MP में प्रमोशन नीति पर फिर बवाल, सपाक्स ने हाईकोर्ट जाने की दी चेतावनी, रखीं ये मांगें

भोपाल में सपाक्स अधिकारी-कर्मचारी संस्था के राज्य स्तरीय अधिवेशन में पदोन्नति नियमों की विसंगतियों को लेकर नाराज़गी जताई गई। संस्था ने कहा कि अधिकारियों ने 2019 जैसी गलती दोहराई है।

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Rohit Sahu
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भोपाल में रविवार को नार्मदीय भवन में आयोजित राज्य स्तरीय अधिवेशन ने माहौल गरमा दिया। अधिकारी कर्मचारी संस्था सपाक्स ने प्रमोशन पॉलसी पर खुलकर मोर्चा खोलते हुए कोर्ट जाने का एलान कर दिया। नए पदोन्नति नियमों को लेकर अधिवेशन में कई फैसले लिए गए और सख्त तेवर अपनाए गए। संस्था ने कहा कि 2019 जैसी गलती अफसर फिर दोहरा रहे हैं, अब चुप नहीं बैठेंगे।

सपाक्स ने गिनाईं खामियों की लंबी लिस्ट

  • पहली आपत्ति- पदोन्नति 2025 से दी जा रही, जबकि यह 2016 से लंबित थी।
  • दूसरी- हाईकोर्ट द्वारा पदावनत कर्मचारियों को दोबारा पदोन्नति का तोहफा क्यों?
  • तीसरी- सुप्रीम कोर्ट की यथास्थिति के आदेश के बावजूद प्रमोशन कैसे हो रहे?
  • चौथी- क्रीमीलेयर (Creamy Layer) का कोई जिक्र नहीं, जो जरूरी प्रावधान था।
  • पांचवीं- बैकलॉग खाली पदों को भरने की कोई समय सीमा नहीं तय की गई।
  • छठवीं- अनारक्षित पदों पर आरक्षण लाभ ले चुके कर्मचारी कैसे फिर पदोन्नत हो सकते हैं?

सपाक्स की ये हैं प्रमुख मांग

अधिवेशन के दौरान सपाक्स ने सिर्फ आपत्ति ही नहीं जताई, बल्कि ठोस मांगों का पुलिंदा भी पेश किया। सामान्य, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग के अधिकारों की रक्षा की मांग इसमें प्रमुख है। सपाक्स की मांग ही कि आरक्षण का आधार जातिगत नहीं, आर्थिक हो। इसके अलावा SC-ST वर्ग में भी क्रिमीलेयर लागू किया जाए। अनारक्षित वर्ग के 2.5 लाख पदों पर से प्रतिबंध हटाया जाए। एससीएसटी एक्ट में संशोधन किया जाए और जांच से पहले केस न दर्ज हो। संविदा और आउटसोर्सिंग को पूरी तरह खत्म कर नियमित नियुक्तियां की जाए।

विधानसभा सचिवालय का मामला गरमाया

मध्यप्रदेश विधानसभा सचिवालय के कर्मचारी भी पीछे नहीं हैं। प्रभार वाले दिन से वरिष्ठता की मांग को लेकर अब वे भी रणनीति बना रहे हैं। रामनारायण आचार्य ने बताया कि सोमवार को बैठक बुलाई गई है। संगठन इस विषय पर अगली कार्रवाई की रूपरेखा तैयार करेगा।
अब यह लड़ाई सड़क से अदालत तक पहुंचने वाली दिख रही है।

नेताओं से मिलेंगे, कोर्ट भी जाएंगे, सपाक्स की चेतावनी

सपाक्स ने साफ किया कि पहले सांसद-विधायकों से मुलाकात करेंगे। उन्हें विसंगतियों की जानकारी देंगे और फिर न्यायालय का रास्ता अपनाएंगे। संस्था का कहना है कि अब चुप रहने का समय नहीं है। जो नियम न्याय के खिलाफ हों, उनका विरोध जरूरी है।

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