भोपाल. सम्राट विक्रमादित्य की बहादुरी और शौर्य की दास्तां अब तक सिर्फ पौराणिक गाथाओं में ही सुनने को मिलती थी। अब एक किताब 'शकारि-विक्रमादित्य' उनके जीवन और वीरता की तस्वीर पेश करेगी। यह किताब जल्द ही लॉन्च होगी।
इस किताब को मध्यप्रदेश के वरिष्ठ आईएएस पी.नरहरि और शोधकर्ता देवऋषि ने मिलकर लिखा है। इससे पहले, दोनों ने रामराजा नामक पुस्तक लिखी है, जिसमें ओरछा के राजाराम मंदिर का ऐतिहासिक विवरण दिया गया है।
गौरतलब है कि विक्रमादित्य भारतीय इतिहास के महान सम्राटों में से एक थे। उनकी बहादुरी और बुद्धिमानी के कारण ही भारत को सशक्त पहचान मिली। इस किताब में उनके जीवन के कई अनछुए पहलुओं को पहली बार ऐतिहासिक प्रमाणों के साथ पेश किया गया है। किताब की महत्ता को देखते हुए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इसकी भूमिका लिखी है। उज्जैन के होने के नाते वे सम्राट विक्रमादित्य के शोध से गहराई से जुड़े रहे हैं।
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इस किताब में क्या मिलेगा?
अब तक विक्रमादित्य की कहानियां सिर्फ विक्रम-बेताल और सिंहासन बत्तीसी जैसी लोकगाथाओं के जरिए सुनी जाती थीं, लेकिन 'शकारि-विक्रमादित्य' पहली बार उनके वास्तविक जीवन की घटनाओं को तथ्यों और प्रमाणों के साथ सामने ला रही है।
- विक्रमादित्य का बचपन और राज्य से निष्कासन।
- साधारण जीवन से महान योद्धा बनने तक की यात्रा।
- शक आक्रमणकारियों को हराकर 'शकारि' की उपाधि प्राप्त करने की गाथा।
अगली कड़ी में सम्राट विक्रमादित्य आएगी
इस श्रृंखला की अगली किताब सम्राट विक्रमादित्य होगी। इसमें बताया जाएगा कि विक्रमादित्य ने राज्य की पुनर्स्थापना कैसे की? उन्होंने पिता की हत्या का प्रतिशोध लेकर भारतीय राजाओं को कैसे संगठित किया? कैसे उन्होंने शक सम्राट नहपान को हराकर अखंड भारत की नींव रखी और विक्रम संवत् का महत्व क्या है?
'द सूत्र' से बातचीत में किताब के लेखक देवऋषि ने कहा, सम्राट विक्रमादित्य भारतीय इतिहास के सबसे उज्ज्वल नक्षत्रों में से एक थे। दुर्भाग्य से उन्हें अब तक सिर्फ पौराणिक कथाओं तक सीमित रखा गया। 'शकारि-विक्रमादित्य' के जरिए हम उनके वास्तविक इतिहास को सामने रखने का प्रयास कर रहे हैं।
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