है और दूसरा फिर जो आपकी क्षमता नहीं है, वो आपको चाहिए, भले वो पैसे से मिल जाए, चाहे वो बाकी जगह से मिल जाए। मैं नौजवानों से कहूंगा कि मांगने के बजाय पहले अपना फैसला करो कि आप किस योग्य हो। आप करना क्या चाहते हो? सरकारी नौकरी की जिद क्यों है, क्योंकि आप ऐसी पढ़ाई करके आपने नेचर बना लिया है कि अब पेंट शर्ट पहन लिए, मैं बाबूजी बन जाउं, तो मैं खेत में काम कैसे करूंगा। मेरा कहना है कि यदि आपको अपने परिवार के काम से शर्म आ रही है तो भगवान भी यदि सामने आ जाएं तो आपका भला नहीं कर सकते।
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सवाल: प्रदेश में महिलाओं को पचास फीसदी आरक्षण दिया गया है, लेकिन उसका जो फायदा महिलाओं तक पहुंचना चाहिए, वो नहीं हो रहा। गांवों में, पंचायतों में महिला जनप्रतिनिधियों के स्थान पर उनके पति, बच्चे काम कर रहे हैं? इसे रोकने के लिए क्या प्लान है?
जवाब: मैं पहले की बात नहीं करता, लेकिन मेरे बनने के बाद स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी सरपंच, जनपद, जिला पंचायत अध्यक्ष का प्रतिनिधि नहीं होगा। मैंने तीन दिन की यहां चिंतन बैठक ली थी। एक भी आदमी को एंट्री नहीं मिली और वो मैसेज गया। लेकिन कहीं पंचायतों में बिलकुल ऐसी परिस्थिति होगी, मैं उसे इनकार नहीं करता। मैंने बुंदेलखंड में दस साल राजनीति की है, वहां तो ठेके पर पंचायतें चलती थीं, लेकिन जब आप महिलाओं को ट्रेनिंग ही नहीं दिलाएंगे तो कैसे चलेगा। पंच, सरपंच के प्रशिक्षण में लोग जाते नहीं हैं, जबकि सरकार पूरा खर्च उठाती है। यदि आप जाएंगे नहीं तो आप मानकर चलिए वो गुणवत्ता आने वाली नहीं है। इसका दूसरा पक्ष भी है कि इन बातों के खिलाफ अब लोग खड़े होने लगे हैं।
सवाल: मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के आपके समन्वय को लेकर पहले बहुत सारी बातें हुईं, दूसरा आपको क्या लगता है कि जिस लक्ष्य के साथ उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी गईं थी, क्या वो उस दिशा में काम कर पा रहे हैं?
जवाब: कब, कहां और कौन क्या सोच लेता है, इसकी मैं कभी चिंता करता नहीं हूं। एक बात बड़ी साफ है कि मोहन जी इस प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। उनकी शपथ में हम भी शामिल थे। उनके निर्णय में भी हम शामिल थे। मैं उनकी कैबिनेट का सदस्य हूं। जब तक मैं उनकी कैबिनेट का सदस्य हूं, तब तक मेरी ईमानदारी पर कभी कोई शंका नहीं कर सकता। मेरी कार्यप्रणाली और मेरा रक्त है ऐसा। और यदि मैं कभी कोई बात पूछता हूं तो मेरा निजी लाभ कभी कुछ नहीं होता। मैं अटल जी का पट्ठा हूं। उन्होंने मुझसे कहा था कि यदि आर्थिक मामले आएं तो एक बार जरूर पढ़ना और समझना चाहिए कि ये समाज के भले और बुरे का सवाल है। मुझे लगता है कि वित्तीय मामलों के अलावा और किसी मामले में मैं कभी नहीं बोला हूं। वित्तीय मामलों की जानकारी लेना मंत्रिपरिषद के प्रत्येक सदस्य की जिम्मेदारी है और मुख्यमंत्री जी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं। मैं मानता हूं कि वो ठीक दिशा में काम कर रहे हैं। परिश्रम वो कर रहे हैं, ये सारा राज्य देख रहा है।
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सवाल: स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी से आपकी लंबे समय तक अदावत रही, फिर बाद में आपने उनसे आशीर्वाद लिया? क्या घटनाक्रम था वो असल में?
जवाब: क्षत्रिय होने के नाते मेरे पिताजी उनके शिष्य थे और बचपन में हमने भी उनसे गुरु मंत्र लिया। मैं सवाल करता था और वे उत्तर भी देते थे। बात भी मेरी मानते थे। जब एक बार श्री बाबाश्री जी ने मुझसे कहा कि स्वामी जी से मिलना है। मैंने उन्हें मना किया कि आप मत जाइए, क्योंकि वहां जो चौकड़ी है, वो ऐसी नहीं है। वे नहीं माने। बोले, मेरा धर्म है, जो मुझे माई ने दिया है। गए, वहां सत्संग हुआ। तो उन्होंने कहा कि मेरी भागवत है, आप वहां आकर प्रवचन कर दो। श्री बाबाश्री जी का स्वभाव बड़ा वैसा था। उन्होंने कहा कि ये मेरा काम ही नहीं है। आचार्य आप, प्रवचनकर्ता आप, मेरा मंच पर क्या काम है। कुछ और भी बातें हुईं और हम उठकर आ गए।
श्री बाबाश्री जी ने मुझसे कहा...अंदाजा उनकी बातों से हो गया। तो उन्होंने कहा कि यदि काल भी सामने आए तो डरना मत, इतनी हिम्मत है। तो मैंने कहा हां। चीजें शुरू हो गईं। आश्रम से फिर वो दुष्प्रचार शुरू हुआ। शुरुआत जब वहां से हुई तो हमें सामने आना पड़ा। सामने आए तो पत्राचार शुरू हो गए। फिर नरबलि का आरोप लग गया। हम परिक्रमा में थे, जितने षड्यंत्र हो सकते थे, वे सब हुए। इस बीच मुझे बुरे से बुरे अनुभव मिले, लेकिन धीरज नहीं टूटा। बाद में चीजें बदल गईं। उसी बीच मैं फिर सांसद बन गया। मंत्री बन गया, लेकिन ये सब खत्म हो गया।
हमारी निष्ठा बहुत थी, लेकिन पिताजी भी उसके बाद से फिर भी परमहंसी नहीं गए। फिर एक बार मां ने कहा कि हमें जाना चाहिए। हम सब बैठे और तय किया कि आज हम सब समर्थ हैं और स्वामी जी अस्वस्थ हैं। तो पिताजी के साथ हम परमहंसी गए। स्वामी जी ने भी दृष्टि खोली। उस दिन के बाद से वे बोले नहीं। मुझे याद है कि विवाद के समय भी जब वे कहीं दूर होते थे तो मैं घुटने टेकर उन्हें प्रणाम करता था और दूर से ही निकल जाता था, क्योंकि मैं उनसे दीक्षित था। बाद में हमारा जाना हुआ। सबको प्रसन्नता हुई। बाद में जब उनकी समाधि हुई तो सारे संन्यासियों के बीच में अकेला मैं ही गृहस्थ था, जो समाधि में भीतर था।
सवाल: स्वरूपानंद जी दिग्विजय सिंह के भी गुरु थे। दिग्विजय सिंह जी की सनातन पर जो टिप्पणियों होती है, उन पर आप क्या कहेंगे?
सवाल: आप अटल जी के भी मंत्री रहे, मोदी जी के भी मंत्री रहे और हम मोहन जी के मंत्री हैं, इसके बाद भी आपने जीवन में कोई कसक रही हो? जो काम आप नहीं कर पाए?
जवाब: मैं महत्वाकांक्षी नहीं हूं। मैं राजनीति में आया था तो समाजसेवा के मन से आया था। अन्याय का प्रतिकार करना हमारा स्लोगन था। मौत से तो मैं डरा नहीं। छात्र राजनीति से अब तक मुझ पर रणछोर का आरोप नहीं लग सकता। मैंने कभी परिणाम की चिंता की होती तो मैं ऐसे पागलपन के काम नहीं करता। इसलिए मुझे कभी कोई रंज नहीं है कि ये नहीं कर पाया, वो नहीं कर पाया। मैं हमेशा मानता हूं कि अगली पीढ़ी के लिए स्थान रिक्त कर देना चाहिए। आज भी मैं उसी मत का हूं। इसलिए लोकसभा चुनाव के आठ महीने पहले ही मैंने कह दिया था कि अगला चुनाव नहीं लड़ूंगा। विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए पार्टी मुझे कहेगी, इसका अंदाजा बिलकुल नहीं था। मुझे कोई गिला शिकवा नहीं है। मैं श्री बाबाश्री के आदेश के अनुसार नशामुक्ति का, समाज के काम करता हूं। जीवन को उसी आधार पर जीता हूं। ये मेरी एक अलग दुनिया है। नर्मदा के बारे में मेरा नेतागिरी का भाव नहीं है। एक सेवक का भाव है, इसलिए सरकार के खिलाफ बोलना पड़े तो बोलूंगा। किसी भी ताकतवर आदमी के खिलाफ कहना पड़े तो कहूंगा। नर्मदा को जो नुकसान पहुंचाएगा, उसके खिलाफ बोलूंगा।
सवाल: आप कह रहे हैं कि अगली पीढ़ी के लिए जगह रिक्त कर देना चाहिए, पर अभी तो आपके पास वक्त है, क्योंकि भाजपा तो 75 साल में रिटायरमेंट की बात करती है?
जवाब: देखो समय के पहले जवान हो गए तो समय के पहले अपने आप को बूढ़ा मान लेना चाहिए। और बूढ़ा होने का मतलब आप अशक्त नहीं हुए हैं। रिटायरमेंट का मतलब आप निष्क्रिय नहीं हो रहे हैं। निष्क्रिय नहीं होना चाहिए, लेकिन पद पर बने रहना...ये छोड़ देना चाहिए।
सवाल: उमा भारती के आप बहुत नजदीक रहे, उनके परिवार के सदस्य थे? वे जो अभी कर रही हैं, क्या आपको लगमा है कि वे अब नैपथ्य में चली गई हैं और उनकी राजनीति खत्म हो गई? चर्चा में बने रहने के लिए वे ये सब करती हैं?
जवाब: उमा जी बहुत बड़ी नेता हैं। मैंने उन्हें वचन दिया है कि उनके बारे में जीवन में कभी नहीं बोलूंगा। मैंने उमा जी पर कभी टिप्पणी नहीं की। वे बहुत प्रखर नेता हैं, उनका विजन बड़ा है। उन्होंने अपना रास्ता तय किया है। उसका जवाब उमा जी ही देंगी। मैंने तय किया है कि इस जनम मैं उमा जी के बारे में कभी कुछ नहीं बोलूंगा।
सवाल: आप यदि राजनीति में नहीं होते तो क्या कर रहे होते?
जवाब: अच्छा शिक्षक होता।
सवाल: पंचायत शब्द सुनते ही आपके मन में पहला ख्याल क्या आता है?
जवाब: जैसा हम परिवार के बारे में सोचते हैं, वैसा ही हम समाज के बारे में सोचें।
सवाल: यदि आपको एक दिन आम सरपंच की तरह जीने का मौका मिले तो आप सबसे पहले क्या करेंगे?
जवाब: मैं दायित्वों की बात करूंगा, अधिकारों की बात बिलकुल नहीं करूंगा।
सवाल: आप मौजूदा मोहन सरकार को सौ में से कितने अंक देंगे?
जवाब: मैं कैबिनेट मंत्री हूं। कोई मुझे फेल भी कर सकता है, लेकिन मैं उन्हें पूर्ण सफल कहूंगा।
सवाल: अभी तक के राजनीतिक जीवन में कोई एक बात जो आप बदलना चाहें?
जवाब: हां, जीवन में क्रोध के कारण मुझसे गलतियां हुई हैं, लेकिन अब उन्हें बदलना संभव नहीं है।
सवाल: एक ऐसा फैसला जो मंत्री बनने के बाद आपको सबसे कठिन लगा?
जवाब: मुझे कभी नहीं लगा। मैं चुनौतियों से लड़ने का आदी हूं, खराब से खराब काम मुझे दीजिए, मैं करके बताउंगा।
सवाल: आपके मौजूदा मंत्रालय का कोई ऐसा प्रोजेक्ट जिसे आप दिल से अपना मानते हैं?
जवाब: मैं चाहता हूं कि मेरे रहते मध्यप्रदेश ये कहने की स्थिति में हो कि मेरी कोई भी पंचायत भवन विहीन नहीं है। पंचायतों को मैं स्वाबलंबी और आत्मनिर्भर देखना चाहता हूं।