मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में ही पिछली दायर याचिका पर राहत न मिलने के बाद निजी स्कूलों ने चीफ जस्टिस की युगल बेंच में रिट अपील दायर की थी। जिसका मंगलवार 13 अगस्त को आया फैसला निजी स्कूलों के लिए राहत भरा है।
जिला शिक्षा समिति के आदेश को दी चुनौती
हाईकोर्ट में दायर की गई पिछली अपील के बाद राहत न मिलने के कारण निजी स्कूलों ने पिछले फैसले पर रिट अपील दायर की थी। जिसमें स्कूलों की ओर से अधिवक्ता ने यह तथ्य रखा की म.प्र.निजी विद्यालय (फीस तथा संबंधित विषयों का विनियमन) 2017 के भाग पांच के अनुसार उन्होंने 10% की ही फीस वृद्धि की है। जबकि शासन के द्वारा जो जांच रिपोर्ट तैयार की गई है उसमें कोरोना काल के सालों में ली जा रही फीस को बेस मानकर गणना की गई है। जिसके कारण यह फीस वृद्धि 40% तक दिखाई जा रही है पर असलियत में सत्र 2017-18 से अब तक स्कूलों ने 10% ही फीस वृद्धि की है। निजी स्कूलों की ओर से अधिवक्ता ने यह भी तथ्य रखा की एक मामले में जबलपुर जिला कमेटी के द्वारा ही जांच रिपोर्ट में यह माना गया है कि उन्होंने 10% से कम फीस वृद्धि की है। और निजी विद्यालय अधिनियम 2017 के अनुसार 10% तक की फीस वृद्धि करने पर उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं हो सकती। वही फीस वृद्धि की जानकारी पोर्टल में अपलोड ना करने के मामले में शासन के द्वारा उन्हें 25 हज़ार रुपए का जुर्माना किया जा चुका है अब ऐसे में उन्हें एक ही एक्ट के लिए दो तरह से जुर्माना नहीं किया जा सकता।
अभिभावक नहीं जमा कर रहे फीस
निजी स्कूलों के द्वारा कोर्ट को यह बताया गया कि जिला शिक्षा कमेटी के द्वारा स्कूलों की फीस निर्धारित कर दी गई है जबकि उनके पास ऐसा कोई अधिकार ही नहीं है और इस आदेश के आने के बाद से अभिभावकों ने स्कूलों को फीस देना ही बंद कर दिया है जिसके कारण स्कूल का संचालन और शिक्षकों का वेतन तक देने में स्कूल असमर्थ हैं।
उदाहरण से समझिए क्या हुई जांच में गलती ?
जांच में कोरोना कल का बेस ईयर समझने के लिए हम एक स्कूल सेंट्रअलॉयसिस का उदाहरण देते हैं। सत्र 2020-21 में इस स्कूल की फीस 36 हजार 1 सौ 10 रुपए थी। 2021-22 में कोरोना के चलते यह स्कूल 29 हजार 1 सौ 60 रुपए फीस लेने लगा। साल 2022-23 में स्कूल की फीस 40 हजार 50 रुपए हो गई। प्रशासन के द्वारा जो बढ़ी हुई फीस की गणना की गई वह कोरोना के साल यानी 29 हजार 1 सौ 60 रुपए से की गई, जबकि कोरोना के पहले इस स्कूल की फीस 36 हजार 1 सौ 10 रुपए थी। तो इस आधार से असल मे स्कूल ने जो फीस बढ़ाई वह 10% से कम थी और इसी अवलोकन के चलते हाईकोर्ट ने स्कूलों को राहत दी है।
जांच अधिकारी से हुई गलती
इस सुनवाई में यह भी सामने आया की इस मामले में की गई जांच में जांच अधिकारी ने यह ध्यान नहीं दिया कि कोरोना काल में स्कूल सिर्फ ट्यूशन फीस ही ले रहे थे। इस तरह जांच के दौरान कोरोना काल को बेस ईयर मानकर दिए गए आदेश को भी अदालत ने गलत पाया और स्कूलों को साल 2017 से अब तक ली गई अधिक फीस लौटाने के आदेश पर भी कोर्ट ने स्टे आर्डर दे दिया है। इस तरह आज एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और विनय सराफ की युगल पीठ ने जबलपुर जिला प्रशासन के द्वारा 5 जुलाई और 9 जुलाई को जारी किए गए दोनों आदेशों को गलत मानते हुए,अगली सुनवाई तक स्टे का आदेश दे दिया है। इसके साथ ही याचिकाकर्ताओं को रिट याचिका पर अपना जवाब पेश करने के लिए भी स्वतंत्रता दी गई है।
स्कूल बढ़ाई हुई फीस को वापस करने हुए राजी
हाईकोर्ट में साथ निजी स्कूलों द्वारा लगाई गई रिट अपील की एक साथ सुनवाई हुई। स्कूलों ने यह सहमति भी दी है कि नियम अनुसार पिछले वर्ष की तुलना में 10% से अधिक ली गई फीस को वह अभिभावकों को लौटएंगे या इसे फीस में एडजस्ट कर दिया जाएगा, पर यह रकम कहीं 35 रुपए तो कहीं 40 रुपए मात्र की होगी।
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