स्कीम 171 होगी लैप्स, IDA ने दिया एफिडेविट, लेकिन कलेक्टर और सहकारिता पर डाली भूधारकों की पहचान की जिम्मेदारी

आईडीए ने हाईकोर्ट केस में साफ बोल दिया है कि स्कीम 171 को हम लैप्स करने का फैसला ले चुके हैं। शासन के ग्राम व निवेश एक्ट 2020 में हुए संशोधन के तहत जहां 10 फीसदी से कम विकास हुआ है।

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Sanjay gupta
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INDORE. इंदौर विकास प्राधिकरण IDA जिसे पीड़ित प्लाट धारक शहर का सबसे बड़ा भूमाफिया की संज्ञा देते हैं, कि सबसे विवादित स्कीम 171 लैप्स होगी। यह एफिडेविट खुद आईडीए ने ही हाईकोर्ट में चल रहे केस में दे दिया है। लेकिन इस मामले में फिर आईडीए ने शासन के नियमें के परे जाकर पेंच अड़ाने में कसर नहीं रखी है और कलेक्टर व सहकारिता विभाग के ऊपर गगरी फोड़ी है।

सबसे पहले अच्छी बात, संभागायुक्त, कलेक्टर ने की पहल

इसमें सबसे पहले अच्छी बात यह है कि इसे लेकर संभागायुक्त दीपक सिंह और कलेक्टर आशीष सिंह आगे बढ़े हैं। संभागायुक्त की अध्यक्षता में हुई बोर्ड बैठक में इस पर चर्चा भी हुई और तय हुआ कि आगे बढ़ना है। वहीं कलेक्टर ने मामला टीएल बैठक में लेकर डे टू डे मॉनीटरिंग में ले लिया है। कलेक्टर सिंह ने बताया कि इसमें कौन से रकबे हैं और किन संस्थाओं के नाम है यह पता करना होगा और इसके लिए अधिकारियों को निर्देश दे दिए हैं। इसमें शासन के नियमानुसार आगे बढ़ रहे हैं।

 sanjay gupataआईडीए ने हाईकोर्ट में यह एफिडेविट दिया

आईडीए ने हाईकोर्ट केस में साफ बोल दिया है कि स्कीम 171 को हम लैप्स करने का फैसला ले चुके हैं। शासन के ग्राम व निवेश एक्ट 2020 में हुए संशोधन के तहत जहां 10 फीसदी से कम विकास हुआ है। वहां विकास खर्च लेकर स्कीम को लैप्स किया जाना है और इस संबंध में हम फैसला ले चुके हैं। लेकिन इसके लिए भू स्वामियों की पहचान करना है और हमने कलेक्टर व सहकारिता विभाग को कई बार पत्र व रिमाइंडर लिखे हैं। यह पहचान हो जाने के बाद इनसे विकास की राशि लेना है जो एक बड़ा काम है, यह होने पर स्कीम को लैप्स कर दिया जाएगा। 

क्या है शासन का नियम

मप्र शासन ने सितंबर 2020 में ही निमय साफ कर दिए थे कि 10 फीसदी से कम विकास वाली स्कीम को लैप्स किया जाना है और इस विकास काम में जो आईडीए ने खर्च किया है, वह राशि प्रारूप जारी कर संबंधित सोसायटी की सूचना जारी करेगी। इसमें दावे-आपत्ति आएगी। फिर दो माह में इसका निराकरण कर राशि भरवाई जाएगी और स्कीम को लैप्स किया जाएगा। 

इसे आईडीए कब से उलझा रहा है

आईडीए की यह स्कीम पूर्व में 132 नाम से थी जो साल 2012 में हाईकोर्ट से खारिज हो गई तो फिर यहां 171 नाम से स्कीम लागू कर दी गई। यहां जमीन अधिग्रहण के पूर्व कानून के अनुसार निजी 120 हेक्टेयर जमीन के लिए 1051 करोड़ के मुआवजा का हिसाब बना (कुल जमीन 151 हेक्टेयर है जिसमें 120 निजी व 31 हेक्टेयर सरकारी है) लेकिन आईडीए ने इसके चलते स्कीम में जमीन ही नहीं ली। इसमें 13 सहकारी संस्थाएं के दो हजार से ज्यादा 30 साल से अधिक समय से उलझे हुए हैं। जिन्हें ना मुआवजा मिला, ना निगम से मकान बनाने की मंजूरी और ना ही आईडीए से एनओसी। 

आईडीए ने सरकार से अभिमत मांगा

तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने यहां सभी को आश्वस्त किया था कि प्लाट देंगे। भू अभियान के बाद कब्जे सौंपे गए। लेकिन इसके बाद आईडीए ने स्कीम को मुक्त नहीं किया। पहले तत्कालीन चेयरमैन जयपाल सिंह चावड़ा के समय अप्रैल 2023 में शासन के नोटिफिकेशन के विपरीत जाकर प्रस्ताव बनाया कि निजी भू स्वामी को एनओसी देंगे और हम स्कीम लैप्स नहीं करेंगे। जबकि निजी को एनओसी देने का कोई प्रावधान ही नहीं है। फिर आईडीए ने नया प्रस्ताव पास किया कि शासन से अभिमत लेंगे। यह अभिमत चुनावी आचार संहिता लगने के एक दिन पहले अक्टूबर 2023 में आया और इसमें कहा गया कि स्कीम की विकास राशि पर ब्याज लेने का कोई प्रावधान नहीं है। भूस्वामियों की पहचान आईडीए अपने स्तर पर करके नियमानुसार बोर्ड में प्रस्ताव पास करे। 

आईडीए एफिडेविट

मार्च 2024 में कलेक्टर, सहकारिता को पत्र

वही इस मामले में जनवरी में बैठक कर नया प्रस्ताव पास किया और फिर कलेक्टर और सहकारिता विभाग को पत्र लिख दिया और इसमें कहा गया कि शासन से मिले निर्देशानुसार भू स्वामियों की पहचान जरूरी है। इसके लिए जानना होगा कि भूस्वामियों के हक में परिवर्तन हुआ कि नहीं। इसके बाद ही शासन के नियमानुसार स्कीम को लैप्स करने की कार्रवाई की जा सकेगी। इसके लिए 6 मार्च 2024 को बोर्ड ने संकल्प पास किया है कि 24 जनवरी 2024 के पास प्रस्ताव के तहत भू स्वामियों की जानकारी जिला प्रशासन व सहकारिता विभाग से ली जाए और भूस्वामियों की सूची प्राप्त होने के बाद तय नीति अनुसार प्रकरण को बोर्ड में पेश किया जाए। इन भूस्वामियों से राशि जमा कराई जाना है। इसके लिए भू-धारकों की जानकारी उपलब्द कराने के लिए संबंधित के निर्देश देने का कष्ट करें। 

इन सभी संस्थाओं के प्लाटधारक हो रहे परेशान

देवी अहिल्या श्रमिक कामगार सहकारी संस्था, न्याय विभाग कर्मचारी, इंदौर विकास गृह निर्माण,
मजदूर पंचायत, लक्ष्मण, सूर्या, मारूति, सनी, रजत, त्रिशाला, संजना, श्रीकृपा और अप्सरा  गृह निर्माण संस्था। 

भूमाफियाओं के जाल में फंसी है कई जमीन

यह जमीन कई भू माफियाओं के जालं में फंसी है जिसमें सबसे बड़ा नाम दीपक मद्दा का है। उसने यहां पर जमीन हनी-टनी यानी केशव नाचानी और ओमप्रकाश धनवानी को बेची, साथ की एक बड़ा रखबा इंदौर के मॉल व होचल संचालक को बेच दी। इसमें ईडी में भी केस दर्ज हो गया और कई जमीन विवादित हो गई है। कई प्लाटधारकों जमीन इन सौदों में फंस गई है। यहां पर मद्दा के साथ ही बब्बू-छब्बू जैसे भूमाफिया भी शामिल है। जब भी स्कीम मुक्त करने की बात आती है तो यह बोलकर आईडीए रूक जाता है कि इससे भूमाफियाओं को फायदा होगा, उनके लोगों के पास कई प्ल़ॉट मौजूद है। ऐसे में उन्हें करोडों का फायदा होगा। लेकिन वहीं 30 साल से पीडित प्लाटधारक अपना हक मांग रहे हैं।

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