बागेश्वर धाम में जमीन के टुकड़े का किराया 1.20 लाख रुपए तक, ठेला वालों को देना पड़ता है 10 हजार किराया

द सूत्र ने महाराष्ट्र के अमरावती जिले से आए एक दुकानदार का स्टिंग किया। दुकानदार ने बताया कि उसने एक लाख रुपए महीने पर जमीन का एक टुकड़ा लिया है। उस पर अस्थाई दुकान बनाई है।

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Arvind Sharma
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छतरपुर जिले का गढ़ा सरकारी नक्शे में आज भी गांव है, पर यहां के पत्थर भी हीरे के मोल हैं। दो साल पहले बाबा बागेश्वर यानी पंडित धीरेंद्र शास्त्री की ख्याति बढ़ी तो यहां के बाजार की रंगत ही बदल गई। बागेश्वर धाम में इन दिनों पूजा-पाठ, प्रसाद और खान-पान सहित करीब हजार दुकानें सजी हुई हैं।  

हैरानी की बात यह है कि यहां जमीन के छोटे से टुकड़े का किराया 1.20 लाख रुपए तक है। गढ़ा गांव में पार्किंग से भी अर्थतंत्र जुड़ा हुआ है। यहां हर मंगलवार और शनिवार को 20 हजार से अधिक वाहनों से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं। चार पहिया वाहनों से पार्किंग शुल्क के रूप में प्रति वाहन 50 रुपए वसूले जाते है। ठेला वालों को सरकारी सड़क पर कारोबार करने के लिए 10 हजार रुपए तक किराया देना पड़ता है। 

20 हजार से 1.20 लाख तक किराया 

दरअसल, गढ़ा में 80 फीसद से अधिक जमीनें धीरेंद्र शास्त्री एवं परिवार एवं अन्य सहयोगियों की हैं। हर महीने इन जमीनों से किराए के रूप में बड़ी रकम मिल रही है। गढ़ा में आज नेपाल से लेकर देशभर के अलग अलग हिस्सों के लोग आकर अपनी दुकानें खोलकर व्यापार कर रहे हैं। दुकान के लिए यहां जमीन का एक छोटा से हिस्से का मासिक किराया 20 हजार रुपए से लेकर 1.20 लाख रुपए तक है। 

धीरेंद्र शास्त्री के परिवार वाले कर रहे वसूली

द सूत्र ने महाराष्ट्र के अमरावती जिले से आए एक दुकानदार का स्टिंग किया। दुकानदार ने बताया कि उसने एक लाख रुपए महीने पर जमीन का एक टुकड़ा लिया है। उस पर अस्थाई दुकान बनाई है। यह दुकान बागेश्‍वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री के परिवार के महेश महाराज की जमीन पर बनी है। दुकानदार ने दावा किया कि मंदिर के आसपास की जमीन का किराया 1.20 लाख रुपए ट्रस्ट वसूलता है। 

उत्तराखंड में जमीन बेचकर गढ़ा में खोला होम स्टे 

उत्तराखंड से गढ़ा गांव में आई महिला दुकानदार ने कहा कि उसने मंदिर से दूरी पर एक जमीन का टुकड़ा 20  हजार रुपए में किराए पर लिया है। वह यहां होम स्टे, ढाबा चलाती हैं। एक गद्दे पर वह सोने का किराया 100 रुपए, नहाने-धोने का 60 रुपए प्रति व्यक्ति लेती है। वहीं 70 रुपए में एक व्यक्ति को भोजन कराती हैं। महिला का कहना है कि पिछले दो महीने से धाम पर भीड़ कम हुई है, इस वजह से धंधा अभी थोड़ा मंदा है। महिला का दावा है कि उसे सन्यासी बाबा का सपना आया। वह बोले— गढ़ा आकर सेवा करो। उसके बाद वह उत्तराखंड में अपना सबकुछ बेचकर यहां चली आई।

कानपुर से आकर लिया जमीन का टुकड़ा 

मंदिर से एक हजार मीटर दूरी जमीन का टुकड़ा किराए पर लेकर ढाबा-नाश्ता-पूजन सामग्री की दुकान कानपुर की एक महिला चला रही है। वह हर महीने 24,700 रुपए किराया जमीन मालिक को देती हैं। वहीं, पहाड़ी के नीचे बसे गढ़ा गांव की गलियों में हाथठेले वाले सड़क पर खड़े होकर पूजन-सामग्री या अन्य सामान बेचते हैं तो सरकारी सड़क पर व्यापार करने को लेकर हर महीने उन्हें 10 हजार रुपए तक का किराया देना पड़ता है।

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