BHOPAL. घर अथवा भूखंड खरीदने वालों ( होमबायर्स ) को ठगने वाली बिल्डर कंपनी के इशारे पर ही ईओडब्ल्यू में रेरा चेयरमैन एपी श्रीवास्तव की शिकायत की गई थी। वैसे तो यह शिकायत एक्टिविस्ट प्रभाष जेटली के नाम से की गई है, लेकिन उसमें जिन तथ्यों का उल्लेख है, वे सीधे-सीधे एजी-8 वेंचर्स की ओर इशारा कर रहे हैं। वहीं रेरा ने चेयरमैन श्रीवास्तव पर लगाए गए आरोपों के जवाब में हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और रेरा एक्ट के प्रावधानों का जिक्र करते हुए ईओडब्ल्यू के डीजी को चिट्ठी भेज दी है। दरअसल, रेरा चेयरमैन की घेराबंदी की जा रही है। उन पर आरोप लगाकर ईओडब्ल्यू में दर्ज प्राथमिकी यानी पीई को देखकर माना जा रहा है कि बिल्डर नेक्सस अब राजनीतिक गठजोड़ के सहारे हथकंडे अपना रहा है। आने वाले दिनों में इस खींचतान के बढ़ने के साथ ही बिल्डरों के हिमायती कुछ अफसरों की दास्तां बाहर आ सकती है।
बीते तीन-चार साल में रेरा यानी भू संपदा विनियामक प्राधिकरण होमबायर्स को धोखाधड़ी से बचाने में मजबूत हुआ है। हाउसिंग प्रोजेक्ट में जिन शर्तों का दावा किया गया है, रेरा उन्हें भी होमबायर्स को देना सुनिश्चित कराता है। यानी बिल्डर समय पर मकान बनाकर नहीं देते या तय से ज्यादा कीमत वसूलते हैं तो रेरा उनके पक्ष में खड़ा होता है। भोपाल में एजी-8 वेंचर्स के गड़बड़झाले और होमबायर्स से बुकिंग में लाखों रुपए लेकर मकान नहीं देने के सैंकड़ों मामले चल रहे हैं। रेरा ने इन शिकायतों पर बीते तीन सालों में बिल्डर कंपनी और उसके मालिक हेमंत सोनी, राजीव सोनी और अन्य भागीदारों पर शिकंजा कसा है। यही वजह है कि रेरा की मजबूत कार्रवाई के चलते बिल्डर होमबायर्स से ली गई बुकिंग हड़पने में कामयाब नहीं हुए। अब करोड़ों रुपए की यही बुकिंग हेमंत और उसकी कंपनी एजी-8 वेंचर्स के जी का जंजाल बन गई है। रेरा रजिस्टर प्रोजेक्ट के बैंक खातों से हेमंत करोड़ों रुपए उड़ा चुका है और इसी की वसूली और होमबायर्स को लौटाने का दबाव लगातार उसकी परेशानी बढ़ा रहा है।
आरोप 1: प्रोजेक्ट अटकाने की शिकायत हवा हवाई
ईओडब्ल्यू ने एक्टविस्ट प्रभाष जेटली की शिकायत पर जिस तेजी के साथ रेरा चेयरमैन के खिलाफ तथ्यों के बिना प्राथमिकी दर्ज की है, वह भी सवाल खड़े करता है। शिकायत में श्रीवास्तव पर हाउसिंग प्रोजेक्ट अटकाने के आरोप हैं, लेकिन बीते 4 साल की रिपोर्ट की पड़ताल इस आरोप को सिरे से खारिज करने वाली है। रेरा की स्थापना के बाद 8 साल में सबसे ज्यादा हाउसिंग प्रोजेक्ट पिछले तीन साल में स्वीकृत हुए हैं। रही बात प्रोजेक्ट अटकाने की तो साल 2021-22 तक रेरा पहुंचने वाले हाउसिंग प्रोजेक्ट को स्वीकृति मिलने में 6 से 11 महीने तक का समय लगता था, जबकि अब यह अवधि घटकर औसत 3 महीने ही रह गई है।
आरोप 2: नियुक्त के लिए रेरा अधिकार संपन्न
दूसरा आरोप रेरा में अधिकार के बिना न्याय निर्णायक अधिकारियों की नियुक्ति करने का है। इस पर रेरा ने एक्ट का हवाला दिया है। रेरा अधिनियम ऐसे पद पर स्वयं नियुक्ति करने करने का अधिकार देता है। वहीं जिस नियुक्ति में पक्षपात का आरोप लगाया जा रहा है, उस पर आवेदक की काउंसलिंग से लेकर सभी औपचारिकताएं सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जजों के पैनल ने पूरी की हैं। वहीं ईओडब्लू में की गई जिस शिकायत में रेरा चेयरमैन द्वारा एजी-8 वेंचर्स के जरिए भूखंड खरीदने के आरोप भी निराधार हैं। चेयरमैन एपी श्रीवास्तव की ओर से ईओडब्लू को भेजे गए पत्र में इसके बारे में भी बताया गया है। श्रीवास्तव ने यह भूखंड सरकार से स्वीकृति के बाद बैंक से कर्जा लेकर खरीदा था। भूखंड रजिस्टर्ड हाउसिंग सोसाइटी से लिया था। एजी-8 वेंचर या बिल्डर हेमंत का इससे कोई संबंध नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद रची साजिश!
अब इस साजिश की वजह को जान लीजिए। बिल्डर कंपनी तीन साल में रेरा की सख्ती से बचने हर प्रयास करती रही। उसने खुद को दिवालिया घोषित करने की साजिश रची, लेकिन रेरा ने इसमें सफल नहीं होने दिया। नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ने बिल्डर की साजिश की कलई खोल दी थी। इसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में भी भागदौड़ करता रहा, लेकिन रेरा और होमबायर्स की सजगता के चलते हर जगह उसे हार मिली। यानी जून और जुलाई के बाद होमबायर्स को बुकिंग में जमा रुपया लौटाने का दबाव बढ़ने लगा तो हेमंत ने फिर साजिश रचना शुरू कर दिया था।
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