आधुनिक युद्ध केवल ज़मीन या समुद्र पर नहीं, बल्कि आकाश में भी लड़े जाते हैं। ड्रोन, मिसाइल और फाइटर जेट जैसे खतरों से निपटने के लिए एयर डिफेंस सिस्टम किसी भी देश की सुरक्षा का आधार बन चुका है। हालिया 'ऑपरेशन सिंदूर' में भारत की एयर डिफेंस क्षमता ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह प्रणाली कितनी अहम है।
भारत अब इस दिशा में आत्मनिर्भरता की ओर बड़ा कदम बढ़ा रहा है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन एक अत्याधुनिक और पूरी तरह से स्वदेशी एयर डिफेंस सिस्टम तैयार कर रहा है जिसका नाम है प्रोजेक्ट कुशा। यह प्रणाली रूस के एस-400 की तरह काम करेगी, बल्कि उससे भी उन्नत हो सकती है।
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कैसी होगी ‘प्रोजेक्ट कुशा’ की ताकत? -
- बहुस्तरीय इंटरसेप्टर मिसाइलें
- -इस सिस्टम में 150, 250 और 350 किलोमीटर तक की दूरी से आने वाली हवाई खतरों को मार गिराने में सक्षम इंटरसेप्टर मिसाइलें होंगी।
- -ये मिसाइलें ड्रोन, स्टील्थ फाइटर, क्रुज मिसाइल और बैलिस्टिक मिसाइल जैसे खतरों को हवा में ही निष्क्रिय कर देंगी।
- -इस प्रणाली को चरणबद्ध तरीके से विकसित किया जाएगा, जिसमें भविष्य में यह हाइपरसोनिक मिसाइलों को भी नष्ट करने में सक्षम हो सकती है।
- -इस समय डीआरडीओ प्रोजेक्ट कुशा का प्रोटोटाइप तैयार कर रहा है, जिसे बनने में लगभग 12 से 18 महीने लगेंगे।
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डीआरडीओ कर रहा है प्रोटोटाइप पर काम
- -इसके बाद भारतीय सेनाएं अलग-अलग इलाकों में इसका परीक्षण करेंगी।
- -सभी चरणों की सफलताएं मिलने के बाद इस प्रणाली को भारत की सीमाओं पर तैनात किया जाएगा।
- -इसकी पहली तैनाती में कम से कम 4 से 5 साल का वक्त लग सकता है।
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- एस-400 से आगे की सोच - फेज टू और फेज थ्री
- एस-500 जैसी क्षमताओं की ओर अग्रसर
- -कुशा के फेज 2 और फेज 3 संस्करण में यह प्रणाली हाइपरसोनिक और अंतर महाद्वीपीय मिसाइलों का
- मुकाबला करने में सक्षम होगी।
- -डीआरडीओ इस प्रणाली को एस-500 (एस-500) से भी अधिक उन्नत बनाने की योजना बना रहा है।
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रक्षा आत्मनिर्भरता की ओर भारत का कदम:-
स्वदेशी हथियारों और तकनीकों का विस्तार
-भारत सरकार अब अधिकारिता के तहत स्वदेशी रक्षा प्रणाली पर ज़ोर दे रही है।
-आकाश, बराक-8, शिल्का और एल-70 जैसी प्रणालियां पहले से ही देश की सुरक्षा में अहम भूमिका निभा रही हैं।
-इसके साथ ही भारत उन्नत मल्टीरोल फाइटर जेट्स पर भी काम कर रहा है, जिसे 15-20 वर्षों में ऑपरेशनल किया जाएगा।