रियल एस्टेट OMAXE ग्रुप का शातिर खेल, RERA से बचने के लिए ग्राहकों को कंपनी का शेयर होल्डर बताया

OMAXE ग्रुप का दावा है कि सुपर कॉरिडोर के सोनगीर, लिम्बोदागारी के प्रोजेक्ट में उसके पास 350 एकड़ जमीन है। लेकिन इस प्रोजेक्ट के लिए उसके पास टीएंडसीपी, विकास मंजूरी और रेरा कुछ नहीं है।

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Sanjay gupta
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रियल एस्टेट के बड़े ग्रुपों में से एक है OMAXE ग्रुप। इसके द्वारा सुपर कॉरिडोर प्रोजेक्ट जिसे वह ओमेक्स 4 नाम दे रहा है, इसमें वह अद्भुत ठगी का खेला कर रहा है? रेरा के नियमों के तहत बिना रेरा नंबर के प्लॉट बुकिंग अपराध है और इसके बिना कॉलोनी को अवैध माना जाता है। इसमें सीधे केस दर्ज करने के आदेश हैं। लेकिन इस नियम से बचने के लिए और बाजार से रुपए उठाने के लिए उसने ऐसा खेल किया कि अधिकारी भी भौचक्के में रह गए हैं। 

क्या कर रहा है ओमेक्स

OMAXE ग्रुप का दावा है कि सुपर कॉरिडोर के सोनगीर, लिम्बोदागारी के प्रोजेक्ट में उसके पास 350 एकड़ जमीन है। लेकिन इस प्रोजेक्ट के लिए उसके पास टीएंडसीपी, विकास मंजूरी और रेरा कुछ नहीं है। इसके बाद भी वह साल 2022 से यहां बुकिंग कर रहे हैं और अभी भी जारी है। खुद बुकिंग करने वाले एजेंट का कहना है कि एक साल तक टीएंडसीपी नहीं आएगी, प्रोजेक्ट में दो-तीन साल तो लगेंगे ही। 

अब बुकिंग में रेरा से बचने का कैसा खेल हो रहा

ओमेक्स द्वारा जो बुकिंग की जा रही है, वह एक नोटरी के कागज पर की जा रही है जिस पर 50 रुपए के रिवेन्यू टिकट लग रहे हैं। नोटरी दस्तावेज में 6 पन्ने भर है। इस सौदे में दो पक्षकार हैं, एक M/S ओमेक्स लिमिटेड कंपनी और दूसरा पक्ष है जो बुकिंग राशि दे रहा है, सैकंड पार्टी। इसमें प्लॉट लेने वालों के लिए कहा गया है कि वह कंपनी के इंदौर प्रोजेक्ट में योगदान देना चाहता है, और कंपनी इंदौर में आवासीय प्रोजेक्ट ला रही है। बुकिंग करने वाला अपनी मंशा के अनुसार इस प्रोजेक्ट में जुड़ना चाहता है और कंपनी में योगदान देना चाहता है। इसके लिए उसे कंपनी में उसके योगदान के अनुसार सैकंड पार्टी शेयर एरिया (एसपीएसए) दिया जाता है। जो इतने वर्गफीट ( जो भी सौदा हो 1000 वर्गफीट या 1500 वर्गफीट) का होगा। इसके लिए वह इतनी राशि का योगदान देगा जिसमें से 50 फीसदी राशि इस तरह से वह दे रहा है। ओमेक्स द्वारा जमीन अधिग्रहण कर सभी लाइसेंस लेकर व मंजूरियां लेकर आवासीय प्रोजेक्ट विकसित किया जाएगा और उसे उसका तय SPSA दिया जाएगा। लोगों को इसमें प्लाट धारक की जगह निवेशक का दर्ज दिया जा रहा है। 

यह कागज का टुकड़ा, शेयर नहीं है 

अब इस सौदे की कोई वैधानिकता नहीं है और ना ही कंपनी वास्तव में ग्राहक को कंपनी में कोई हिस्सेदारी दे रही है। हिस्सेदारी शेयर मिलने से होती है ना कि सामान्य नोटरी के कागज पर जिस पर 50-100 रुपए के रिवेन्यू टिकट भर लगे हैं। और दो 200 रुपए में बन जाता है। इसलिए केवल कंपनी से मिले शेयर की ही विधिक कीमत होती है नोटरी की नहीं।

वैसे भी प्रॉपर्टी सेक्टर में नोटरी अवैध

मप्र सरकार जनवरी 2010 में ही प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन एक्ट में बदलाव कर चुकी है। इसके अनुसार कोई भी सौदा जो प्रॉपर्टी को लेकर होता है वह बिना रजिस्ट्रेशन के शून्य है, इसकी कोई वैधानिकता नहीं है। रजिस्ट्रेशन एक्ट के अनुसार यदि किसी भूखंड़ का सौदा होता है और यह सौदा बिना कब्जे वाला है तो यह एक हजार रुपए के स्टाम्प होगा और इसमें भूखंड कीमत का 0.80 फीसदी रजिस्ट्रेशन शुल्क देय होगा। यदि कब्जा ले लिया गया है तो इस सौदे को रजिस्टर्ड कराने पर भूखंड की कीमत का 5 फीसदी स्टाम्प ड्यूटी देना होगी। तभी यह सौदा मान्य होगा।

ओमेक्स पर बनती है सीधे FIR 

वैसे तो रेरा की मंजूरी के बिना कोई भी सौदा मान्य ही नहीं है, कोई भी बुकिंग लेना अपराध है। जिला प्रशासन के नियमों के तहत बिना मंजूरी प्लाट बुकिंग को अवैध कॉलोनी माना जाता है और अवैध कॉलोनी के तहत काटने और विकसित करने वालों पर पुलिस केस होता है, जो ओमेक्स के कर्ताधर्ताओं पर सीधे तौर पर बनता है।

यदि ग्राहक को वैधानिकता चाहिए तो यह करना था

ग्राहक को यदि फिर भी अवैध बुकिंग करना है तो भी उसे अपनी सुरक्षा के लिए सौदा रजिस्टर्ड कराना चाहिए। क्योंकि वह सौदा कब्जा रहित है यानी अभी उसे जमीन नहीं मिल रही तो एक हजार के स्टाम्प पर करना चाहिए और पंजीयन दफ्तर में इसे 0.80 फीसदी ड्यूटी देकर रजिस्टर्ड कराना चाहिए। अब ओमेक्स इसे रजिस्टर्ड इसलिए नहीं करा रहा है क्योंकि ऐसा करने पर वह सीधे रेरा एक्ट के उल्लंघन में आ जाएगा, आन रिकॉर्ड आ जाएगा कि वह बिना रेरा के प्लाट बुकिंग कर रहा है और तब केस दर्ज होना सीधे बनता है। इसलिए इससे बचने के लिए वह यह रद्दी वाले कागज नोटरी के नाम पर लोगों को टिका रहा है।

लोगों के लिए क्या है नुकसान

ओमेक्स रियल एस्टेट की गुडगांव में दर्ज कंपनी है। कंपनी पहले ही शेयर बाजार में घिरा गई है औऱ् गलत काम के चलते उनके कर्ताधर्ताओं पर सेबी ने अभी प्रतिबंध लगाए हैं। किसी भी कारण से कंपनी किसी कारण से प्रोजेक्ट नहीं करती है तो लोगों के जमा राशि पूरी तरह से डूब जाएंगे क्योंकि यह गए हैं ओमेक्स ग्रुप के खाते में हैं। कंपनी यहां से निकल जाएगी और लोगों के हाथ में कुछ भी नहीं लगेगा। सबसे बड़ी समस्या यह है कि इन नोटरी के कागजों से वह कोर्ट में लड़ाई भी नहीं लड़ पाएंगे क्योंकि मान्य ही नहीं है। 

यहां पर हो रही है खुली धांधली

ओमेक्स ग्रुप द्वारा यह धांधली की जा रही है सुपर कॉरिडोर पर, टीसीएस चौराह के आगे। यहां पर वह प्रोजेक्ट ला रहा है ओमेक्स सुपर कॉरिडोर जिसे दूसरा नाम ओमेक्स 4 भी दिया गया है, क्योंकि ओमेक्स का इंदौर में यह चौथा प्रोजेक्ट है। यह प्रोजेक्ट लिम्बोदागारी, सोनगीर गांव में हैं, और यह दोनों ही गांव अहिल्या पथ में शामिल है।

कितनी बड़ी है धांधली

यह धांधली पूरी 250 करोड़ रुपए से ज्यादा की है। यहां पर 350 एकड़ जमीन पर ओमेक्स यह प्रोजेक्ट ला रहा है, लेकिन टीएंडसीपी तक पास नहीं है, विकास मंजूरी और रेरा तो बहुत दूर की बात है। यहां करीब तीन हजार प्लॉट आना है, वह भी कागज पर क्योंकि अभी तक प्लॉटिंग नक्शा भी नहीं है और इसलिए प्लॉट की लोकेशन और नंबर भी ग्राहक को नहीं दिए जाते हैं। यह हवा-हवाई तीन हजार प्लाट भी बिक चुके हैं, वह इस 6 पन्नों के एक एग्रीमेंट पर। शुरूआत में प्लाट की कीमत 17 लाख के करीब थी, जिसमें 50 फीसदी राशि 8.50 लाख रुपए ओमेक्स कंपनी के खाते में जमा कराए जाते हैं। यह बुकिंग दो साल से चल रही है और अब दाम बढ़ाकर एक प्लाट की कीमत 30 लाख रुपए की जा चुकी है और बुकिंग में 15 लाख रुपए लिए जा रहे हैं। कंपनी के लिए काम करने वाले एजेंट, मैनेजरों का दावा है कि सभी तीन हजार प्लाट बिक चुके हैं, कुछ ही बचे हैं और पुराने रिसेल वाले ही आपको मिलेंगे। 

किस तरह की है धांधली

ओमेक्स ग्रुप की यह धांधली दो साल पहले शुरू हो गई थी, जब उसके पास मात्र 50 से 100 एकड़  जमीन को लेकर ही किसानों से सौदे हुए थे। ओमेक्स के लिए बुकिंग करने वाले मैनेजर ने खुद द सूत्र के स्टिंग में बताया कि हमने जमीन के सौदे किए, प्लॉट काटे और उनकी बुकिंग से राशि जमा की, फिर राशि आने के बाद पास की जमीन के सौदे किए, इस तरह यह सौदे दो साल से चल रहे है और अब 350 एकड़ जमीन दो साल में हम किसानों से ले चुके हैं और अब बाउंड्रीवॉल बनवाने का काम करेंगे। यानी जमीन भी जब पूरी तरह से नहीं थी, तभी से धड़ल्ले से यह दो साल से बुकिंग चल रही है और अभी जमीन पर कुछ भी नहीं है और इसके बाद भी ग्रुप अधिकारियों की नाक के नीचे 250 करोड़ रुपए जमा कर चुका है।

ऐसी-ऐसी ठगी, अहिल्या पथ के नाम पर भी

ओमेक्स ने अपने माल को बेचने के लिए अलग-अलग ठगी के तरीके अपनाए हुए हैं। यहां हाल ही में पास हुए अहिल्या पथ को दिखाया जा रहा है और बताया जा रहा है कि यह कॉलोनी के पास से ही गुजर रही है और जैसे ही इसका काम शुरू होगा तो अभी दाम 3100 रुपए प्रति वर्गफीट है वह चार से पांच हजार रुपए पहुंच जाएगा, दो साल में ही दो हजार प्रतिवर्गफीट का फायदा हो जाएगा।

दुबई के पाम जुमेराह के नाम पर भी ठगी

ओमेक्स ग्रुप ने एक और ब्राउशर बनाया है जिसमें बताया गया है कि यहां 50 एकड़ में दुबई के पाम जुमेरहा जैसा प्रोजेक्ट आएगा, जिसमें पानी के अंदर आवासीय टाउनशिप अंदर रहेगी, जो लग्जरी होगी। इसके दाम अभी बुकिंग में ही 5500 रुपए प्रति वर्गफीट है। इसमें अच्छी लोकेशन देने के दस फीसदी और राशि अतिरिक्त ली जाएगी। इसमें तीन साल कम से कम समय लगेगा। यह बुकिंग भी दो साल पहले से चल रही है। 

पूरी तरह से अवैध कॉलोनी कट रही है

किसी भी कॉलोनी में बुकिंग रेरा मंजूरी के बाद ही ली जा सकती है। इसके पहले बिल्डर द्वारा जमीन ली जाती है या फिर सामने वाले के साथ रेशो डील की जाती है। इसके बाद रजिस्ट्री या सौदा होने के बाद इसकी टीएंडसीपी पास कराई जाती है और फिर विकास मंजूरी ली जाती है। इसके बाद ही रेरा को फाइल जाती है। टीएडंसीपी के समय ही कॉलोनी की प्लाटिंग का नक्शा सामने आता है, अभी तो ओमेक्स के पास नक्शा तक नहीं है, केवल कागज पर ही बुकिंग हो रही है और सामने वाले ग्राहक को प्लॉट नंबर तक नहीं मिलता है और ना ही लोकेशन बताई जाती है। टीएंडसीपी आने में अभी साल भर का समय लगना खुद ओमेक्स मैनेजर द्वारा बताया जा रहा है, इसके बाद विकास मंजूरी ओर रेरा आएगा। रजिस्ट्री दो साल से पहले प्लॉट की नहीं हो सकती है और इसके बाद भी दो साल पहले से और दो साल बाद तक यह बुकिंग अवैध कॉलोनी होने के बाद भी धड़ल्ले से चल रही है और इसमें सेल, रिसेल का जमकर खेल चल रहा है।

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