इंदौर के वरिष्ठ जिला पंजीयक अमरेश नायडू द्वारा शुरू की गई वरिष्ठतम होकर कुर्सी पर बैठने की लड़ाई हाईकोर्ट से लेकर भोपाल तक पहुंची। इसके बाद आदेश ऐसा हुआ कि उनके हाथ में भी कुछ ज्यादा नहीं आया, लेकिन अभी भी अधिक से अधिक प़ॉवर अपने हाथ में करने की चाहत में उन्होंने ऐसा कुछ किया कि आखिर प्रमुख सचिव अमित राठौर को फोन करके फटकार लगाना पड़ी।
इसके बाद भी मामला सुधरने की जगह एक के बाद एक कुल तीन आदेश जारी दिए और विभाग के आदेश को ही दरकिनार कर मारा।
पहले पंजीयन विभाग का नियम देखते हैं
पंजीयन विभाग महानिरीक्षक पंजीयक भोपाल ने साल 2020 में आदेश दिया था कि जिले के उप जिलों (तहसील) में रजिस्ट्री के लिए परेशानी होती है और आदेश में एकरूपता नहीं होने से हर उप पंजीयक आदेश को लेकर इनकी रजिस्ट्री करता है।
ऐसे में तय किया जाता है कि पंजीयन अधिनियम की धारा 30 (1) में वरिष्ठ उप पंजीयक द्वारा यह रजिस्ट्री की जाएगी। इस आदेश के तहत इंदौर में वरिष्ठ उप पंजीयक जो अभी इंदौर एक में पदस्थ प्रदीप निगम है वह महू, सांवेर, देपालपुर की रजिस्ट्री कर रहे थे।
अब नायडू साहब ने यह किया
- निगम क्योंकि इंदौर एक में हैं, जो वरिष्ठ जिला पंजीयक दीपक शर्मा के अंडर में है, उनके अधिकार कम करने की मंशा से 26 जुलाई को आदेश जारी कर दिया कि अब यह काम संजय सिंह जो अभी इंदौर टू में (यानी नायडू के पंजीयन ऑफिस में) पदस्थ है, वह इस काम को संभालेंगे। इसके लिए इंदौर एक में उनका कैबिन बनाया जाएगा।
- यह आदेश महानिरीक्षक पंजीयन विभाग के आदेश के विपरीत था। इसकी जानकारी भोपाल लगी तो प्रमुख सचिव ने जमकर फटकार लगा दी।
- इसके बाद नया आदेश निकाला और कहा कि फोन पर पीएस से हुई चर्चा के बाद इस आदेश को वापस लिया जाता है। अब हर जिला पंजीयक अपने यहां एक उप पंजीयक को इस काम के लिए अधिकृत करेगा।
- यह आदेश भी वैधानिक नहीं था, क्योंकि जिले में केवल एक वरिष्ठ उप पंजीयक को इसके लिए अधिकृत किया जा सकता है, सभी जिला पंजीयकों को ऐसा करने के अधिकार ही नहीं है, यह विभागीय आदेश 2020 से ही बंधा हुआ है।
- फिर एक और आदेश जारी किया नायडू ने। उन्होंने वरिष्ठ जिला पंजीयक आफिस इंदौर टू में अपने यहां संजय सिंह को इस काम के लिए अधिकृत कर दिया।
कुर्सी की चाहत में हुआ पंजीयन विभाग का बेड़ा गर्क
विधानसभा चुनाव के समय यह कुर्सी की लड़ाई शुरू हुई थी। अभी तक इंदौर जोन वन मे पदस्थ वरिष्ठ जिला पंजीयक ही जिले का प्रशासनिक मुखिया होता था। लेकिन नायडू ने महानिरीक्षक पंजीयक एम. शेलवेंद्रनन से मुलाकात की और फिर ऐसा जादू चला कि आदेश जारी हो गया का जो भी वरिष्ठ है उसे ही वरिष्ठतम जिला पंजीयक बनाया जाए जो नायडू है।
इस आदेश को 48 घंटे तक फॉलो किया गया और भोपाल से लगातार तत्कालीन कलेक्टर डॉ. इलैया राजाटी से चर्चा हुई और कलेक्टर के अनुमोदन से दीपक शर्मा को हटाकर नायडू को चार्ज दे दिया गया। जबकि शर्मा की नियुक्ति खुद शासन ने की थी। मामला हाईकोर्ट तक गया और वहां से महानिरीक्षक पंजीयन के आदेश को दरकिनार कर पीएस को अधिकृत किया गया।
10 जुलाई को पीएस ने आदेश देते हुए जिले के हर जिला पंजीयक को उनके जोन में ही अधिकतम अधिकार दे दिए। कुछ प्रशासनिक दायित्व वरिष्ठ जिला पंजीयक यानी नायडू को मिले, लेकिन जो सुप्रीम अधिकार की ख्वाइश थी वह पूरी नहीं हुई। इसके बाद यह विवादित आदेश जारी किया गया जिसमें प्रमुख सचिव ने फटकार लगा दी।
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