DGP सुधीर सक्सेना की विदाई पर नहीं होगी सलामी परेड! चर्चा में नया आदेश

मध्य प्रदेश के पुलिस महानिदेशक सुधीर सक्सेना के विदाई समारोह को लेकर बड़ा अपडेट सामने आया है। ऐसी खबरें आ रही हैं कि 30 नवंबर यानी आज आयोजित इस समारोह में सलामी परेड नहीं होगी।

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Raj Singh
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मध्य प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) सुधीर सक्सेना के विदाई समारोह को लेकर बड़ा अपडेट आया है। अब बताया जा रहा है कि 30 नवंबर यानी आज आयोजित इस समारोह में सलामी परेड नहीं होगी। जानकारी के अनुसार, इस मामले में स्पेशल डीजी शैलेश सिंह की ओर से एक पत्र जारी किया गया है। इसमें उन्होंने साल 2007 के आदेश का जिक्र किया है। स्पेशल डीजी शैलेश ने कहा है कि मुख्यमंत्री, मंत्री और अन्य पुलिस अफसरों को सलामी परेड देने की परंपरा खत्म कर दी गई है। अब सिर्फ राज्यपाल को ही सलामी दी जा सकेगी। खबरों की मानें तो यह पत्र पुलिस मुख्यालय (पीएचक्यू) समेत सभी जोन और रेंज के आईजी-डीआईजी को भेजा गया है।  DGP सुधीर सक्सेना आज यानी 30 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं।

'इसे समाप्त करना जरूरी'

स्पेशल डीजी के लेटर के मुताबिक, सलामी परेड जैसे कार्यक्रम औपनिवेशिक शासन (Colonialism Rules) की प्रथा का प्रतीक हैं। ऐसे आयोजन शासन के नियमों का उल्लंघन करने के साथ-साथ अनुशासनहीनता को बढ़ावा देते हैं। यह प्रथा अधीनस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। साथ ही उन्होंने अपने लेटर में कहा है कि सलामी से अंग्रेजों की याद आती है, इसलिए इसे समाप्त करना जरुरी है।  

परेड हुई तो कमांडर बनेंगी डीसीपी बेटी सोनाक्षी

आपको बता दें कि डीजीपी सुधीर सक्सेना का कार्यकाल लगभग 32 महीने का रहा है। उनकी विदाई पर अगर सलामी परेड का आयोजन होता है, तो इसका नेतृत्व उनकी बेटी और डीसीपी सोनाक्षी सक्सेना करेंगी। हालांकि, इस संबध में स्पेशल डीजी शैलेष सिंह का जो लेटर सामने आया है उसने कई सवालों को जन्म दे दिया है।  

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क्या सलामी परेड होगी या नहीं?

स्पेशल डीजी का पत्र सामने आने के बाद यह तय नहीं हो सका है कि विदाई समारोह में सलामी परेड होगी या नहीं। यह मामला अब केवल परंपरा और नियमों के पालन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक चर्चा का विषय बन गया है। हालांकि, अब देखना होगा कि सुधीर सक्सेना के विदाई समारोह के दौरान सलामी परेड का आयोजन होता है की नहीं। 

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इसके क्या फायदे हो सकते हैं?

  • जनता के साथ जुड़ाव बढ़ाना: नेताओं और अधिकारियों को सेवक की भूमिका में पेश करना, जिससे जनता के साथ उनका जुड़ाव और विश्वास मजबूत हो सकता है।
  • औपचारिकता में समय की बचत: सलामी जैसी औपचारिकताएं कभी-कभी समय बर्बाद करती हैं। इसे खत्म करने से अधिकारी और नेता अपने कार्यों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।
  • प्रेरणादायक संदेश: यह कदम यह संदेश देता है कि नेता और अधिकारी भी जनता के लिए काम करने वाले होते हैं, और उन्हें विशेष सम्मान की आवश्यकता नहीं है।

आलोचना होगी, तो क्यों?

  • परंपरा का अंत:  कुछ लोग इसे भारतीय प्रशासनिक और पुलिस प्रणाली की पुरानी परंपराओं को तोड़ने के रूप में देख सकते हैं, जिससे असंतोष पैदा हो सकता है।
  • अनुशासन पर प्रभाव:  सलामी को अनुशासन का प्रतीक माना जाता है। इसे हटाने से कहीं अधिकारी या कर्मचारी अपनी जिम्मेदारियों में ढील न दें, यह एक चिंता का विषय हो सकता है।
  • समानता की सीमाएं: केवल सलामी न देने से समानता नहीं आएगी; प्रशासन में अन्य सुधारों की भी आवश्यकता है, जैसे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना।

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अन्य राज्यों में उदाहरण

गौरतलब है कि कुछ अन्य राज्यों में भी ऐसी पहल की गई है, जहां औपचारिकताओं को कम करने पर जोर दिया गया है। जैसे- 

केरल

फैसला: अधिकारियों और मंत्रियों को “सर” और “मैडम” जैसे संबोधन की आवश्यकता खत्म कर दी गई।
उद्देश्य: सरकारी दफ्तरों में लोकतांत्रिक और समान माहौल बनाना, जहां अधिकारी और जनता के बीच अनावश्यक दूरी कम हो।
प्रभाव: यह पहल कर्मचारियों और जनता के बीच संबंध सुधारने में सफल मानी गई। हालांकि, कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने इसे अनुशासन में कमी के रूप में भी देखा।

 दिल्ली

फैसला: मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों के लिए स्वागत, फूल माला, और औपचारिक बैठकों को सीमित कर दिया गया।
उद्देश्य: नेताओं और जनता के बीच एक साधारण और सेवा-प्रधान दृष्टिकोण विकसित करना।
प्रभाव: जनता ने इसे सकारात्मक रूप से लिया, लेकिन सरकारी अधिकारियों ने इसे कार्य संस्कृति में हस्तक्षेप के रूप में देखा।

पंजाब

फैसला: मंत्रियों के स्वागत के लिए लगने वाले बड़े-बड़े होर्डिंग और बैनर को प्रतिबंधित किया गया।
उद्देश्य: सार्वजनिक धन का दुरुपयोग रोकना और दिखावे को खत्म करना।
प्रभाव: जनता ने इसे प्रशंसा की नजर से देखा, लेकिन स्थानीय नेताओं ने इसे प्रचार में बाधा माना।

विदेशों में कैसी व्यवस्था?

बता दें कि विदेशी देशों में जैसे नॉर्वे, स्वीडन, और डेनमार्क में नेताओं और अधिकारियों के लिए कोई विशेष सलामी या सम्मान की परंपरा नहीं है। नेता सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते हैं और आम जनता की तरह सामान्य जीवन जीने की कोशिश करते हैं। 

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