मध्य प्रदेश ग्वालियर भगवान शंकर का एक ऐसा अद्भुत और अनोखा मंदिर है जो करीब साढ़े सात दशक पुराना है। बीच सड़क पर बने इस मंदिर की खासियत ये है कि मंदिर के शिवलिंग को बहुत बार राजाओं और महाराजाओं की तरफ से हटाने के प्रयास किए गए, लेकिन सभी के प्रयास नाकाम रहें । इतना ही नहीं कहा जाता है कि मंदिर के स्वयंभू शिवलिंग को हटाने के लिए बड़े से बड़े राजा महाराजाओं ने कोशिश की लेकिन इसे हिला ना सके।
शिवलिंग का नहीं मिला कोई छोर
राजा महाराजाओं ने कई हाथियों से इस शिवलिंग को हटाने की कोशिश की लेकिन इसे हिला ना सके। इसे खोदकर निकालने की भी कोशिश की गई। खोदते खोदते पानी तो निकल आया, लेकिन शिवलिंग का कोई छोर नहीं मिला। भगवान भोलेनाथ के इस चमत्कारी शिवलिंग को लोग बाबा अचलेश्वर महादेव के नाम से पुकारते हैं।
अचलेश्वर महादेव की चमत्कारी महिमा
इसके बाद शासकों ने पेड़ को हटाने के आदेश दिए। पेड़ हटते ही वहां एक स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हुआ। इसके बाद शिवलिंग को हटाने के लिए काफी मेहनत की गई लेकिन उसे वहां से टस से मस ना किया जा सका। फिर शिवलिंग के अगल-बगल काफी गहरी खुदाई की गई। मजदूरों ने इतनी गहरी खुदाई की कि पानी निकलने लगा। फिर भी शिवलिंग को नहीं हिला सका। बाद में शाही परिवार ने शिवलिंग को हटाने के लिए हाथी भेजे।
टूट गई थी जंजीर
हाथियों में जंजीर बांधकर जब शिवलिंग खींचा गया तो लोहे की मोटी जंजीरें टूट गईं लेकिन शिवलिंग टस से मस ना हुआ। इसके बाद रात को भगवान ने तत्कालीन राजा को सपने में चेतावनी दी। भगवान अचलनाथ ने कहा कि यदि मूर्ति खंडित हुई तो समझ लो कि तुम्हारा सर्वनाश हो जाएगा। इसके बाद राजा ने शिवलिंग हटाने का काम तुरंत रोक दिया। राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने पिंडी की विधिवत पूजा अर्चना के साथ प्रतिष्ठा कराई।
मनोकामना होती पूरी
पूरे उत्तर भारत में मान्यता है कि भगवान अचलनाथ के दरबार में जो भी मत्था टेकने पहुंचता है, शिव उसकी इच्छापूर्ति का वरदान देते हैं। मान्यता है कि बाबा अचलनाथ का वरदान भी उनकी प्रतिमा की तरह चल रहता है। यानी भक्तों की हर मुराद पूरी होती है।