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मध्यप्रदेश की राजनीति में इन दिनों एक पदयात्रा बहुत कुछ कह रही है। यह कोई सामान्य यात्रा नहीं है। यह यात्रा कर रहे हैं शिवराज सिंह चौहान, वही शिवराज जो चार बार प्रदेश के मुखिया रहे। वही, शिवराज जो छह बार संसद पहुंचे। वही, शिवराज जिनकी पहचान गांव, गरीब और महिलाओं के मसीहा के रूप में है और वही शिवराज जिन्हें पार्टी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी से अलग कर दिल्ली बुला लिया। अब वे एक बार फिर मैदान में हैं। नर्मदा तट की धरती पर, पांव-पांव चलते हुए।
राजनीतिक पंडित उनकी इस पदयात्रा को भावुक जनसंपर्क अभियान से ज्यादा सियासी समीकरणों से भरी करार दे रहे हैं। यह तीन हिस्सों में बंटी हुई नजर आती है। अव्वल राजनीतिक समीकरण, दूसरा पारिवारिक उत्तराधिकार और तीसरा संगठन के भीतर असंतोष के संकेत। शिवराज की यह यात्रा धार्मिक, सामाजिक या प्रेरणादायक अभियान नहीं है, यह रणनीतिक संदेश है, जिसे सधे हुए लहजे में शिवराज ने व्यक्त किया है। वे एक बार फिर दोहरा रहे हैं कि 'टाइगर अभी जिंदा है..।'
पदयात्रा में भावनाएं भी, भविष्य की बुनियाद भी
शिवराज सिंह चौहान का यह कथन कि पैदल चलने से एक भाव पैदा होता है, लोगों को लगता है कि जब एक मंत्री पैदल चल रहा है तो हमें भी कुछ करना चाहिए, सीधे जनभावना को छूने वाला है। लेकिन इस यात्रा के दृश्य-परिदृश्य में अहम बात है और वो है उनका परिवार। साथ हैं पत्नी साधना सिंह, बेटा कार्तिकेय सिंह और बहू अमानत। मंच से खुद शिवराज ने सार्वजनिक रूप से बहू को बड़ा परिवार संभालने की भूमिका में पेश किया।
दरअसल, यह यात्रा शिवराज सिंह चौहान के विदिशा संसदीय क्षेत्र के बुदनी में हो रही है। बुदनी से शिवराज के राजनीतिक जीवन की नींव पड़ी थी और अब लगता है कि वे अपने बड़े बेटे कार्तिकेय को उस विरासत का उत्तरदायित्व सौंपना चाहते हैं, जहां से उठकर वे सत्ता के शिखर तक पहुंचे।
एक यात्रा, तीन मैसेज
शिवराज सिंह चौहान की इस यात्रा को देखकर राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे तीन स्पष्ट संदेशों में बांटकर देखा है।
1. संगठन, सरकार नजरअंदाज न करे
शिवराज यह बताने से नहीं चूके कि टाइगर अभी जिंदा है। इस बयान का इस्तेमाल उन्होंने मंच से किया। इसका सीधा सा अर्थ है कि वो आज भी जनाधार रखते हैं, संगठन और सरकार उन्हें नजरअंदाज न करे। ये शब्द सरकार और पार्टी नेतृत्व के लिए चेतावनी के रूप में देखे जा रहे हैं।
2. बेटा और बहू का करियर
पद यात्रा में परिवार को मंच पर प्रमुखता से लाना, उन्हें जनसेवा का ध्येय बताना, राजनीतिक उत्तराधिकार की पटकथा का पहला दृश्य लगता है। बेटे कार्तिकेय को पहले भी मंचों पर देखा गया, लेकिन बहू को पहली बार इतने केंद्रीय रूप में लाना यह दिखाता है कि शिवराज अब राजनीतिक उत्तराधिकार की बुनियाद रखने लगे हैं।
3. पार्टी संगठन से दूरी या असंतोष का संकेत
इस यात्रा के दौरान उल्लेखनीय बात यह रही कि न प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा, न संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा और न ही मुख्यमंत्री मोहन यादव इस पदयात्रा की शुरुआत में उपस्थित थे। क्या यह दर्शाता है कि संगठन इस यात्रा से सहमत नहीं या शिवराज ने यह यात्रा पूरी तरह व्यक्तिगत रूप से आयोजित की है? क्या यह संगठन की छाया से बाहर निकलकर अपनी सियासी जमीन दोबारा तैयार करने की कवायद है? ये कुछ अलसुलझे सवाल हैं।
प्रधानमंत्री के संकल्पों की बात
शिवराज ने इस पदयात्रा में एक और नई अवधारणा रखी करोड़पति दीदी। लाडली बहना योजना से आगे बढ़ते हुए अब वे कह रहे हैं कि वे स्व-सहायता समूहों के जरिए महिलाओं को उद्योगपति बनाएंगे। उन्हें छोटे कारोबार से जोड़ने और फैक्ट्री का मालिक बनाने का सपना उन्होंने जनता के सामने रखा।
यह वही शिवराज हैं, जिन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए लाड़ली बहना योजना का मास्टर स्ट्रोक चला था। अब जब वे मुख्यमंत्री नहीं हैं, तब उनके पास योजनाएं भी हैं, सपने भी हैं और मंच भी। यही शिवराज की खासियत रही है, वह सपने देखते हैं, सपने बेचते हैं और फिर जनता को उनसे जोड़ देते हैं।
बुदनी से नहीं मिला टिकट
थोड़े पीछे चलें तो विधानसभा चुनाव 2023 में शिवराज बुदनी से रिकॉर्ड तोड़ वोटों से जीते थे। फिर बीजेपी ने उन्हें विदिशा सीट से लोकसभा चुनाव लड़वाया, यहां भी उन्होंने जीत का कीर्तिमान बनाया। इसके बाद बुदनी में उपचुनाव हुए। माना जा रहा था कि शिवराज के बड़े बेटे कार्तिकेय को बुदनी से टिकट मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बीजेपी ने यहां विदिशा सांसद रहे रमाकांत भार्गव को उतारा।
वैसे देखा जाए तो शिवराज इन दिनों बेटे को एक तरह से प्रमोट कर रहे हैं। पिछले दिनों कार्तिकेय के जन्मदिन पर शिवराज ने वीडियो के साथ भावुक पोस्ट लिखी थी। तब उन्होंने लिखा था, आज कार्तिकेय का जन्मदिन है। कार्तिकेय और अमानत ने शादी के सात वचनों के साथ आठवां वचन प्रकृति की सेवा का भी लिया था। आज जन्मदिन पर कार्तिकेय और अमानत ने पौधरोपण कर आठवां वचन निभाया। मैं और साधना स्वयं को सौभाग्यशाली मानते हैं। आज ही के दिन कार्तिकेय का जन्म हुआ था, कई मधुर स्मृतियां मन को पुलकित कर रही हैं।
जन्म के तुरंत बाद मैंने उसे गोद में लेकर गायत्री मंत्र सुनाया था। बचपन में नटखट कार्तिकेय का देश का सिपाही बनने का संकल्प, छह वर्ष की उम्र में दिया गया पहला भाषण, गिरिराज जी की परिक्रमा करते समय उसका उत्साह, खिलौनों-कारों से खेलना, शक्तिमान की ड्रेस पहनकर उड़ने की कोशिश करना, “पापा! रामायण, महाभारत सुनाओ” और गीता पढ़ाने का आग्रह, ये सब यादें आज फिर ताजा हो गई हैं।
चार चुनावों में अहम भूमिका में कार्तिकेय
गौरतलब है कि कार्तिकेय 2013 से शिवराज के नक्शे कदम पर आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने 2013 से बुदनी चुनाव अभियान की कमान संभाली थी। फिर 2018 में भी यह भूमिका निभाई। 2023 के चुनाव में कार्तिकेय सीधे तौर पर मंचों पर नजर आने लगे थे। शिवराज के पक्ष में कई सभाएं की। उनके विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र में पूरी तरह सक्रिय रहे थे। बैठक लेकर अपनी टीम खड़ी की थी। फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में भी एक्टिव रहे थे। शिवराज की पूरी सोशल मीडिया टीम को कार्तिकेय ही मैनेज करते हैं।
कार्तिकेय की शादी की भव्यता
कार्तिकेय से पहले शिवराज ने छोटे बेटे कुणाल की शादी की थी। अपेक्षाकृत रूप से कुणाल के मुकाबले कार्तिकेय की शादी ज्यादा भव्य तरीके से हुई। राजस्थान में डेस्टिनेशन वेडिंग हुई। दिल्ली में रिसेप्शन हुआ, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे समेत कई दिग्गज नेता, कारोबारी जगत के बड़े लोग, धर्मगुरु और अभिनेता पहुंचे थे।
सियासी पंडित कहते हैं कि शिवराज के हर काम के पीछे एक रणनीति छिपी हुई होती है। अब जब वे पदयात्रा कर रहे हैं तो बहू और बेटे को जनता से सीधे रु-ब-रू करा रहे हैं। अमानत ग्रामीणों के साथ स्थानीय गीतों पर थिरकती नजर आ रही हैं। शिवराज के समर्थक और विरोधी इसे सामान्य बात न मानते हुए किसी रणनीति का हिस्सा बता रहे हैं।
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