सवाल: लैब और संसाधन तीन गुना फिर क्यों लगा है डीएनए सैंपलों का अंबार

मध्य प्रदेश में ऐसे 9 हजार डीएनए सैंपलों की पेंडेंसी थी जो अभी भी 6 हजार बनी हुई है। सैंपलों के परीक्षण में देरी का मामला दो साल पहले हाईकोर्ट भी पहुंचा था तब प्रदेश के मुख्य सचिव को नोटिस भी जारी किया गया था

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. प्रदेश में अब भी फॉरेंसिक लैब डीएनए सैंपलों के भार से दबी हुई हैं। तीन साल में डीएनए परीक्षण के लिए लैबों की संख्या एक से बढ़कर तीन हो चुकी है। वैज्ञानिक और उपकरणों की संख्या भी तीन गुना है लेकिन डीएनए सैंपलों की पेंडेंसी घटने का नाम नहीं ले रही है। इस वजह से रेप, अज्ञात शवों की पहचान जैसे अपराधों में कभी तो पुलिस जांच प्रभावित होती है तो कभी कोर्ट में सुनवाई अटकी रहती है। 

बीते साल प्रदेश में ऐसे 9 हजार डीएनए सैंपलों की पेंडेंसी थी जो अभी भी 6 हजार बनी हुई है। सैंपलों के परीक्षण में देरी का मामला दो साल पहले हाईकोर्ट भी पहुंचा था तब प्रदेश के मुख्य सचिव को नोटिस भी जारी किया गया था, लेकिन फॉरेंसिक लैबों से डीएनए सैंपलों का बोझ कम नहीं हो पाया है। हालांकि सैंपलों की टेस्टिंग और उनकी रिपोर्ट मिलने का समय कुछ घंटा है लेकिन अभी भी यह सामान्य से बहुत ज्यादा है। 

फॉरेंसिक साइंस सबसे कारगर 

आपराधिक वारदातों के बाद पुलिस इंवेस्टीगेशन और अपराधी को सजा दिलाने में फॉरेंसिक साइंस सबसे कारगर है। इसी के तहत डीएनए परीक्षण भी है। क्योंकि महिलाओं से दुष्कर्म, पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज शारीरिक शोषण के केस और अज्ञात शव की पहचान में डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट अहम होती है। मध्य प्रदेश में हर साल महिलाओं और बच्चियों से लगभग 35 सौ केस दर्ज होते हैं। इन सभी में डीएनए परीक्षण कराना जरूरी है। 

वहीं हत्या के बाद फेंके गए अज्ञात शव, उम्र के परीक्षण जैसे दूसरे क्रिमिनल केसों के दो से तीन हजार केसों में प्रदेश भर से डीएनए सैंपल परीक्षण के लिए भोपाल, इंदौर और सागर फॉरेंसिक लैब पहुंचते हैं। यानी तीनों डीएनए लैब में हर साल 9 से 10 हजार केस का लोड आता है। जबकि हर महीने तीनों डीएनए लैब की परीक्षण क्षमता 4 से 6 सौ सैंपल टेस्टिंग की है। यानी साल भर में डेढ़ से दो हजार सैंपलों की टेस्टिंग का अतिरिक्त भार होता है। यही सैंपलों की पेंडेंसी की वजह बनती है। साल 2022 में भोपाल और साल 2023 में इंदौर डीएनए लैब शुरू होने से पहले केवल सागर में ही यह परीक्षण होते थे। वहां पुराने सैंपलों को मिलाकर अभी पेंडेंसी 6 हजार के करीब है। 

लैब और क्षमता की कमी बन रही वजह 

प्रदेश में हर साल आपराधिक वारदातें बढ़ने से डीएनए सैंपलिंग की जरूरत भी बढ़ रही है। जबकि डीएनए टेस्ट के लिए सागर लैब के अलावा दो साल से भोपाल और पिछले साल से इंदौर लैब काम कर रही है। यानी प्रदेश में डीएनए टेस्टिंग के लिए केवल तीन लैब हैं। इनमें से प्रत्येक की अधिकतम क्षमता दो-दो सौ है। यदि सैंपलों की संख्या के आधार पर देखें तो डीएनए लैब, उसमें तैनात वैज्ञानिक और संसाधनों की संख्या कम है। 

इस वजह से हर महीने कुछ सैंपल लंबित रह जाते हैं और साल के आखिर तक यह आंकड़ा डेढ़ से दो हजार तक पहुंच जाता है। दो साल पहले के पेंडिंग सैंपलों की संख्या जोड़कर यह 6 हजार से ज्यादा हो जाती है। हांलाकि इस स्थिति को देखते हुए सरकार ग्वालियर और जबलपुर रीजनल लैब में भी डीएनए टेस्टिंग की सुविधा मुहैया कराने की तैयारी कर रही है। 

हाईकोर्ट मांग चुका सरकार से स्टेटस रिपोर्ट 

दुष्कर्म से संबंधित एक प्रकरण में डीएनए टेस्ट रिपार्ट को लेकर मामला पूर्व में जबलपुर हाईकोर्ट पहुंच चुका है। तब पैरवी करने वाले वकील सुयश ठाकुर ने डीएनए टेस्टिंग में देरी पर याचिका दायर की थी। जिस पर हाईकोर्ट में सरकार से सवाल करते हुए स्टेटस रिपोर्ट भी तलब की थी। याचिका में डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट में देरी होने की वजह से प्रकरण के लंबित रहने और इससे न्याय मिलने में आने वाली दिक्कतों को भी रखा गया था। 

पुलिस अधिकारियों का कहना  है टेस्ट रिपोर्ट समय पर मिलने से न केवल जांच की सही दिशा का पता चलता है बल्कि ठोस साक्ष्य के रूप में यह आरोपी को सजा दिलाने में भी कारगर होता है। रिपोर्ट में देरी होने से अकसर आरोपी इसका लाभ उठा सकते हैं, क्योंकि डीएनए ही ऐसे मामलों में सबसे अहम वैज्ञानिक साक्ष्य होता है। लेकिन डीएनए लैब में अब भी जांच रिपोर्ट तीन से पांच महीने में मिल पा रही है। हांलाकि रिपोर्ट प्राप्त होने के समय में तीन साल पहले के मुकाबले अवधि काफी कम हुई है। लेकिन अभी इसे और जल्दी करने की जरूरत है। 

ऐसे होती है डीएनए टेस्टिंग 

डीएनए यानी डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड  (DNA) टेस्टिंग आपराधिक प्रकरणों में सबसे जरूरी है। आपको बताते हैं डीएनए टेस्ट कैसे होता है। डीएनए टेस्ट के लिए  खून, थूक, लार, दांत, बाल, हड्डियों, नाखून या त्वचा जैसे शरीर के किसी अंग या हिस्से की जरूरत होती है। इसकी सैंपलिंग भी एक्सपर्ट खास तरीके से करते हैं जिससे उसमें किसी अन्य व्यक्ति के शरीर के अंग न मिल जाएं। इस सीलबंद सैंपल का प्रयोगशाला में उपकरणों के जरिए परीक्षण किया जाता है और पीड़ित और आरोपी व्यक्ति के  सैंपलों की मैचिंग कराई जाती है। 

इसी के आधार पर रिपोर्ट तैयार होती है। सामान्य मामलों में प्रदेश की  प्रयोगशालाओं में डीएनए सैंपल की रिपोर्ट आने में दो महीने या उससे कहीं ज्यादा समय लगता है। जबकि सरकार या पुलिस मुख्यालय द्वारा चिन्हित केसों में यह अवधि 20 से 30 दिन ही होती है। जबकि एक डीएनए सैंपल की टेस्टिंग अधिकतम 7 से 10 दिन में हो सकती है। अभी सागर, इंदौर और भोपाल डीएनए लैब की जो क्षमता है उसके आधार पर अधिकतम 6 सौ सैंपलों का परीक्षण ही किया जा सकता है।

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