सेकंड हैंड कार का भी देना होगा पूरा बीमा, उपभोक्ता आयोग का फैसला

भोपाल उपभोक्ता आयोग ने बीमा कंपनी के तर्क को नकारते हुए, सेकंड हैंड वाहन के बावजूद पूरी बीमा राशि का भुगतान करने आदेश दिया। कंपनी को मानसिक क्षतिपूर्ति भी देने का निर्देश। इससे पूर्व कंपनी ने वाहन को सेकंड हैण्ड बताते हुए कम बीमा राशि दे रही थी।

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Sanjay Dhiman
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Photograph: (the sootr)

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MP News: भोपाल के जिला उपभोक्ता आयोग ने बीमा कंपनी को फटकार लगाते हुए एक अहम फैसला सुनाया है। बीमा कंपनी को एक उपभोक्ता के पक्ष में पूरी बीमित राशि अदा करने का आदेश दिया गया है। यह मामला 2018 में खरीदी गई सेकंड हैंड कार से जुड़ा है।

रमेश कुमार ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी से 5 लाख 63 हजार रुपये का बीमा कराया था। बीमा अवधि 26 जनवरी 2018 से 25 जनवरी 2019 तक थी। 16 जनवरी 2019 को दुर्घटना में कार पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई। रमेश कुमार ने बीमा कंपनी से पूरी राशि का मुआवजा मांगा था। हालांकि, बीमा कंपनी ने वाहन सेकंड हैंड होने का हवाला देकर मुआवजा कम कर दिया।

आयोग ने खारिज किया बीमा कंपनी का तर्क

बीमा कंपनी ने अपने तर्क में कहा कि चूंकि वाहन सेकंड हैंड था, इसलिए उपभोक्ता को केवल आधी बीमा राशि का भुगतान किया जाएगा। हालांकि, उपभोक्ता आयोग ने इस तर्क को खारिज कर दिया।

आयोग ने कहा कि यह बात मायने नहीं रखती कि वाहन सेकंड हैंड था, क्योंकि बीमित वाहन था और दुर्घटना बीमा अवधि के दौरान हुई थी। आयोग ने इस बात पर भी जोर दिया कि बीमा कंपनी को उपभोक्ता को वह पूरी राशि अदा करनी होगी, जिसका वादा किया गया था। इसके साथ ही, आयोग ने बीमा कंपनी को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 15 हजार रुपये देने का आदेश भी दिया। 

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कंपनी को देना होंगे 5 लाख 63 हजार 

उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष योगेश दत्त शुक्ल और सदस्य डॉ. प्रतिभा पांडेय की बेंच ने बीमा कंपनी को स्पष्ट निर्देश दिए कि वह दो माह के भीतर उपभोक्ता को पांच लाख 63 हजार रुपये की पूरी बीमा राशि और 15 हजार रुपये की मानसिक क्षतिपूर्ति अदा करें।

जब दुर्घटना हुई वाहन बीमित था- आयोग

आयोग ने यह भी कहा कि बीमा कंपनी का यह तर्क कि वाहन सेकंड हैंड था, पूरी तरह से अस्वीकार्य है। इसका उद्देश्य केवल उपभोक्ता को कम भुगतान करना था, जो उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि बीमित वाहन को लेकर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। दुर्घटना के दौरान यह बीमित था तो कंपनी को इसे घटित राशि से कम करने का कोई कारण नहीं था। 

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उपभोक्ता के अधिकारों का न हो उल्लंघन

यह निर्णय न केवल इस विशेष मामले के लिए, बल्कि भविष्य में बीमा कंपनियों के लिए एक सख्त संदेश है कि वे उपभोक्ताओं के अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकतीं। बीमा की पूरी राशि का भुगतान करना कंपनियों की जिम्मेदारी है, और यदि वे इसे नहीं करतीं, तो उपभोक्ताओं को न्याय मिल सकता है।

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