अतिक्रमण पर हाईकोर्ट सख्त, सागर कलेक्टर संदीप जीआर को किया तलब, काम करो वरना हाजिर हो

हाईकोर्ट ने सागर कलेक्टर संदीप जीआर को शाहपुर से अतिक्रमण हटाने के लिए 7 दिन का समय दिया है। आदेश की अवहेलना पर हाई कोर्ट में पेश होने की चेतावनी।

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Neel Tiwari
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सागर जिले की शाहपुर नगर पंचायत में जर्जर होती व्यवस्थाओं और अतिक्रमण की समस्या को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि यदि प्रशासन जनता की मूलभूत जरूरतों और अदालत के स्पष्ट निर्देशों की भी अनदेखी करेगा, तो उसे सख्त जवाबदेही के लिए तैयार रहना होगा। इसी क्रम में हाईकोर्ट ने सागर कलेक्टर संदीप जी. आर. को निर्देशित किया है कि वे एक सप्ताह के भीतर शाहपुर के मुख्य मार्गों से अतिक्रमण हटाकर उसकी अनुपालन रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल करें। अन्यथा कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होना पड़ेगा। 

60 दिनों में अतिक्रमण हटाने का था आदेश 

यह पूरा मामला जनहित याचिका नं,11776/2024 से संबंधित है, जिसे नगर पंचायत शाहपुर के निवासी और अधिवक्ता राजेंद्र सिंह लोधी ने दाखिल किया था। याचिका में स्पष्ट रूप से यह उल्लेख किया गया था कि नगर पंचायत की सीमा के अंतर्गत आने वाले मुख्य मार्गों पर अवैध कब्जे, अस्थायी दुकानें, पक्के निर्माण, और ठेले-फेरी वालों ने सड़कों को पूरी तरह बाधित कर रखा है, जिससे न केवल आवागमन बाधित हो रहा है बल्कि दुर्घटनाओं की आशंका भी लगातार बनी रहती है।

5 फरवरी 2025 को हाईकोर्ट (MP High Court) की डिवीजन बेंच ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया था कि याचिकाकर्ता 15 दिन के भीतर कलेक्टर को अभ्यावेदन दें और कलेक्टर (Sagar Collector Sandeep GR)  60 दिन के अंदर अतिक्रमण हटाकर उसकी अनुपालन रिपोर्ट अदालत में दाखिल करें। लेकिन तय समयावधि समाप्त होने के बाद भी कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गई, जिससे यह प्रतीत होता है कि कोर्ट के आदेशों को भी अब केवल औपचारिकता माना जा रहा है।

किसानों पर जुर्माना और रसूखदारों को दी छूट

याचिकाकर्ता की ओर से पेश किए गए तथ्यों में यह भी सामने आया कि शहर के कुछ छोटे कृषकों से तो तहसीलदार द्वारा जुर्माना वसूला गया, परंतु मुख्य मार्गों पर किए गए पक्के अतिक्रमण जिनमें राजनीतिक और स्थानीय रसूखदारों की भागीदारी थी, उन्हें पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। इससे न केवल प्रशासन की निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट होता है कि किस प्रकार सत्ता के दबाव में गरीबों को टारगेट कर लिया जाता है और प्रभावशाली अतिक्रमणकारियों को संरक्षण मिलता है। इस प्रकार की चयनात्मक कार्रवाई न केवल असंवैधानिक है बल्कि आमजन के मन में न्यायिक प्रक्रिया पर अविश्वास भी पैदा करती है।

कानून की गरिमा से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं: हाईकोर्ट

शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की डिवीजन बेंच में हुई। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्तागण रामेश्वर सिंह ठाकुर, शिवांशु कोल एवं रूप सिंह मरावी ने अदालत को यह अवगत कराया कि कलेक्टर सागर द्वारा हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेशों के बावजूद न तो कोई ठोस कार्यवाही की गई और न ही कोई अनुपालन रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की गई। इस पर कोर्ट ने सख्त नाराजगी जताते हुए शासन पक्ष को फटकार लगाई और स्पष्ट रूप से कहा कि यदि अब एक सप्ताह के भीतर अतिक्रमण नहीं हटाया गया, तो कलेक्टर को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होना पड़ेगा। यह आदेश अपने आप में प्रशासन के लिए एक चेतावनी है, जिसमें कोर्ट ने यह दिखा दिया कि कानून की गरिमा से खिलवाड़ अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

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जनता को उम्मीद और प्रशासन पर दबाव

इस आदेश के बाद सागर जिला प्रशासन की स्थिति अब बेहद संवेदनशील और तनावपूर्ण हो गई है। एक ओर हाईकोर्ट की सख्ती है, तो दूसरी ओर राजनीतिक प्रभाव भी कार्यवाही में रोड़ा अटका सकता है। लेकिन अब जनता को उम्मीद है कि वर्षों से लटकते अतिक्रमण हटाने के मामले में न्याय मिलेगा। नगर पंचायत शाहपुर के रहवासी इस खबर को राहत की तरह देख रहे हैं और उन्हें विश्वास है कि अब न्यायपालिका के निर्देशों के चलते रास्तों की चौड़ाई लौटेगी, यातायात सुचारु होगा और अव्यवस्था पर अंकुश लगेगा। वहीं जिला प्रशासन के लिए यह परीक्षा की घड़ी है कि वह न्यायपालिका के प्रति अपनी निष्ठा सिद्ध कर पाता है या फिर उसे कोर्ट की नाराज़गी का व्यक्तिगत रूप से सामना करना पड़ेगा।

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